लघुकथा डॉ. गिरिजा किशोर पाठक कमिश्नर मातादीन साहब को मन ही मन यह बात कचोट रही है कि वे झिमरू के भरोसे कैसे लुट गये. झिमरु की निष्ठा पर विश्वास और अविश्वास के अन्तर्द्वन्द में वे कुलबुला रहे हैं. विगत दस साल से झिमरू इनके साथ है. वह एक सजग और जागरुक प्रहरी है. किसी […]
लघुकथा डॉ. कुसुम जोशी मन्दी बुआ’ छोटी कद काठी ,गोल मटोल, चपटी सी नाक, पक्का गेंहुआ रंग. और आदतें-“गांव में किसी से लड़ के आयेगीं, तो गाड़ी पकड़ सीधे हमारे घर और सीढ़ीयों से ही अपने दुश्मनों में गालियों के गोले दागते हुये आयेगीं. मन्दी बुआ बाबूजी के काका “बंशी काका की इकलौती पुत्री थी, […]
लघुकथा अनुरूपा “अनु” गोधूलि का समय था. गाय बैल भी जंगल की ओर से लौट ही रहे थे.मैं भी घर के पास वाले खेत में नींबू के पेड़ की छांव में कलम और कागज लेकर बैठ गई.सोच रही थी कुछ लिखती हूं. क्योंकि उस पल का जो दृश्य था वह बड़ा ही लुभावना लग रहा […]
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