Tag: उपन्यास

रोचकता आद्यान्त बनाये रखता है उपन्यास, अपनी तरफ खिंचती है इसकी भाषा शैली

रोचकता आद्यान्त बनाये रखता है उपन्यास, अपनी तरफ खिंचती है इसकी भाषा शैली

पुस्तक-समीक्षा
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली राष्ट्रवाक् पत्रिका के फेसबुक पेज पर पिछले दिनों ललित फुलारा के पहले उपन्यास ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’ पर ऑनलाइन परिचर्चा हुई. यह उपन्यास साल 2022 में प्रकाशित हुआ और साल के अंत तक इस उपन्यास को साहित्य आज तक ने वर्ष के युवा लेखकों की शीर्ष 10 पुस्तकों में शामिल किया. यह उपन्यास यश पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुआ और इसने पाठकों का वृहद ध्यान अपनी तरफ खिंचा है. कैंपस केंद्रित इस उपन्यास को अच्छी खासी पाठकीय प्रशंसा मिली है. उपन्यास के छपने के सालभर बाद पहली बार इस पर ऑनलाइन परिचर्चा रखी गई थी. जिसमें इंडियाडॉटकॉम के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार सुनील सीरीज, चर्चित लेखक, आईटीबीपी में डिप्टी कमांडेंट, एवं राष्ट्रवाक् पत्रिका के संपादक कमलेश कमल  व शिक्षाविद् एवं दिल्ली सरकार में उप शिक्षा निदेशक डॉक्टर राजेश्वरी कापड़ी ने इसके कथानक, भाषा शैली और शिल्प पर अपने विच...
‘एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति’

‘एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति’

संस्मरण
डॉ. अरुण कुकसाल जीवन के पहले अध्यापक को भला कौन भूल सकता है. अध्यापकों में वह अग्रणी है. शिक्षा और शिक्षक के प्रति बालसुलभ अवधारणा की पहली खिड़की वही खोलता है. जाहिर है एक जिम्मेदार और दूरदर्शी पहला अध्यापक बच्चे की जीवन दिशा में हमेशा मार्गदर्शी रहता है. चंगीज आइत्मातोव का विश्व चर्चित उपन्यास ‘पहला अध्यापक’ का नायक इसी भूमिका में है. यह उपन्यास जड़ समाज को जीवंतता की ओर ले जाने वाले एक अध्यापक की कोशिश और कशिश की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति है. ‘पहला अध्यापक’ उपन्यास 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में सोवियत संघ के किरगीजिया पहाड़ी इलाके के कुरकुरेव गांव की सच्ची घटनाओं से शुरू होता है. उपन्यास के सभी पात्रों ने वही जीवन जिया जो उपन्यास में है. चंगीज आइत्मातोव ने केवल उनके जीवन की बातों और घटनाओं को साहित्यिक प्रवाह दिया है. ‘पहला अध्यापक’ उपन्यास 20वीं शताब्दी के तीसरे दशक में सोवियत...
‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत

‘गिदारी आमा’ के विवाह गीत

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी "पिछले लेखों में शम्भूदत्त सती जी के 'ओ इजा' उपन्यास के सम्बन्ध में जो चर्चा चल रही है,उसी सन्दर्भ में यह महत्त्वपूर्ण है कि इस रचना का एक खास प्रयोजन पाठकों को पहाड़ की भाषा सम्पदा और वहां प्रचलित लोक संस्कृति के विविध पक्षों तीज-त्योहार, मेले-उत्सव खान-पान आदि से अवगत कराना भी रहा है.जैसा कि लेखक ने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है- “पाठकों के समक्ष यह उपन्यास प्रस्तुत करते हुए मैं इस बात का निवेदन करना चाहता हूँ कि दिनोंदिन गांवों का शहरीकरण होने के कारण उसकी बोली, खान-पान, रहन-सहन, लोक-परम्पराएं और लोक भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं.इसलिए यहां मैंने कुमाऊंनी बोली (जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर है) को अपनी बात कहने का माध्यम बनाकर प्रस्तुत उपन्यास में कुमाऊंनी हिंदी का प्रयोग किया है.” इस उपन्यास में 'झंडीधार' गांव की 'आमा' का एक किरदार कुछ ऐसा ही है,ज...
‘ओ इजा’ उपन्यास में कल्पित इतिहास चेतना और पहाड़ की लोक संस्कृति

‘ओ इजा’ उपन्यास में कल्पित इतिहास चेतना और पहाड़ की लोक संस्कृति

साहित्यिक-हलचल
शम्भूदत्त सती का व्यक्तित्व व कृतित्व-2 डॉ. मोहन चन्द तिवारी पिछले लेख में शम्भूदत्त सती जी के 'ओ इजा' उपन्यास में नारी विमर्श से सम्बंधित चर्चा की गई थी. इस उपन्यास का एक दूसरा खास पहलू पहाड़ के लोगों की इतिहास चेतना और लोक संस्कृति से भी जुड़ा है,जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. पहाड़ वालों ने अपने इतिहास और धार्मिक तीर्थस्थानों के सम्बन्ध में सदियों से जो अनेक प्रकार की भ्रांतियां और अंधरूढ़ियां पालपोष रखी हैं,ज्यादातर वे या तो किंवदंतियों या जनश्रुतियों पर आधारित हैं या साम्राज्यवादी अंग्रेज इतिहासकारों की सोच के कारण पनपी हैं. पहाड़ी समाज में कस्तूरी की गंध की तरह रची बसी इन भ्रांतियों को आज कोई प्राचीन ऐतिहासिक साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर खारिज भी करना चाहे तो नहीं कर सकता, क्योंकि ये आस्था और विश्वास के रूप में अपनी गहरी पैंठ बना चुकी हैं.यहां पहाड़ के विभिन्न मंदिरों और यह...
सुन रहे हो प्रेमचंद! मैं विशेषज्ञ बोल रहा हूँ

सुन रहे हो प्रेमचंद! मैं विशेषज्ञ बोल रहा हूँ

साहित्यिक-हलचल
प्रकाश उप्रेती पिछले कई दिनों से आभासी दुनिया की दीवारें प्रेमचंद के विशेषज्ञों से पटी पड़ी हैं. इधर तीन दिनों से तो तिल भर रखने की जगह भी नहीं बची है. एक से बढ़कर एक विशेषज्ञ हैं. नवजात से लेकर वयोवृद्ध विशेषज्ञों की खेप आ गई है. गौर से देखने पर मालूम हुआ कि इनमें तीन तरह के विशेषज्ञ हैं. वैसे तीनों कोटि के विशेषज्ञ नाभिनालबद्ध हैं. because अंतर बस आभा में है. तीनों की अंतरात्मा जोर देकर यही कहती है- प्रेमचंद पर भी पढ़ना पड़ेगा क्या? उन पर तो बोला जा सकता है. इस भाव के साथ ये प्रेमचंद की आत्म को बैकुण्ठ देने मैदान में उतर आते हैं. इन तीन कोटि के विशेषज्ञों के बारे में थोड़ा जान लें- ज्योतिष इनमें पहली कोटि के विशेषज्ञ वो हैं जिन्होंने सालों- साल से प्रेमचंद की कोई कहानी तक नहीं पढ़ी है. ये प्रथम कोटि के विशेषज्ञ हैं. ये पूर्वज्ञान के बल पर ही प्रेमचंद को निपटा देते हैं. because यह कोई ...
आपका बंटी: एक समझ

आपका बंटी: एक समझ

साहित्यिक-हलचल
पुस्तक समीक्षा  डॉ पूरन जोशी  आपका बंटी उपन्यास प्रसिद्ध उपन्यासकार कहानीकार मनु भंडारी द्वारा रचित है. मनु भंडारी, उनीस सौ पचास के बाद जो नई कहानी का आंदोलन हमारे देश में शुरू हुआ उसकी एक सशक्त अग्रगामियों में से हैं. कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, भीष्म साहनी के साथ उनका नाम एक प्रमुख स्तंभ के रूप में लिया जा सकता है. जिस दौर में मनु भंडारी ने लिखना शुरू किया वह भारत के लिए एक नितांत नया समय था, देश औद्योगिकरण नगरीकरण और आधुनिकता की नई इबारतें लिख रहा था. ऐसे समय में देश में सभी वर्गों को लेकर के एक नई बहस की आवश्यकता थी. पुरुष-स्त्री अन्य सभी वंचित वर्ग मिलकर के एक नए भारत की नई तस्वीर बनाने में लगे हुए थे. ऐसे समय में साहित्य में महिला विमर्श के स्वर बुलंद करने वाली मनु भंडारी प्रथम पंक्ति की साहित्यकारों में आती हैं. जब महिलाएं बड़ी संख्या में अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने निकल रही...