Tag: रंगमंच

उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

उत्तराखंड में भारत रंग महोत्सव

कला-रंगमंच
रंगमंच महाबीर रवांल्टा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में संस्कृति विभाग एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 21वां भारत रंग महोत्सव 6 फरवरी से 12 फरवरी 2020 तक हुआ. राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा भारत रंग महोत्सव देश के चार शहरों में पांडिचेरी, नागपुर, शिलांग व देहरादून में आयोजित किए गए जिनमें देश के चयनित नाट्य दलों के साथ ही विदेशी नाट्य दलों की प्रस्तुतियां भी शामिल रही. 6 फरवरी को रिस्पना पुल के निकट नवनिर्मित प्रेक्षागृह के लोकार्पण एवं नाट्य महोत्सव के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड के संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद के उपाध्यक्ष घनानंद गगोड़िया, संस्कृति विभाग की निदेशक डॉ बीना भट्ट की उपस्थिति में प्रेक्षागृह को रंगकर्मियों को समर्पित किया. उदघाटन सत्र में सुप्रसिद्ध कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रख्यात रंगमंच ए...
एक क्रांति का नाम – नईमा खान उप्रेती

एक क्रांति का नाम – नईमा खान उप्रेती

संस्मरण
पुण्यतिथि पर विशेष मीना पाण्डेय नईमा खान उप्रेती एक क्रांति का नाम था. एक तरफ उत्तराखंड के लोक गीतों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर लाने के लिए उन्होंने मोहन उप्रेती जी के साथ मिलकर एक बड़ी भूमिका निभाई. दूसरी ओर रंगमंच और लोक कलाओं में महिला भागीदारी के प्रति तत्कालीन समाज की जड़ मान्यताओं को पीछे छोड़ पहले पहल एक जीता-जागता उदाहरण बनी. नईमा खान उप्रेती का जन्म 25 मई, 1938 को अल्मोड़ा के एक कटटर मुस्लिम परिवार में हुआ. उनका परिवार अल्मोड़ा के बड़े रईस परिवारों में एक था. उनके पिता शब्बीर मुहम्मद खान ने उस समय की तमाम सामजिक रूढ़ियों को दरकिनार कर एक क्रिस्चियन महिला से विवाह किया. पिता के प्रगतिशील विचारों का प्रभाव नईमा पर पड़ा. उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था. परिवार में भी संगीत के प्रति अनुराग रहा. मध्यम कद काठी, धुला रंग, छोटी पोनी में समेटे अर्द्ध खिचड़ी बाल और ...
रामलीला पहाड़ की

रामलीला पहाड़ की

संस्मरण
‘बाटुइ’ लगाता है पहाड़, भाग—6 रेखा उप्रेती रंगमंच की दुनिया से पहला परिचय रामलीला के माध्यम से हुआ. हमारे गाँव ‘माला’ की रामलीला बहुत प्रसिद्ध थी उस इलाके में. अश्विन माह में जब धान कट जाते, पराव के गट्ठर महिलाओं के सिर पर लद कर ‘लुटौं’ में चढ़ बैठते तो खाली खेतों पर रंगमंच खड़ा हो जाता. उससे कुछ दिन पहले ही रामलीला की तालीम शुरू हो चुकी होती. देविथान में एक छोटी-सी रंगशाला जमती. सोमेश्वर से उस्ताद जी हारमोनियम लेकर आते और गीतों का रियाज़ चलता. सभी भूमिकाएँ पुरुष ही निभाते… डील-डौल के साथ-साथ अच्छा गाने की प्रतिभा तय करती कि कौन किसका ‘पार्ट खेलेगा’. छोटी छोटी लडकियाँ सिर्फ सखियों की भूमिका निभातीं. मेरी दीदियाँ अपने-अपने समय में कभी राधा, कभी कृष्ण, कभी गोपी बनकर रामलीला के पूर्वरंग का सक्रिय हिस्सा बन चुकी थीं. मैं सिर्फ दर्शक की भूमिका में रही. पूर्वरंग के अलावा दो अन्य स्थलों पर स...