Tag: पितर

श्राद्ध की आस्था में पर्यावरण व जीवन

श्राद्ध की आस्था में पर्यावरण व जीवन

समाज
सुनीता भट्ट पैन्यूली पितृपक्ष या श्राद्ध हमारे अपने जो अब जीवित नहीं हैं या हमारे पास नहीं हैं. because उनको याद करने का अवसर हैं. हमारी हिंदू परंपरा में इन दिनों दिवंगत  पूर्वजों का श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है.ऐसा माना जाता है कि पितरों की पूजा अर्चना करने से उनकी हम पर विशिष्ट कृपा बनी रहती है. ज्योतिष हमारा यह भी विश्वास है कि अपने पितरों को श्राद्ध देकर हम उनके निमित्त जो भी because ब्राह्मण को दे रहे हैं वह उन तक ज़रूर पहुंच जायेगा. यह तो हम नहीं जानते है कि पहुंचता है या नहीं किंतु यह निश्चित है कि  सच्चे हृदय से पितरों को याद करके जब उनको तर्पण दिया जाता है तो हमारी श्रद्धाऐं उन तक तो ज़रूर पहुंचती ही होंगी. ज्योतिष पितृ ऋण को चुकाने because और कृतज्ञता प्रकट करने का कर्म भी है श्राद्ध श्राद्ध में गाय, कुत्ता, कौऐ को खिलाने का विधान भी है यह प्रशंसनीय है कि  because इ...
ब्राह्मण ग्रन्थों में ब्रह्मांड चेतना से अनुप्रेरित पितर अवधारणा 

ब्राह्मण ग्रन्थों में ब्रह्मांड चेतना से अनुप्रेरित पितर अवधारणा 

साहित्‍य-संस्कृति
एक दार्शनिक चिंतन डॉ.  मोहन चंद तिवारी  'ऐतरेय ब्राह्मण' में सोमयाग सम्बन्धी एक सन्दर्भ वैदिक कालीन पितरों की ब्रह्मांड से सम्बंधित आध्यात्मिक अवधारणा को समझने की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है ब्राह्मण "अन्यतरोऽनड्वान्युक्तः स्यादन्यतरो विमुक्तोऽथ राजानमुपावहरेयुः. यदुभयोर्विमुक्तयोरुपावहरेयुः पितृदेवत्यंbecause राजानं कुर्युः. यद्युक्तयोरयोगक्षेमःbut प्रजा विन्देत्ताः प्रजाःso परिप्लवेरन्. योऽनड्वान् विमुक्तस्तच्छालासदां प्रजानां रूपं यो becauseयुक्तस्तच्च क्रियाणां, ते ये युक्तेऽन्ये butविमुक्तेऽन्य उपावहरन्त्युभावेव ते क्षेमयोगौ soकल्पयन्ति." -ऐ.ब्रा.1.14 ब्राह्मण उपर्युक्त सोमयाग प्रकरण में सोमलता because को यज्ञ वेदी तक दो बैलों (अनड्वाहौ) से जुते शकट (गाडी) में ढोकर लाया गया है. तभी यह धर्मशास्त्रीय प्रश्न उठाया गया है कि सोम को शकट से उतारने से पहले एक बैल (बलीव...
पितृपक्ष में पितरों का ‘श्राद्ध’ क्यों किया जाता है? 

पितृपक्ष में पितरों का ‘श्राद्ध’ क्यों किया जाता है? 

अध्यात्म
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल 1 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है,जिसका समापन 17 सितंबर, 2020 को होगा. भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों का पितृपक्ष प्रतिवर्ष ‘महालय’ श्राद्ध पर्व के रूप में मनाया जाता है. 'निर्णयसिन्धु’ ग्रन्थ के अनुसार आषाढी कृष्ण अमावस्या से पांच पक्षों के बाद आने वाले पितृपक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितर जन क्लिष्ट होते हुए अपने वंशजों से प्रतिदिन अन्न जल पाने की इच्छा रखते हैं- “आषाढीमवधिं कृत्वा पंचमं पक्षमाश्रिताः. कांक्षन्ति पितरःक्लिष्टा अन्नमप्यन्वहं जलम् ..” आश्विन मास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि देकर संतुष्ट करेंगे. इसी इच्छा को लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक में आते हैं. पितृपक्ष में यदि पितरों को पिण्डदान या तिलांजलि नहीं मिलत...
पितृपक्ष : पितरों की समाराधना का पर्व

पितृपक्ष : पितरों की समाराधना का पर्व

अध्यात्म
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस वर्ष 1 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है, जिसका समापन 17 सितंबर, 2020 को होगा. उल्लेखनीय है कि भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक सोलह दिनों का पितृपक्ष पूरे देश में ‘महालय’ श्राद्ध पर्व के रूप में मनाया जाता है.आमतौर पर पितृपक्ष 16 दिनों का होता है, लेकिन इस संवत्सर वर्ष में तिथि के बढ़ने के कारण एक दिन अधिक होकर यह 17 दिनों का हो गया है. वैदिक सनातन धर्म के अनुयायी इस पितृपक्ष में अपने स्वर्गीय पिता,पितामह, प्रपितामह, माता, मातामह आदि पितरों को श्रद्धा तथा भक्ति सहित पिंडदान देते हैं और उनकी तृप्ति हेतु तिलांजलि सहित श्राद्ध-तर्पण भी करते हैं. 'श्राद्ध’ का अर्थ है जो वस्तु श्रद्धापूर्वक दी जाए- ‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्.’ आश्विन मास के पितृपक्ष को ‘महालय’ इसलिए कहते हैं क्योंकि यह पक्ष पितरों का आलय (निवास) है. महालय श्राद्ध...
पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

अध्यात्म
भुवन चन्द्र पन्त पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है. दरअसल पितर ही हमें इस धरती पर लाये, हमारा पालन पोषण किया और हमें अपने पांवों पर खड़े होने के लिए समर्थ किया. लेकिन उनसे ऊपर भी हमारे ऋषि थे, जो हमारे आदिपुरूष रहे और जिनके नाम पर हमारे गोत्र चले तथा उन ऋषियों के शीर्ष में देवता. देवऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए ही श्राद्ध की परम्परा शुरू हुई. हालांकि जितना उपकार इनका हमारे प्रति है उस ऋण से उऋण होना तो संभव नहीं और नहीं ऋण का मूल चुका पाना संभव है, श्राद्ध के निमित्त सूद ही चुका दें because तो हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं. जिसने हमारे लिए इतना सब किया, उनके इस दुनियां से चले जाने के बाद उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान देकर कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है. यों तो श्रद्धाभाव से  पितरों को स्वयं पिण्ड अर्पित कर तथा उन्ह...