रोचकता आद्यान्त बनाये रखता है उपन्यास, अपनी तरफ खिंचती है इसकी भाषा शैली

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  • हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली

राष्ट्रवाक् पत्रिका के फेसबुक पेज पर पिछले दिनों ललित फुलारा के पहले उपन्यास ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’ पर ऑनलाइन परिचर्चा हुई. यह उपन्यास साल 2022 में प्रकाशित हुआ और साल के अंत तक इस उपन्यास को साहित्य आज तक ने वर्ष के युवा लेखकों की शीर्ष 10 पुस्तकों में शामिल किया. यह उपन्यास यश पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुआ और इसने पाठकों का वृहद ध्यान अपनी तरफ खिंचा है. कैंपस केंद्रित इस उपन्यास को अच्छी खासी पाठकीय प्रशंसा मिली है.

उपन्यास के छपने के सालभर बाद पहली बार इस पर ऑनलाइन परिचर्चा रखी गई थी. जिसमें इंडियाडॉटकॉम के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार सुनील सीरीज, चर्चित लेखक, आईटीबीपी में डिप्टी कमांडेंट, एवं राष्ट्रवाक् पत्रिका के संपादक कमलेश कमल  व शिक्षाविद् एवं दिल्ली सरकार में उप शिक्षा निदेशक डॉक्टर राजेश्वरी कापड़ी ने इसके कथानक, भाषा शैली और शिल्प पर अपने विचार रखे, जो संक्षिप्त तौर पर नीचे लिखे जा रहे हैं. कार्यक्रम का संचालन लेखिका प्रिया राणा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन यश पब्लिकेशंस के निदेशक जतिन भारद्वाज ने दिया.

सुनील सीरीज ने कहा-  उपन्यास में प्रवाह है. नॉवेल के किरदार मुझे अपने आसपास के किरदार लगे. मैंने यह उपन्यास दो बार पढ़ा. इसके सूत्र वाक्य सोचने पर मजबूर करते हैं जैसे कि घासी कहता है-  ‘चेलों को कुछ करना पड़ेगा तभी गुरु कुछ करेंगे, नहीं तो जीवन भर गुणगान कराते रहेंगे.’ उपन्यास में व्यंग्य है. हास्य है और इसकी भाषा शैली प्रवाहपूर्ण है. उपन्यास में गालियां हैं, लेकिन अतिरंजित बिल्कुल नहीं है, पात्रानुकूल एवं परिवेश के अनुकूल हैं.

इस उपन्यास में मौजूद सारे किरदारों के पत्रकारिता में आना का मकसद क्या रहा है इसे गौर से देखा जाना चाहिए. साल 2000 के बाद ऐसा दौर आया जब सरकारी नौकरियों में पाबंदी लग गई  और भर्ती नहीं हो रही थी. अचानक से करियर के रूप में पत्रकारिता आ गया. टीवी चैनलों का विस्तार हो रहा था और डिजिटल शुरुआती दौर में था. नये-नये लोग टीवी के सितारे बन रहे थे और उन्हें देखकर हर युवा एंकर और रिपोर्टर बनने के लिए पत्रकारिता में आने की सोच रहा था.  इस उपन्यास के किरदारों से भी पता चल जाएगा कि कितने लोग सीरियस होकर पत्रकार बनने आये थे. घासी एकदम निश्छल किरदार है. अल्लड़ है और भावावेश में चीजें करता है. इस उपन्यास में मौजूद सूक्त वाक्य कैंपस में ही नहीं बल्कि जीवन की बाकी चीजों में भी फिट बैठते हैं. घासी का जिंदगी के प्रति जो नजरिया है, अनुभव है, वो जो भी कह रहा है वो बहुत प्रैक्टिकल है. उसका ज्ञान प्रैक्टिकली इनरिज्ड है. वो कुछ जगहें ऐसे सूक्त वाक्य दे रहा है जो आपकी पूरी जिंदगी काम आएंगी.

कमलेश कमल- इस उपन्यास का का कथानक कैंपस केंद्रित है. कैंपस केंद्रित कहानियां पाठकों को आकर्षित करती हैं.  घासी प्यारा- सा करेक्टर है जो कहता है कि 21वीं सदी चेलों की है और गुरु पर हावी होने की है. उसने कक्षा में घोषणा कर दी कि इस युग का महानायक केजरीवाल होगा जिसने गुरु को साइड करके अपने को ऊपर रखा है. इस उपन्यास में जहां व्यंग्य है वहां हास्य के पर्याप्त अंश हैं. उपन्यास में मौजूद सत्य बेहद रोचक है.

कहीं न कहीं से हर लेखक अनुभव प्रसूत लेखन करता है. उसके अलग- अलग अनुभव अलग पात्रों के माध्यम से रूपायित होते हैं. यह उपन्यास रोचकता लिये हुए है और सुरुचिपूर्ण है. पढ़ने से आपको आनंद आयेगा और गुदगुदी होगी. घासी और उसकी मंडली ने क्या-क्या कांड किये ये आपको गुदगुदाएंगे. उपन्यास की भाषा पात्रानुकूल, विषयानुकूल और अवसरानुकूल है.

उपन्यास के पात्र जो बोलते हैं आप कैंपस में चले जाइये उसी तरह की भाषा बोली जाती है. ऐसा तो नहीं है कि कैंपस की भाषा कुछ और है और यहां पर कुछ और मिश्रित, नकली और कृतिम भाषा पाठकों पर थोप दी गई है.  मुझे लगता है कि इस उपन्यास ने जो पर्याप्त ध्यान बटोरा है,  आकर्षण रखा है, लोगों को अपनी तरफ आकृष्ट किया है,  साहित्य तक ने भी अगर इसको साल 2022 की 10 पुस्तकों में गिना है,  शुमार किया है तो इसमें जो सबसे बड़ी बात रही है, वो इसकी रोचकता है जो कहीं नहीं खोई है. इस उपन्यास की रोचकाकता आद्यान्त और आवारण से आवरण तक है.

डॉ. राजेश्वरी कापड़ी-  आज के बच्चे इस उपन्यास को पढ़ेंगे तो अपने को इसके बीच पाएंगे. उपन्यास बेहद मजेदार है. लेखक ने इसमें अपनी भड़ास निकाली है, लिहाज के साथ. उसने कहा कि पात्र बैताल की तरह मेरे आसपास घूमते थे. किसी तरह भड़ास निकाल दी.  लेखक पारिवारिक है, लिहाज भी रखा, सम्मानित पेशे से भी आता है. यह उपन्यास मैंने खरीद कर पढ़ा, लेखक से जब मेरी भेंट हुई तब मैं यह उपन्यास खरीद चुकी थी. तो मैंने कहा- अरे तुम ललित फुलारा हो.

इस उपन्यास और हममे एक पीढ़ी का फर्क है. सबसे पहले मैं इस उपन्यास की प्रेम कहानियों में जाऊंगी. ये प्रेम हमारी पीढ़ी के प्रेम से अलग है. इसमें मना करने के भी बड़े मजेदार तरीके हैं. सुमित्रा कहती है- मैं तुझे अच्छी लगती हूं तो तू कर ले प्रेम, मेरा कोई और प्रेमी है.’ ये मेरे लिए बड़ी मजेदार बात थी. कितनी मजेदारी और साफगोई से बच्चे मना कर देते हैं. यहां प्रेम में संवेदना है तो मना करने में भी साफगोई है. उपन्यास की भाषा आजकल के बच्चों से बड़ी रिलेट करती है. इस उपन्यास से आजकल के बच्चे अपने को अच्छे से रिलेट करेंगे. वास्तविक पात्रों में भी लेखक ने यह ध्यान रखा कि किसी को कष्ट न हो. मैं जब पढ़ रही थी तो सोच रही थी कि यह करने में इसे कितनी मेहनत लगी होगी. सारे पात्र वास्तविक हैं, और लिहाज भी रखा है. उपन्यास ने बांधकर रखा.  बार-बार जिज्ञासा बनी रहती है कि आगे क्या होगा. उपन्यास में लेखन ने बदलती हुई मानवीय संवेदनाओं को छुआ है. घासी गुरु को तो गाली दे रहा है और माता जी से बिस्कुट मांग रहा है, लिहाज भी कर रहा है. उपन्यास में संस्कृतियों का भी फर्क देखने को मिलता है.

लेखक ने बड़ी निडरता से पात्रों को लिखा. पात्रों के किस्सों को संकोच से साफगोई तक लेकर गये लेखक. घासी को ज्यों का त्यों उतार दिया. इस उपन्यास की भाषा अपनी तरफ खिंचती है.

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