पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक व हिमालय के गांधी, सुंदरलाल बहुगुणा

sunder lal bahuguna

Dr Harish Chandra Andola Doon University

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत की मिट्टी में इतनी महान हस्तियों ने जन्म लिया कि अगर उनका जिक्र करने या उनकी कहानी बयां करने बैठे तो शायद एक युग कम पड़ जाएगा. क्योंकि हिंदुस्तान की मिट्टी की तासीर ऐसी रही है जिसमें अनेक महापुरुष देवत्व लेकर पैदा हुए. आज भारत एक ऐसी ही हस्ती की जयंती मना रहा है. जिसने अपना सारा जीवन भारतीय मिट्टी और भारत के साथ-साथ विश्व पर्यावरण के लिए कुर्बान कर दिया.सुंदरलाल बहुगुणा भारत के महान पर्यावरण-चिन्तक एवं उत्तराखण्ड में चिपको आंदोलन के प्रमुख प्रवर्तक थे. उन्होंने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के संरक्षण के लिए अथक प्रयासों के साथ महान संघर्ष किया था.

देश–दुनिया में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण उनका जन्म 09 जनवरी 1927 को गांव मरोड़ा (टिहरी गढ़वाल) में हुआ था. पांच भाई बहनों में सबसे छोटे होने के बावजूद उन्होंने कई बड़े कार्य किये. प्रारंभ में उनका नाम गंगाराम रखा गया था परंतु एक बहन का नाम भी गंगा होने से उनके नाम में बदलकर सुंदरलाल कर दिया था. टिहरी रियासत की स्वतंत्रता हेतु किये आंदोलन में वे अगवा रहे थे. भारत छोड़ो आंदोलन में 17 वर्ष की आयु में भाग लेने पर उन्हें गिरफ्तार कर नरेंद्र नगर की जेल में भेज दिया गया था. लगभग एक वर्ष बाद जेल से छूटकर लाहौर चले गये जो उस समय आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र था. लाहौर में गिरफ्तारी से बचने हेतु उन्होंने सिख का वेश बनाया एवं गुरूमुखी भी सिखी. अपनी सक्रियता के कारण वे टिहरी रियासत में कोई बड़ा पद पा सकते थे. परंतु वे इससे दूर रहे.

सुंदरलाल बहुगुणा न केवल पर्यावरणविद् थे बल्कि छुआछूत और अन्य सामाजिक बुराइयों के भी कट्टर विरोधी थे. उन्होंने दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए भी अभियान चलाया था. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी पत्नी विमला नौटियाल की मदद से सिल्क्यारा में पर्वतीय नवजीवन मंडल की स्थापना भी की थी. 14 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा टिहरी रियासत के खिलाफ प्रजामंडल आंदोलन में कूद पड़े थे. गांधी और श्रीदेव सुमन को अपना गुरु मानने वाले बहुगुणा आजादी के लिए नरेंद्रनगर जेल में भी रहे. 24 साल की उम्र में बहुगुणा कांग्रेस में भी शामिल हो गए, लेकिन इसके बाद उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया.शादी के समय उनकी पत्नी बिमला बहुगुणा ने एक शर्त रखी. पत्नी ने कहा कि अगर वह राजनीति में रहे तो वह उनसे शादी नहीं करेंगी. इसके बाद बहुगुणा ने राजनीति छोड़ दी. इसके बाद वह दलीय राजनीति भी छोड़कर समाज सेवा में जुट गए.

एक समाजसेवी के तौर पर उन्होंने छुआछूत, दलितों के मंदिर प्रवेश, ग्राम स्वराज, स्वरोजगार, नशा विरोधी और जंगलों को बचाने के लिए आंदोलन किए.शराब की दुकानों के खिलाफ 16 दिन का अनशन 1971 में सुंदरलाल बहुगुणा ने शराब की दुकानें खुलने से रोकने के लिए 16 दिन का अनशन किया. चिपको आंदोलन की वजह से वह दुनिया भर में वृक्षमित्र के नाम से मशहूर हो गए. उन्होंने उत्तराखंड में बड़े बांधों के खिलाफ भी लंबे समय तक आंदोलन चलाया. इसके बाद बहुगुणा ने जंगलों से जुड़े आंदोलन में हिस्सा लिया और चिपको आंदोलन के दौरान उन्होंने उत्तरकाशी और टिहरी के बडियारगढ़ में दो अनशन किए. बहुगुणा चिपको आंदोलन में करीब एक दशक तक सक्रिय रहे. इस दौरान पूरे हिमालय को जानने के लिए बहुगुणा ने उसे पैदल ही नापा और कश्मीर से कोहिमा तक पैदल चले. इसके कायापलट और व्यवस्था ने चिपको आंदोलन को एक नई दिशा दी.टिहरी बांध का किया विरोधकश्मीर और कोहिमा की यात्रा के बाद वे टिहरी बांध विरोध में कूद पड़े और हिमालय यात्रा के अपने अनुभव लोगों से साझा किए. इसके बाद उन्हें पर्यावरणविद कहा जाने लगा.

पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने कई किताबें भी लिखीं. वर्ष 1992-93 में बहुगुणा ने हिमालय बचाओ आंदोलन का पुनर्गठन किया और उसे एक नई दिशा दी. टिहरी बांध के विरोध में बहुगुणा ने चार उपवास भी किए.सुंदरलाल बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर फ्रेंड ऑफ नेचर नामक अमेरिकी संस्था ने उन्हें वर्ष 1980 में सम्मानित किया. इसके बाद उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया. इसके अलावा सुंदरलाल बहुगुणा को कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया पर्यावरण संरक्षण के अग्रदूत, ‘चिपको आंदोलन’ के प्रणेता एवं पद्म विभूषण से सम्मानित श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी की जन्म जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन.

(लेखक के अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं.) 

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *