साहित्‍य-संस्कृति

बुद्ध पूर्णिमा: जीवन जीने का धर्म

बुद्ध पूर्णिमा: जीवन जीने का धर्म

साहित्‍य-संस्कृति
बुद्ध पूर्णिमा 5 मई  पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  पूजा और प्रशस्ति के बीच बुद्ध की प्रखर चिंतन प्रक्रिया ओझल या सरलीकृत हो जाती है. उनकी चिंतन प्रक्रिया कोरे वाग्विलास की जगह व्यावहारिक समाधान की ओर उन्मुख थी. जीवन की पीड़ादायी और असंतोषजनक स्थिति उनके विचार-यात्रा का मूल थी. जन्म मृत्यु के बंधन कारागृह जैसे ही थे. पुनर्जम का अनवरत चलने वाला वात्याचक्र दुःख का कारण था और इससे उबरना मुख्य समस्या थी . ईसा पूर्व पाँचवी सदी में जन्मे महात्मा बुद्ध अपने समय में प्रचलित धर्म-कर्म, विश्वास और जीवन पद्धति की विसंगतियों से क्षुब्ध थे. इतिहास में यह वह काल था जब कृषि की समृद्धि से नगर जन्म ले रहे थे और व्यापार के माध्यम से भारत से बाहर की संस्कृति की जानकारी भी मिल रही थी. बाह्य सम्पर्क से यह भी पता चल रहा था कि जातिविहीन समाज भी होते हैं और संस्कृत के अतिरिक्त और भी भाषाएँ बोली जाती हैं. बढ़त...
हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

हिमांतर के नए अंक ‘हिमालयी लोक समाज व संस्कृति’ का विमोचन

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, हरिद्वार-देहरादून हिमांतर का नया अंक आ गया है. हर बार की तरह यह अंक भी कुछ खास और अलग है. हिमांतर केवल एक पत्रिका नहीं, बल्कि हिमालयी सरोकारों, संस्कृति और लोक जीवन का दर्पण बनती जा रही है. अब तक के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं. हर अंक ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. इस बार का अंक भी पहले के अंकों से अलग है. लेकिन, हर अंक की तरह ही इसकी आत्मा भी हिमालयी लोक समाज में बसती है. खास बात यह है कि इस बार के अंक नाम भी हिमालयी लोक समाज व संस्कृति रखा गया है. हरिद्वार में आयोजित रवांल्टा सम्मलेन में हिमांतर के नए अंक का विमोचन किया गया. हिमांतर की खास बात यह है कि इसमें हिमालयी सरोकारों और हिमालयी समाज को केवल छूया भर नहीं जाता, बल्कि गंभीरता से हर पहलू को सामने लाया जाता है. इस बार के अंक के अतिथि संपादक रचनात्मकता के लिए पहचाने जाने वाले राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता शिक्षक और...
सिलपाटा से सियाचिन तक प्रमाणिक जीवन की अनुभूति का यात्रा- वृत्तांत

सिलपाटा से सियाचिन तक प्रमाणिक जीवन की अनुभूति का यात्रा- वृत्तांत

साहित्‍य-संस्कृति
हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली यात्रा, भूगोल की दूरी को नापना भर नहीं है बल्कि भूगोल के भीतर की विविधता को ठहर कर महसूस करना और समझना है. यही स्वानुभूति  यात्रा- वृत्तांत का आत्मा और रस तत्व होता है. इसी स्वानुभूति की प्रमाणिकता को आत्मसात करने वाली पुस्तक है, 'सिलपाटा से सियाचिन तक'. हिमांतर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का 13 जनवरी, 2023 को दिल्ली में संस्कृत अकादमी के सभागार में लोकार्पण हुआ. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक, घुमक्कड़ और साहित्यकार व इस पुस्तक की भूमिका लिखने वाले देवेन्द्र मेवाड़ी ने की, उन्होंने इस पुस्तक की प्रमाणिकता और फौजी जीवन के बीच बंदूक के साथ कलम हाथ में थामने वाले लेखक द्वारा पुस्तक में चित्रित सूक्ष्म विवरणों की ओर सबका ध्यान दिलाया. साथ ही उन्होंने कहा कि- यह यात्रा वृत्तांत सिर्फ विवरण भर नहीं है बल्कि इसके जरिए आप फ़ौजी जीवन के विवि...
नए वर्ष की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ

नए वर्ष की चुनौतियाँ और सम्भावनाएँ

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  जब हम भारत और उसके कोटि-कोटि जनों के लिए सोचते हैं तो मन में भारत भूमि पर हज़ारों वर्षों की आर्य सभ्यता और संस्कृति की बहु आयामी यात्रा कौंध उठती है. विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों के संघात के बीच ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य का अविरल प्रवाह राष्ट्रीय गौरव का बोध कराता है. साथ ही भारत का भाव हमें उस दाय को सँभालने के लिए भी प्रेरित करता है जिसके हम वारिस हैं. निकट अतीत का स्वाधीनता संग्राम देशवासियों को राष्ट्र को आगे ले जाने के दायित्व का भी स्मरण कराता है. स्वाधीनता आश्वस्त करती है पर हमारे आचरण को आयोजित करने के लिए कर्तव्य-मार्ग का निर्देश भी देती है ताकि वह सुरक्षित बनी रहे. इस तरह अतीत कभी व्यतीत नहीं होता बल्कि हमको रचता रहता है. आज भारत विकास के मार्ग पर एक यात्रा पर अग्रसर है. भारत के लिए अगले साल में क्या कुछ होने वाला है इस सवाल पर विचार इससे बात से भी जुड...
कण्वाश्रम : हमारी वैदिक परंपराओं और संस्कृतियों की जन्म-स्थली!

कण्वाश्रम : हमारी वैदिक परंपराओं और संस्कृतियों की जन्म-स्थली!

साहित्‍य-संस्कृति
सुनीता भट्ट पैन्यूली "हिमालय के दक्षिण में, समुद्र के उत्तर में, भारत वर्ष है जहां भारत के वंशज रहते हैं" संभवतः मैं उसी जगह पर खड़ी हूं जहां हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत तथा शकुंतला के गंधर्व विवाह के पश्चात भरत का जन्म हुआ. कालांतर में शकुंतला के इसी पुत्र भरत अर्थात चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर  हमारे देश का नाम भारत पड़ा. मैं कण्वाश्रम में विचरते हुए सुखद कल्पना कर रही हूं कि कितना रमणीय व मंत्रमुग्धकारी होता होगा वह पुरातन समय? है ना? जहां वेद ऋचाओं की स्वर लहरियों से गुंजायमान विशुद्ध वातावरण,पवित्र होम की धूम का सघन वन में विचरण एवं विद्यार्थियों द्वारा अनेक क्रियाकलापों से गुम्फित गुरूकुल जहां भविष्य के लिए संस्कृतियों एवं सभ्यताओं के उपार्जन हेतु ज्ञान-विज्ञान, खोज, अविष्कार, उपचार, सिद्धांतों की बुनियाद खोदी जाती रही होगी. मेरे मन की ज़मीन पर वह परिदृश्य भी उछाल मार रहा है कि ...
भारतीय महिलाओं का  सामाजिक यथार्थ और चुनौतियाँ 

भारतीय महिलाओं का  सामाजिक यथार्थ और चुनौतियाँ 

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  इस तथ्य के बावजूद कि महिलाएं हमारे समाज का एक अभिन्न अंग हैं और कई महिलाएं घर और बाहर विविध जिम्मेदारियों को निभा रही हैं, उनकी स्थिति और अधिकारों को न तो ठीक से समझा जाता है और न ही उन पर ध्यान दिया जाता है. सतही तौर पर, महिलाओं के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, और वादे अक्सर किए जाते हैं. वास्तव में महिलाओं का सम्मान एक पारंपरिक भारतीय आदर्श है और सैद्धांतिक रूप से इसे समाज में व्यापक स्वीकृति भी मिली है. उन्हें 'देवी' कहा जाता है. दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में इनकी पूजा की जाती है और इनकी स्तुति भी धूमधाम से की जाती है. किसी भी शुभ कार्य या अनुष्ठान की शुरुआत गौरी और गणेश की पूजा से होती है. यह सब समृद्धि बढ़ाने और अधिक शक्ति प्राप्त करने की इच्छा को पूरा करने और अधिकतम क्षमता का एहसास करने के लिए किया जाता है. लेकिन आज जिस तरह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा...
हैदराबाद निजाम की सेना से कुमाऊँ रेजिमेंट तक, कुमाउँनियों की सैनिक जीवन यात्रा

हैदराबाद निजाम की सेना से कुमाऊँ रेजिमेंट तक, कुमाउँनियों की सैनिक जीवन यात्रा

साहित्‍य-संस्कृति
प्रकाश चन्द्र पुनेठा, सिलपाटा, पिथौरागढ़ विश्व के इतिहास का अध्यन करने से ज्ञात होता है कि इतिहास में उस जाति का नाम विशेषतया स्वर्ण अक्षरों से उल्लेखित किया गया है, जिस जाति ने वीरता पूर्ण कार्य किए हैं. विश्व के इतिहास में अनेक प्रकार की युद्ध की घटनाओं का विस्तृत वर्णन मिलता हैं. इन युद्ध की घटनाओं में वीरतापूर्ण संधर्ष करने वाले वीर व्यक्तियों की गाथा का वर्णन अधिक किया गया है. शक्तिशाली, साहसी तथा वीर व्यक्तियों ने अपने स्वयं के जीवन का बलिदान देकर अपने कुल, परिवार व जाति का नाम वीर जाति में सम्मिलित किया गया हैं. हमारे देश में भी अनेक वीर जातियों का नाम उनके वीरतापूर्ण कार्यो से, व आत्मबलिदान से, हमारे देश के इतिहास में दर्ज हैं. इन बहादुर जातियों ने रणक्षेत्र हो या खेल का क्षेत्र दोनो जगह अपनी श्रेष्ठता का झंडा बुलंद किया हैं. किसी शक्तिशाली राष्ट्र की शक्ति का आभास उस राष्ट्...
तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम हो गया!

तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम हो गया!

साहित्‍य-संस्कृति
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस (1 0 अक्टूबर) पर विशेष   गिरीश्वर मिश्र ‘जीवेम शरद: शतम्’! भारत में स्वस्थ और सुखी सौ साल की जिंदगी की आकांक्षा के साथ सक्रिय जीवन का संकल्प लेने का विधान बड़ा पुराना  है. पूरी सृष्टि में मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति और बुद्धि बल से सभी प्राणियों में उत्कृष्ट है. वह इस जीवन और जीवन के परिवेश को रचने की भी क्षमता रखता है. साहित्य, कला, स्थापत्य, और ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी विराट उपलब्धियों को देख कर कोई भी चकित हो जाता है. यह सब तभी सम्भव है जब जीवन हो और वह भी आरोग्यमय हो. परन्तु लोग स्वास्थ्य पर तब तक  ध्यान नहीं देते  जब तक कोई कठिनाई न आ जाय. दूसरों से तुलना करने और अपनी  बेलगाम होती जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के बदौलत तरह-तरह, चिंता कष्ट, तनाव और अवसाद से ग्रस्त होना आज आम बात हो गयी है. मुश्किलों के आगे घुटने टेक कई लोग तो जीवन से ही निराश हो बैठ...
स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

स्वराज का बिम्ब और स्वदेशी का संकल्प

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सन 1909 में लंदन से दक्षिण अफ़्रीका को लौटते हुए गांधी जी ने तब तक के अपने सामाजिक-राजनैतिक विचारों को सार रूप में गुजराती में दर्ज किया जिसे ‘हिंद स्वराज’ शीर्षक से प्रकाशित किया जिसे बंबई की सरकार ने ज़ब्त कर लिया. फिर जब गांधी जी 1915 में दक्षिण अफ़्रीका का कार्य पूरा कर भारत लौटे तब इस पुस्तिका को अंग्रेज़ी में छपाया. इस बार सरकार ने विरोध नहीं किया और यह पढ़ने के लिए सब को उपलब्ध हो गयी. इसे लेकर देश-विदेश में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की आकोचनाएँ होती रहीं. खुद गांधी जी के शब्दों में ‘इसके विचार उनकी आत्मा में गढ़े-जड़े हुए’ से थे. सन 1938 में सेवाग्राम, वर्धा में आर्यन पथ नामक पत्रिका में अंग्रेज़ी में इसके प्रकाशन के अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘इसे लिखने के बाद तीस साल मैंने अनेक आँधियों में बिताए हैं, उनमें मुझे इस पुस्तक में फेर बदल करने का कुछ भी ...
देश की सामर्थ्य के लिए चाहिए भाषाओं का पोषण  

देश की सामर्थ्य के लिए चाहिए भाषाओं का पोषण  

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भाषा मनुष्य जीवन की अनिवार्यता है और वह न केवल सत्य को प्रस्तुत करती है बल्कि उसे रचती भी है. वह इतनी सघनता के साथ जीवन में घुलमिल गई है कि हमारा देखना-सुनना, समझना  और विभिन्न कार्यों में प्रवृत्त होना यानी जीवन का बरतना उसी की बदौलत होता है. जल और वायु की तरह आधारभूत यह मानवीय रचना सामर्थ्य और संभावना में अद्भुत है. भारत एक भाग्यशाली देश है जहां संस्कृत, तमिल, मराठी, हिंदी, गुजराती, मलयालम, पंजाबी आदि  जैसी अनेक भाषाएँ कई सदियों से भारतीय संस्कृति, परंपरा और जीवन संघर्षों को आत्मसात करते हुये अपनी भाषिक यात्रा में निरंतर आगे बढ़ रही है. भाषाओं की विविधता देश की अनोखी और अकूत संपदा है जिसकी शक्ति कदाचित तरह तरह के कोलाहल में उपेक्षित ही रहती है. इन सब के बीच व्यापक क्षेत्र में संवाद की भूमिका निभाने वाली हिंदी का जन्म एक लोक-भाषा के रूप में हुआ था. वह असंदिग्ध रूप...