लोक पर्व-त्योहार

उत्तराखंड में लोकपर्व ईगास-बग्वाल पर रहेगा अवकाश

उत्तराखंड में लोकपर्व ईगास-बग्वाल पर रहेगा अवकाश

लोक पर्व-त्योहार
 मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने की घोषणा लोकपर्व ‘इगास’ हमारु लोक संस्कृति कु प्रतीक च. ये पर्व तें और खास बनोण का वास्ता ये दिन हमारा राज्य मा छुट्टी रालि, ताकि हम सब्बि ये त्योहार तै अपणा कुटुंब, गौं मा धूमधाम से मने सको. हमारि नई पीढ़ी भी हमारा पारंपरिक त्यौहारों से जुणि रौ, यु हमारु उद्देश्य च.’ उत्तराखंड के लोकपर्व ईगास-बग्वाल को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजकीय अवकाश की घोषणा की है. यह दूसरा मौक़ा होगा जब उत्तराखंड में लोकपर्व ईगास को लेकर अवकाश घोषित किया गया हो. इससे पूर्व पिछले वर्ष भी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा ईगास बग्वाल पर राजकीय अवकाश की घोषणा की गई थी. नई पीढ़ी लोक संस्कृति और पारम्परिक त्योहारों से जुड़े मुख्यमंत्री ने कहा कि ईगास बग्वाल उत्तराखंड वासियों के लिए एक विशेष स्थान रखती है. यह हमारी लोक संस्कृति का प्रतीक है. हम सब का प्रयास होना चा...
दीपावली के ये दीपक भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज : प्रधानमंत्री  

दीपावली के ये दीपक भारत के आदर्शों, मूल्यों और दर्शन के जीवंत ऊर्जापुंज : प्रधानमंत्री  

देश—विदेश, लोक पर्व-त्योहार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की भव्य दीपोत्सव समारोह की शुरुआत  हिमांतर ब्यूरो प्रधानमंत्री ने सभा को संबोधित करते हुए भगवान राम की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि आज अयोध्या जी दीपों से दिव्य हैं और भावनाओं से भव्य हैं. प्रधानमंत्री ने टिप्पणी की, आज अयोध्या नगरी भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के स्वर्णिम अध्याय का प्रतिबिंब है. प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वे पहले यहां राज्यभिषेक के लिए आए थे तो उनके अंदर भावनाओं की लहरें दौड़ रही थीं. प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रशंसावश आश्चर्य व्यक्त किया कि जब भगवान श्री राम 14  वर्ष के वनवास के बाद लौटे होंगे तो अयोध्या को किस प्रकार सजाया गया होगा. उन्होंने टिप्पणी की, ‘आज इस अमृत काल में भगवान राम के आशीर्वाद से हम अयोध्या की दिव्यता और अमरता के साक्षी बन रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि हम उन परंपराओं और संस्कृतियों के वाहक हैं जिनमें त्योहार और उत्स...
दीपावली राष्ट्रलक्ष्मी की सुरक्षा का पर्व

दीपावली राष्ट्रलक्ष्मी की सुरक्षा का पर्व

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. मोहन चंद तिवारी  दीपावली के दिन क्यों की जाती है लक्ष्मी के साथ सरस्वती और गणपति की पूजा ? प्रकाश का पर्व दीपावली पूरे देश में because लगातार पांच दिनों तक मनाया जाने वाला एक राष्ट्रीय लोकपर्व है। कृष्णपक्ष अन्धकार का प्रतीक है और शुक्लपक्ष प्रकाश का। इन दो पक्षों की संक्रान्तियों में गतिशील दीपावली का महापर्व अन्धकार से प्रकाश की ओर,अकाल से सुकाल की ओर‚मृत्यु से जीवन की ओर तथा निर्धनता से भौतिक समृद्धि की ओर अग्रसर होने का भी एक वार्षिक अभियान है। हरताली इस साल शुभ मुहूर्त कब है? इस साल कार्तिक माह की अमावस्या तिथि 24 because और 25 अक्टूबर दोनों दिन दीपावली का शुभ मुहूर्त पड़ रहा है। लेकिन 25 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो रही है। इसलिए 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि के अवसर पर दीपावली का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। हरताली...
तुम दीपक हम बाती

तुम दीपक हम बाती

Uncategorized, लोक पर्व-त्योहार
दीपावली पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र  भारतीय समाज अपने स्वभाव में मूलतः उत्सवधर्मी है और यहाँ के ज़्यादातर उत्सव सृष्टि में मनुष्य की सहभागिता को रेखांकित करते दिखते हैं। प्रकृति की रम्य क्रीड़ा स्थली होने के कारण मौसम के बदलते मिजाज  के साथ कैसे जिया जाय इस प्रश्न विचार करते हुए भारतीय जन मानस की संवेदना में ऋतुओं में होने वाले परिवर्तनों ने ख़ास जगह बनाई है. फलतः सामंजस्य और प्रकृति के साथ अनुकूल को ही जीवन का मंत्र बनाया गया. यहाँ जीवन का स्पंदन उसी के अनुसार होता है और उसी  की अभिव्यक्ति यहाँ के मिथकों  और प्रतीकों के साथ होती है. कला, साहित्य, संगीत आदि को भी सुदूर अतीत से ही यह विचार भावित करता आ रहा है. इस दृष्टि से दीपावली का लोक- उत्सव जीवन के हर क्षेत्र-घर-बार, खेत-खलिहान, रोज़ी-रोटी और व्यापार-व्यवहार सबसे जुड़ा हुआ है. इस अवसर पर भारतीय गृहस्थ की चिंता होती है घर-बाहर ...
नवरात्रि: प्रत्येक रूप और प्रत्येक नाम में एक ही चेतना के उत्सर्ग की अनुभूति दुर्गा होना है

नवरात्रि: प्रत्येक रूप और प्रत्येक नाम में एक ही चेतना के उत्सर्ग की अनुभूति दुर्गा होना है

लोक पर्व-त्योहार
सुनीता भट्ट पैन्यूली शक्ति वह शस्त्र है जिससे स्वयं व दूसरों के कल्याण के लिए  समस्त विसंगतियों का समूल नाश किया जा सकता है. यह तय है कि जहां शक्ति का उपार्जन होता है वहीं आत्मविश्वास भी जन्म लेता है और आत्मविश्वास जब अनुशासित व सकारात्मक होता है, सफलता निश्चित ही उसका अनुगमन करती है.  ऐसी शक्ति जिसकी उपासना ब्रहमा, विष्णु, महेश करते हैं. जो  हमारे शरीर और मन का कायाकल्प करती है. जिसकी अराधना के द्वारा हमारे लिए  चेतना के मूल तक पहुंचना संभव होता है. ऐसी शक्ति जो व्रत और ध्यान के द्वारा हमारे ऊर्जा के स्तर को ऊपर उठाकर हमारे भीतर व्याप्त विसंगतियों का निर्मूलन करती है. ऐसी शक्ति जिसके संपूर्ण व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति मानवता के आध्यात्मिक विकास और पराक्रम की वृद्धि के लिए अनुकरणीय है.ऐसी शक्ति जो धर्म की अधर्म पर,सत्य की असत्य पर, शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाना सिखाती है.ऐसी शक्ति जो मानव...
जौनसार-बावर: कीमावणा….

जौनसार-बावर: कीमावणा….

लोक पर्व-त्योहार
डॉ. लीला चौहान “दस्तूर उल अमल एवं वाजिब उल अर्ज 1883 ई0” दो ऐसे पुराने शासकीय दस्तावेज थे जिनका जौनसार-बावर में भूमि सुधार और रीति-रिवाज़ के लिए प्रयोग किया जाता था. यहां के लोग अपने सेवन के लिए सुर (शराब) भी बना सकते थे यह इन्हीं दस्तावेजों का आधार था.जिसमें (लगभग दो लीटर कच्ची शराब) अपने साथ लेकर भी चल सकते थे. इसी रीति रिवाजों को मध्यनजर रखते हुए आज भी एक्साइज़ मैनुअल जौनसार-बावर के 39 खतों में से सिर्फ एक खत व्यास नहरी (कालसी का आस पास का क्षेत्र) में लागू है. व्यास नहरी में इसलिए लागू था क्योंकि यह हमेशा से बाहरी लोगों का गढ़ रहा है यहां से चीन, तिब्बत के लिए व्यापार होता रहा. जौनसार- बावर के अधिकतर क्षेत्र में 20 गत्ते भादों (सितंबर) में कीमवणा (Method of Yeast preparation used for alcohol preparation) त्योहार के रूप मनाया जाता है. मानसून के भादों महीने में जब सारी वनस्पतियाँ हरी भरी...
कर्मयोगी श्रीकृष्ण: जियो तो ऐसे जियो !

कर्मयोगी श्रीकृष्ण: जियो तो ऐसे जियो !

लोक पर्व-त्योहार
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  सुख की चाह और दुःख से दूरी बनाए रखना जीवित प्राणी का सहज स्वाभाविक व्यवहार है और पशु मनुष्य सब में दिखाई पड़ता है. यह सूत्र जीवन के सम्भव होने की शर्त की तरह काम करता है. पर इसके आगे की कहानी हम सब खुद रचते हैं. आहार, निद्रा, भय और मैथुन के अलावे हम सब धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा, आदर, सम्मान, प्रेम, दया, दान आदि समाजजनित कामनाओं के इर्द-गिर्द निजी और सार्वजनिक जीवन ताना-बाना बुनते हैं. जिन्दगी खेने की सारी because कशमकश इन्हीं को लेकर चलती रहती है और आज की दुनिया में हर कोई कुंठा और तनाव से जूझता दिख रहा है और उससे निपटने के लिए मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है. थोड़ा निकट से देखें तो यही बात उभर कर सामने आती है कि किसी न किसी तरह सभी अपनी स्थिति से असंतुष्ट हैं. कुछ लोग जितना है उसमें इच्छा से कम होने को ले कर तो कुछ लोग जो उनके पास नहीं ह...
जीवन-जगत में हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’

जीवन-जगत में हरियाली का प्रतीक ‘हरेला’

लोक पर्व-त्योहार
प्रकाश उप्रेती ईजा ने आज हरेला 'बूत' (बोना) दिया. जो लोग 10वे दिन हरेला काटते हैं उन्होंने 7 तारीख और हम 9वे दिन हरेला काटते हैं इसलिए ईजा ने आज यानि 8 तारीख को बोया. हरेला का अर्थ हरियाली से है. यह हरियाली जीवन के सभी रूपों में बनी रहे उसी का द्योतक यह लोकपर्व है. 'पर्यावरण’ जैसे शब्द की जब ध्वनि भी नहीं थी तब से प्रकृति पहाड़ की जीवनशैली का अनिवार्य अंग है. जीवन के हर भाव, दुःख-सुख, शुभ-अशुभ, में प्रकृति मौजूद रहती है. जीवन के उत्सव में प्रकृति की इसी मौजूदगी का लोकपर्व हरेला है. हरेला ऋतुओं के स्वागत का पर्व भी है. नई ऋतु के अगमान के साथ ही यह पर्व भी आता है. इस दिन के लिए कहा जाता है कि अगर पेड़ की कोई टहनी भी मिट्टी में रोप दी जाए तो वो भी जड़ पकड़ लेती है. यहीं से पहाड़ों में हरियाली छाने लगती है. नई कोपलें निकलने लगती हैं. हरेला हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है. सावन का महीना आरम्भ ह...
मौण मेला : आस्था, परम्परा और प्रकृति का जश्न

मौण मेला : आस्था, परम्परा और प्रकृति का जश्न

लोक पर्व-त्योहार
बचन सिंह नेगी उत्तरकाशी जिले के पांच गांव - नानई, बिंगसारी, खरसाड़ी, रमाल गांव और डोभाल गांव के लोग कई सदियों से बड़ी धूमधाम व खुशी से परम्परागत रीति-रिवाज के साथ मौण मेला मनाते हैं. यह मेला हर वर्ष जेठ के महीने में 20  गते अर्थात 2 या 3 जून को पड़ता है. यह मेला मां रेणुका देवी के नाम पर होता है. अब इस मेले का महत्व घटता जा रहा है क्योंकि लोग विशेष रुचि नहीं ले रहे हैं. लेकिन नानई गांव के लोगों को यह मेला मनाना जरूरी है. यदि नहीं मनाते हैं तो देवी प्रकोप हो जाता है. फसलें नष्ट हो जाती हैं, सूखा, भूखमरी जैसी समस्याएं आती हैं, इसलिए मौण मेले को जीवित रखना जरूरी है. रेणुका देवी का मंदिर नानई गांव में स्थित है जिसकी बड़ी मान्यता है. यह मेला कई सौ वर्षों से मनाया जाता है. कहते हैं कि पुराने लोगों ने इस मेले को बारिश के मेले के नाम से मनाया था. उस समय पर जेठ यानी जून-जुलाई के महीनों में...
स्याल्दे बिखौती : कत्युरीकाल की  सांस्कृतिक विरासत का मेला

स्याल्दे बिखौती : कत्युरीकाल की  सांस्कृतिक विरासत का मेला

बागेश्‍वर, लोक पर्व-त्योहार
स्याल्दे बिखौती मेला : 13-14-15 अप्रैल पर विशेष डॉ. मोहन चंद तिवारी सांस्कृतिक नगरी द्वाराहाट (Dwarahat) में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला स्याल्दे-बिखौती (Syalde Bikhauti Mela) का ऐतिहासिक मेला पिछले दो वर्षों से कोरोना (Corona Virus) प्रकोप के चलते प्रतीकात्मक रूप से ही मनाया जा रहा था. किन्तु इस वर्ष मेला समिति के निर्णयानुसार मेला विशेष धूम धाम से मनाया because जा रहा है. मेला समिति व नगर पंचायत अध्यक्ष मुकेश साह द्वारा ग्राम प्रतिनिधियों की बैठक में की गई घोषणा के अनुसार लगभग 64 वर्ष पूर्व मेले से अलग हुए ईड़ा, जमीनी वार व पार ग्राम पंचायतें पुन: इस वर्ष स्याल्दे मेले का हिस्सा बनने जा रही हैं. परम्परागत मान्यता के अनुसार इस वर्ष चैत्र मास की अन्तिम रात्रि ‘विषुवत्’ संक्रान्ति 13 अप्रैल को द्वाराहाट से 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित विभाण्डेश्वर महादेव में सारी रात बिखौती का मेला लगेगा...