अचानक याद आना एक गीत का
चारु तिवारी
‘गरुड़ा भरती, कौसाणी ट्रेनिंगा...!’
उन दिनों हमारे क्षेत्र बग्वालीपोखर में न सड़क थी और न बिजली. मनोरंजन के लिये सालभर में लगने वाला ‘बग्वाली मेला’ और ‘रामलीला’. बाहरी दुनिया से परिचित होने का because एक माध्यम हुआ- रेडियो. वह भी कुछ ही लोगों के पास हुआ. सौभाग्य से हमारे घर में था. रेडियो का उन दिनों लाइसेंस होता था. उसका हर साल पोस्ट आॅफिस से नवीनीकरण कराना पड़ता था. इसी रेडियो की आवाज से हम दुनिया देख-समझ लेते. हमारे सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम थे- ‘उत्तरायण’ और ‘गिरि गुंजन’. बाद में ‘बिनाका गीतमाला’, ‘क्रिकेट की कैमेंट्री’, ‘रेडियो नाटक’, ‘वार्ताओं’, ‘बीबीसी’ और समाचारों से भी हमारा रेडियो के साथ नाता जुड़ा, लेकिन शुरुआती दिनों में कुमाउनी गीत सुनना ही हमारी प्राथमिकता थी.
.पासिंग आउट परेड
उन दिनों एक गीत बहुत प्रचलित था- ‘गरुड़ा भरती कौसाणी ट्रैनिंगा, देशा का लिजिया लड़ैं ...