Tag: टिहरी रियासत

अमर शहीद श्रीदेव सुमन के 80वे बलिदान दिवस पर स्मृति सभा व भजन संध्या का आयोजन

अमर शहीद श्रीदेव सुमन के 80वे बलिदान दिवस पर स्मृति सभा व भजन संध्या का आयोजन

दिल्ली-एनसीआर
टिहरी-उत्तरकाशी जन विकास परिषद द्वारा किया गया आयोजन सी एम पपनैं नई दिल्ली. अमर शहीद श्रीदेव सुमन के 80वे बलिदान दिवस पर टिहरी-उत्तरकाशी जन विकास परिषद द्वारा गढ़वाल भवन में 25 जुलाई को स्मृति सभा व भजन संध्या का आयोजन किया गया. आयोजित आयोजन के इस अवसर पर विगत दिनों कश्मीर में हुई अनेकों आतंकवादी घटनाओं में शहीद हुए भारतीय वीर जवानों को भी खचाखच भरे सभागार में श्रद्धांजलि अर्पित की गई. आयोजित स्मृति व श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित उत्तराखंड के प्रबुद्ध प्रवासी समाज सेवियों, राजनीतिज्ञों, विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े संस्कृति कर्मियों, फिल्मकारों, साहित्यकारो व मीडिया कर्मियों में प्रमुख रूप से उपस्थित रमेश घिल्डियाल, राठी राम डबराल, टी एस भंडारी, आजाद सिंह नेगी, बृज मोहन उप्रेती, दुर्गा सिंह भंडारी, कुसुम बिष्ट, विकास चमोली, जीत सिंह भंडारी, चंद्र मोहन पपनैं, मनमोहन शाह, महा...
सुन्दरलाल बहुगुणा: एक युग का अवसान

सुन्दरलाल बहुगुणा: एक युग का अवसान

स्मृति-शेष
चारु तिवारी उनका नाम हम बचपन से ही सुनते रहे थे. मैं समझता हूं कि हमारी पीढ़ी ने उन्हें एक आइकन के रूप में देखा. कई संदर्भो में. कई पड़ावों में. उन्हें भले ही एक पर्यावरणविद के रूप में लोगों ने पहचाना हो, लेकिन उनका सामाजिक, राजनीतिक चेतना में भी बड़ा योगदान रहा है. पर्यावरण को बचाने की अलख या हिमालय के because हिफाजत के सवाल तो ज्यादा मुखर सत्तर-अस्सी के दशक में हुये. ये सवाल हालांकि अंग्रेजों के दमनकारी जंगलात कानूनों और लगान को लेकर आजादी के दौर में भी उठते रहे है, लेकिन उन्हें बहुत संगठित और व्यावहारिक रूप से जनता को समझाने और अपने हकों को पाने के लिये उसमें शामिल होने का रास्ता उन्होंने दिखाया. मूलांक आजादी के आंदोलन में पहाड़ से बाहर उनकी भूमिका लाहौर-दिल्ली तक रही. टिहरी रियासत की दमनकारी नीति के खिलाफ उन्होंने आवाज उठाई. एक दौर में उत्तराखंड की कोई हलचल ऐसी नहीं थी, जिसमें उनकी केन्...
टिहरी रियासत के विरुद्ध जन-संघर्षों का अग्रणी व्यक्तित्व

टिहरी रियासत के विरुद्ध जन-संघर्षों का अग्रणी व्यक्तित्व

उत्तराखंड हलचल
दादा दौलतराम खुगशाल (मार्च, 1891- 3 फरवरी, 1960) डॉ. अरुण कुकसाल ‘‘आज तक राजा ने हमको पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं दिया जिससे हम बायां अंगूठा लगाने को मजबूऱ हैं, लेकिन अब अगर राजा के कर्मचारी ‘कर’ आदि वसूलने आयें तो हमें उन्हें अपना दायां अंगूठा दिखाना चाहिए और हम दिखायेंगे भी.’’                                                                                                                                    - दादा दौलतराम खुगशाल प्रजामंडल के टिहरी सम्मेलन (25-27 मई, 1947) में दादा दौलतराम ने अपने भाषण में उक्त वक्तव्य देकर राजशाही को खुली चुनौती दे थी. टिहरी रियासत के विरुद्ध हुये निर्णायक आंदोलनों में 3 नाम प्रमुख रूप में सामने आते हैं. अमर शहीद श्रीदेव सुमन, दादा दौलतराम खुगशाल और नागेन्द्र सकलानी. श्रीदेव सुमन टिहरी रियासत के आत्याचारों के खिलाफ स्थानीय जनता की आवाज को देश के राष...