Tag: कस्तूरबा

‘कस्तूरबा’ से ‘बा’ तक का गुमनाम सफर

‘कस्तूरबा’ से ‘बा’ तक का गुमनाम सफर

साहित्‍य-संस्कृति
भावना मासीवाल 22 फरवरी को ‘बा’ की पुण्यतिथि थी. उन पर न कोई आयोजन था न ही कोई चर्चा-परिचर्चा. हर तरफ थी तो सिर्फ ख़ामोशी. जबकि ‘बा’ इतिहास के पन्नों में दफन कस्तूरबा गाँधी का नाम है. यह नाम आज़ादी की लड़ाई में अपनी पूरी निष्ठा व बलिदान के साथ मौजूद था. यह नाम दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति व भारतीयों के साथ गैर बराबरी पूर्ण व्यवहार के खिलाफ़ न केवल अहिंसा आंदोलन में खड़ा था बल्कि आंदोलन में जेल भी गया था. दक्षिण अफ्रीका में जब ईसाई धर्म के अनुसार क़ानूनी रूप से पंजीकृत विवाह को वैध और अन्य को अवैध बनाया गया. उस समय वहाँ इसके खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया गया और सभी सत्याग्रहियों को जेल में डाला गया था. इसमें ‘बा’ कस्तूरबा गाँधी भी थी. विरोध का यह वही नाम था जो दक्षिण अफ्रीका के बीमार मजदूरों की निष्ठा व श्रद्धा भाव से सेवा करता है. जिसने अपने संपूर्ण परिवार पति, बच्चों को समाज व देश से...
मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने वाली ‘बा’ कहाँ

मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने वाली ‘बा’ कहाँ

समसामयिक
151वीं गांधी जयंती पर विशेष प्रकाश उप्रेती नैतिक शिक्षा की किताब के पीछे दुबली-पतली, आधी झुकी हुई काया, बदन पर धोती लपेटे,  हाथ में लाठी वाली तस्वीर से जब पहली बार सामना हुआ तो हैड मास्टर साहब ने becauseबताया की ये महात्मा गाँधी अर्थात बापू हैं. यह तस्वीर और स्मृति ही बड़े-होने के साथ बड़ी होती गई.परंतु इनमें कहीं भी ‘बा’ (कस्तूरबा) नहीं थीं. बापू को लेकर बचपन से ही जो समझ बनी उसमें कहीं बा नहीं थीं. जबकि मोहनदास करमचंद गाँधी को बापू और महात्मा गाँधी बनाने में ‘बा’ की बड़ी भूमिका थी. इस बात को स्वयं बापू ने भी बहुत बार स्वीकार किया.संध्या भराड़े अपनी किताब  ‘बा’ में लिखती हैं कि जॉन एस॰ हाइलैंड से बापू ने एक बार कहा, ‘मैंने बा से अहिंसा का पहला सबक सीखा. नैतिक एक ओर तो वह मेरे विवेकहीन आदर्शों का दृढ़ता से विरोध करतीं, दूसरी so ओर मेरे अविचार से जो तकलीफ उन्हें होती उसे चुपचाप सह ल...