Tag: उत्तरायण

स्व. चन्द्रसिंह ‘राही’ : त्याडज्यू सै गै छा हो!

स्व. चन्द्रसिंह ‘राही’ : त्याडज्यू सै गै छा हो!

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (10 जनवरी, 2018) पर राही जी का स्मरण चारु तिवारी रात के साढ़े बारह बजे उनका फोन आया. बोले, ‘त्याड़ज्यू सै गै छा हो?’ एक बार और फोन आया. मैंने आंखें मलते हुये फोन उठाया. सुबह के चार बजे थे. बाले- ‘त्याड़ज्यू उठ गै छा हो.’ उनका फोन कभी भी आ सकता था. कोई औपचारिकता नहीं. मुझे भी कभी उनके वेवक्त फोन आने पर झुझंलाहट नहीं हुई. अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट स्थित मेरे गांव तक वे आये. मेरे पिताजी को वे बाद तक याद करते रहे. घर में जब आते तो बच्चों के लिये युद्ध का मैदान तैयार हो जाता. वे ‘बुड्डे’ की कुमाउनी वार से अपने को बचाने की कोशिश करते. पहली मुलाकात में पहला सवाल यही होता कि- ‘त्वैकें पहाड़ि बुलार्न औछों कि ना?’ मेरी पत्नी किरण तो उनके साथ धारा प्रवाह कुमाउनी बोलती. पानी के बारे में उनका आग्रह था कि खौलकर रखा पानी ही पीयेंगे. हमारी श्रीमती जी हर बार इस बात का ध्यान रखती और उनको आश्वस्त क...
‘द्वितीयं ब्रह्मचारिणी’ : देवी का सच्चिदानन्दमयी स्वरूप

‘द्वितीयं ब्रह्मचारिणी’ : देवी का सच्चिदानन्दमयी स्वरूप

लोक पर्व-त्योहार
नवरात्र चर्चा - 2   डॉ. मोहन चंद तिवारी कल नवरात्र के प्रथम दिन ‘शैलपुत्री’ देवी के पर्यावरण because वैज्ञानिक स्वरूप पर प्रकाश डाला गया जो प्रकृति परमेश्वरीका प्रधान वात्सल्यमयी रूप होने के कारण पहला रूप है. आज नवरात्र के दूसरे दिन देवी के ‘ब्रह्मचारिणी’ रूप की पूजा-अर्चनाकी जा रही है. ज्योतिष देवी के इस दूसरे ‘ब्रह्मचारिणी’ because स्वरूप को प्रकृति के सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप के रूप में निरूपित किया जा सकता है. ऋग्वेद के ‘देवीसूक्त’ में अम्भृण ऋषि की पुत्री वाग्देवी ब्रह्मस्वरूपा होकर समस्त जगत को ज्ञानमय बनाती है और रुद्रबाण से अज्ञान का विनाश करती है - ज्योतिष  “अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे because शरवे हन्तवा उ. ज्योतिष अहं जनाय because समदं कृष्णोम्यहं द्यावापृथिवी because आ विवेश..” -(ऋ.10.125.6) ‘देव्यथर्वशीर्ष’ में भगवती देवों से अपने because स्व...
पितृपूजा: वैदिक धर्म की विराट ब्रह्मांडीय अवधारणा

पितृपूजा: वैदिक धर्म की विराट ब्रह्मांडीय अवधारणा

लोक पर्व-त्योहार
पितृपक्ष: धर्मशास्त्रीय विवेचन-2 डॉ. मोहनचंद तिवारी मैंने पिछले लेख में भारतीय काल गणना के अनुसार पितृपक्ष के बारे में बताया था कि धर्मशात्र के ग्रन्थ  ‘निर्णयसिन्धु’ के अनुसार आषाढी कृष्ण अमावस्या से पांच पक्षों के because बाद आने वाले पितृपक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितर जन क्लिष्ट होते हुए अपने पृथ्वीलोक में रहने वाले वंशजों से प्रतिदिन अन्न जल पाने की इच्छा रखते हैं- “आषाढीमवधिं कृत्वा पंचमं because पक्षमाश्रिताः. कांक्षन्ति because पितरःक्लिष्टा अन्नमप्यन्वहं because जलम् ..” ज्योतिष यानी आश्विन मास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि देकर संतुष्ट करेंगे. इसी इच्छा को लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक में because आते हैं. पितृपक्ष में यदि पितरों को पिण्डदान या तिलांजलि नहीं मिलती है तो वे पितर निरा...
अचानक याद आना एक गीत का

अचानक याद आना एक गीत का

साहित्‍य-संस्कृति
चारु तिवारी ‘गरुड़ा भरती, कौसाणी ट्रेनिंगा...!’ उन दिनों हमारे क्षेत्र बग्वालीपोखर में न सड़क थी और न बिजली. मनोरंजन के लिये सालभर में लगने वाला ‘बग्वाली मेला’ और ‘रामलीला’. बाहरी दुनिया से परिचित होने का because एक माध्यम हुआ- रेडियो. वह भी कुछ ही लोगों के पास हुआ. सौभाग्य से हमारे घर में था. रेडियो का उन दिनों लाइसेंस होता था. उसका हर साल पोस्ट आॅफिस से नवीनीकरण कराना पड़ता था. इसी रेडियो की आवाज से हम दुनिया देख-समझ लेते. हमारे सबसे लोकप्रिय कार्यक्रम थे- ‘उत्तरायण’ और ‘गिरि गुंजन’. बाद में ‘बिनाका गीतमाला’, ‘क्रिकेट की कैमेंट्री’, ‘रेडियो नाटक’, ‘वार्ताओं’, ‘बीबीसी’ और समाचारों से भी हमारा रेडियो के साथ नाता जुड़ा, लेकिन शुरुआती दिनों में कुमाउनी गीत सुनना ही हमारी प्राथमिकता थी. .पासिंग आउट परेड उन दिनों एक गीत बहुत प्रचलित था- ‘गरुड़ा भरती कौसाणी ट्रैनिंगा, देशा का लिजिया लड़ैं ...
पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

पहाड़ की माटी की सुगंध से उपजा कलाकार : वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’   

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (8 जुलाई) पर विशेष डॉ. मोहन चन्द तिवारी आज उत्तराखंड की लोक संस्कृति के पुरोधा वंशीधर पाठक जिज्ञासु जी की पुण्यतिथि है. जिज्ञासु जी ने कुमाऊं और गढ़वाल के लोक गायकों, लोक कवियों और साहित्यकारों को आकाशवाणी के मंच से जोड़ कर उन्हें प्रोत्साहित करने का जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया और आकाशवाणी से प्रसारित होने वाले अपने लोकप्रिय कार्यक्रम 'उत्तरायण' के माध्यम से देशभर में पहाड़ की संस्कृति का लंबे समय तक प्रचार-प्रसार किया,उसके लिए उन्हें उत्तराखंड के लोग सदा याद रखेंगे. जिज्ञासु जी को प्रारम्भ से ही कविताएं और कहानियां लिखने का बहुत शौक था. इसलिए इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी. वर्ष 1962 में उनके मित्र जयदेव शर्मा ‘कमल’ ने उन्हें आकाशवाणी में विभागीय कलाकार के रूप में आवेदन करने को कहा. उस समय 1962 में चीनी हमले के बाद भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश के सीमां...