कविताएं

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ!

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ!

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सुधा भारद्वाज “निराकृति” अबोध भूली बाल स्वभाव वह... बहती थी सरिता सम वह... क्या सोच उसे समाज की... कुछ अजब रूढ़ी रिवाज की... परिणाम छूटी शि क्षा उसकी... नही हुई पूरी कोई आस उसकी... सपने देखे बहुत बड़े-बड़े थे... रिश्ते तब सब आन अड़े थे... छूट गयी सभी सखी सहेली... जीवन बना था एक पहेली... जिस उम्र में सखियाँ करती क्रीड़ा... वह झेल रही थी प्रसव पीड़ा... अबोध अशिक्षित अज्ञानी वह... क्या देगी बालक को शिक्षा... जीवन के हर कठिन मोड़ पर... काम तो आती है शिक्षा... परिस्थितियां विपरित भले हो... कार्य यदि हो सभी समय पर... नही उठाना पड़ता जोख़िम... हाथ बँटाती है शिक्षा... (विकासनगर उत्तराखण्ड)...
आओ! ऐसे दीये जलायें 

आओ! ऐसे दीये जलायें 

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भुवन चन्द्र पन्त आओ ! ऐसे दीये जलायें गहन तिमिर की घुप्प निशा में तन-मन की माटी से निर्मित गढ़ कर दीया मात्र परहित में परदुख कातरता से चिन्तित स्नेह दया का तेल मिलायें आओ! ऐसा दीया जलायें दीवाली के दीये से केवल होता है बाहर ही जगमग गर अन्तर के दीप जला लो ज्योर्तिमय होगा अन्तरजग खुशी सौ गुनी करनी हो तो खुद जलकर बाती बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें बन असक्त की शक्ति कभी हम उसके अन्तर्मन को झांकें सीने पर भी हाथ लगाकर निजमन की खुशियों को आंकें अगर जरूरत पड़े अपर को अन्धे की लाठी बन जायें आओ ! ऐसा दीये जलायें दीपालोकित अपना घर हो बाजू घर ना चूल्हा जलता श्रम तुमसे दुगना करता वह क्या तुमको ये सब नहीं खलता? क्यों न पड़ोसी के घर को भी मानवता का हाथ बढा़यें आओ ! ऐसे दीये जलायें एक ही माटी के सब पुतले वो धुंधले हैं और तुम क्यों उजले? तकदीरों का खेल तमाशा निराधार ...
आमरऽ उत्तराखंड क हाल

आमरऽ उत्तराखंड क हाल

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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 (रवांल्टी कविता ) अनुरूपा “अनुश्री” उत्तराखण्ड बणी के कति साल हइगे, बेरोजगार यो पहाड़ी मुलुकई रइगो. कति पायो कति खोयो यूं सालु पोडो, त पु किचा न पड्यो आमार पला ओडो. इक्कीस साल बिचिगे यां आस मा, कि किचा रोजगार आलो कतरांई त आमर हातु मा. जियूं नेताऊं क बाना यो राज्य बणि्यो, तियं भाई-भतीजावाद की राजनीति आणी. जति पु नेता आये  ततियें राजनीति करी, ओर घर  सबुओं आपड़ई भरे. चंद लोगु को भलऽ कतरांई हई पु रल, त का बड़ो काम दयो यें करी. आपु वोटु को सोउदा करिके, गरीब शरीफ दये बदनाम करी. सोचो देई  मेर भाई - बइणियों, कोइच छुटिगे तियूंक स बड़-बड़ वादा. जागी जाओ अब त आमर पहाड़ क नवजवानो, आपड़ उत्तराखंड क विकास करनऽ क बाना.. नानई, मोरी, उत्तरकाशी (उत्तराखंड)...
प्यारा उत्तराखंड

प्यारा उत्तराखंड

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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 आदेश सिंह राणा  केदारखण्ड और मानसखण्ड, देवभुमि है मेरी उत्तराखंड. पहाड़ों और फूलों की घाटी, वीर धरा है मेरी राज्य की माटी. प्रदेश में मेरे मिलता है ऐसा सुकून, लगता है माँ का आँचल. देवभूमि के नाम से विख्यात है, यह है अपना प्यारा उत्तरांचल. गढ़वाल और कुमाऊँ दो खंड है, तेरह जिले है पहचान इसके. हिम शिखरों से सुसज्जित है, निवास यहाँ है सब देवों की. ऋषियाँ की है तप स्थली, मुनियाँ की यह जप स्थली है. पंच बदरी पंच केदार, पंच मठ है यहाँ पंच प्रयाग. वीरों की यह भूमि है, सैन्य धाम है उत्तराखंड. बलदानियों ने यहाँ जन्म लिया है, पूरी दुनिया हमने नाम किया है. चारों दिशाओं में चार धाम हैं, माँ गंगा जी उदगम है यहाँ. यमुना जी भी निकल है यहाँ से, स्वर्ग जाने का मिलता है पथ यहाँ. सैकड़ों नदियाँ बहती है यहाँ से, जो देतें है पूरे भा...
क्या यही राज्य हमने मांगा था

क्या यही राज्य हमने मांगा था

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उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस 2020 धीरेन्द्र सिंह चौहान खटीमा मसुरी रामपुर तिराह में हुआ आंदोलनकारियों का  हत्या कांड उन शहीदों के बदौलत है आज उत्तराखंड, जिन्होंने हिलाया था ब्रह्मांड राज्य बनाने की खातिर आंदोलनकारी रहे सलाखों में खाई लाठी और गोलियां सलामत रहेगी कब तक देवभूमि में भ्रष्टाचार अधिकारी, शराब माफियों की टोलियां मंत्री, संतरी नेता और विधायक, सांसद अधिकारी सारे पड़े हैं, कमिशन की मौज में देख रहे हैं आंदोलनकारी, बोल रही है जनता क्या यही राज्य हमने माँगा, पड़ी है सोच में अधिकारियों में पनपा भ्रष्टाचार नेताओं में पनपा है पाखंड गढ़वाल कुमाऊँ की जनता ने इस खातिर नहीं माँगा था उत्तराखंड नौरी पुरोला, उत्तराखंड...
अपना गाँव

अपना गाँव

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अंकिता पंत गाँवों में फिर से हँसी ठिठोली है बुजुर्गों ने, फिर किस्सों की गठरी खोली है. रिश्तों में बरस रहा फिर से प्यार मन रहा संग, खुशी से हर त्यौहार. गाँवों में फिर से खुशियाँ छाई हैं परदेसियों को बरसों बाद, घर की याद आई है. महामारी एक बहाना बन कर आ गई खाली पड़े मकानों को, बरसों बाद घर बना गई. पहाड़ अब और अधिक चमकने लगे हैं अपनों से जुड़कर, ये रिश्ते और अधिक महकने लगे हैं. रिश्तों की चाहत, अपनी मिट्टी से फिर जुड़ने लगी है अब मेरे पहाड़ों को, सुकूँ भरी राहत मिलने लगी है. विजयपुर  (खन्तोली) जनपद – बागेश्वर, उत्तराखंड  ...
लोकतंत्र

लोकतंत्र

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भारती आनंद तानाशाही का अंत हुआ, फिर भारत में लोकतंत्र आया. जनता के द्वारा शासन यह, जनता का शासन कहलाया. जनता के हित की ही खातिर, नव नियमों का विधान किया. जन अधिकारों को आगे रखा, संविधान इसे नाम दिया. जन-जन की बात सुनेगा जो, जन-जन के लिए जियेगा जो. उसको ही चुनेंगे अपना शासक, जनता के साथ चलेगा जो. वो अपना ही तो भाई होगा, अपनी हर बात सुनायेगे. जो होगा भारत के हित में, हम काम वही करवायेंगे. मौलिक अधिकार मिले जनता को, जख्म पुराने भर जायेंगे. लोकतंत्र से चलता है भारत, दुनिया को दिखलायेंगे. लिखी जायेगी नई इबारत नया दौर फिर से आयेगा. बनकर कोई भी तानाशाही, अत्याचार न कर पायेगा. सत्तर वर्षो में देखो कैसे बदल गयी है परिभाषा. लोकतंत्र भी बदल गया है, बदल गयी सब अभिलाषा. काम के सारे रंग ढंग बदले,जनप्रतिनिधी हो गये नेताजी. कुछ दलों में हुए विभाजित, कुछ अपने में ही राजी. क्षेत्र...
नै लिख्वार, नै पौध

नै लिख्वार, नै पौध

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                            कुछ गढवाली रचना                                दिशा धियाण नवरात्रों बेटी पूजदा                                ना जाणि कै दौ बलात्कार ह्वोणू जे समाज देश मा                                   बेट्यूं इज्जत तार तार ह्वोणू रावण अथा घूमण लग्या                          हर बेटी जांगणी न्यो निसाफ तख राम जी का भेस मा.                       बेटी जन्म ह्वोण किले च पाप. गर्भ बटिन भला बीज डाळा बलात्कारी नीच सोच ना पाळा जन नौनी अपडि होंदि हक्कै भी तनी मांणा दूं बिरांणा नौन्यूं सम्मान कन नौन्याळू घौरै बटि समझा दूं. अश्विनी गौड़, राउमावि पालाकुराली, रूद्रप्रयाग अबकि बार मैनत से बणाई सजांई कूडी बांजा पडिगिन चौक तिबार यखुलि छूटी गैन. तुमारी सैती बांज बुराश पैंया मोळिगिन झपझपी घास काटणो हवेगिन. यि बण डाळा पुंगणा देखी देखी थकी गैन तुमारि जग्वाळ ...
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

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कविता 'करुणा' कोठारी जिसे गर्भ में भी सम्मान न मिला, जो कभी फूलbecause बनकर न खिला। उसके अस्तित्व so का नया दौर चलाओ, बेटी बचाओ,because बेटी पढ़ाओ! जिसके होने सेbecause जगत का अस्तित्व, उसके होने परbut छायी उदासी, काश! उसके so दर्द का हिस्सा, तुम्हें भी पहुंचाता चोट जरा-सी चाहे मंदिरों में because पूजा न कराओ! बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ! जगत न उसका हिस्सा,because वो सिर्फ एक किस्सा, बाबुल के आंगन so में जो खिलखिलायी, जिसने बनाकरbut मिट्टी के खिलौने, घर के खालीbecause कोने सजोय, लेकर विदा!so जब चली जाए एक दिन पीछे से दु:ख की न बातें जताओ! बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ! जगह काश! की because चूड़ियों की जगह, फौलाद कीbecause जंजीरे पहनाते, बेटे की तरहbecause उसे भी वतन पर, हंसते—हंसते because मर—मिटना सिखाते, कंधों पर सितारेbecause संजाकर तुम उसके हौसले को सिर्फbecause एक बार आज...