मौण मेला : आस्था, परम्परा और प्रकृति का जश्न

बचन सिंह नेगी

उत्तरकाशी जिले के पांच गांव – नानई, बिंगसारी, खरसाड़ी, रमाल गांव और डोभाल गांव के लोग कई सदियों से बड़ी धूमधाम व खुशी से परम्परागत रीति-रिवाज के साथ मौण मेला मनाते हैं. यह मेला हर वर्ष जेठ के महीने में 20  गते अर्थात 2 या 3 जून को पड़ता है. यह मेला मां रेणुका देवी के नाम पर होता है.

अब इस मेले का महत्व घटता जा रहा है क्योंकि लोग विशेष रुचि नहीं ले रहे हैं. लेकिन नानई गांव के लोगों को यह मेला मनाना जरूरी है. यदि नहीं मनाते हैं तो देवी प्रकोप हो जाता है. फसलें नष्ट हो जाती हैं, सूखा, भूखमरी जैसी समस्याएं आती हैं, इसलिए मौण मेले को जीवित रखना जरूरी है.

रेणुका देवी का मंदिर नानई गांव में स्थित है जिसकी बड़ी मान्यता है. यह मेला कई सौ वर्षों से मनाया जाता है. कहते हैं कि पुराने लोगों ने इस मेले को बारिश के मेले के नाम से मनाया था. उस समय पर जेठ यानी जून-जुलाई के महीनों में बारिश नहीं होती थी तो लोगों की उखड़ फसल तथा धान की बिजौड़ सूख कर नष्ट हो जाती थी. फिर गांव वालों के मन में विचार आया कि जेठ-आषाढ़ के महीने में, जब सूखा पड़ता था, तो रात को सारे गांव की महिलाएं मां रेणुका के मंदिर में जागरण करें. तब से यह परम्परा आज भी प्रचलित है. कहा जाता है कि भगवती के पुजारी पर देवी रेणुका अवतरित होती हैं. वह पुजारी भी उन महिलाओं के साथ रातभर जागरण करता है. फिर रात खुलने पर महिलाएं पुजारी को झुलाती हैं. तब देवी महिलाओं को बता देती हैं कि बारिश कब होगी. उस बताए दिन पर बारिश ज़रूर होती है. यह बात आज भी बिल्कुल सही है.

इस मौण के मेले को बारिश का मेला और मच्छी मारने का मेला भी कहते हैं. मच्छी मारने के लिए वन विभाग की स्वीकृति लेनी आवश्यक है. जैसे ही जून शुरू होता है तो नानई गांव के लोग पूरी गडुगाड़ पट्टी के सभी गांव वालों को पत्र भेजकर खबर देते हैं कि 20 गते जेठ को मौण है. आप सभी लोग यथासमय ठीक चार बजे मेला स्थल पर सुरु लेकर आने की कृपा करें. यह संदेश सुनकर सभी पांच गांवों के लोग 18 गते जेठ को सुरु लेने जाते हैं.

सुरु एक प्रकार का जहर का पौधा होता है जो ऊंचे-ऊंचे ढंकारों में मिलता है. पांचों गांव के लोग पांच कंटर सुरु लेकर भदरासु नामे तोके में आ जाते हैं. 20 गते जेठ को पूरे पांच गांवों के महिलाएं, पुरुष, बच्चे और कुछ बाहरी लोग सिंगतूर व बंगाण के लोग भी मेले की शोभा बढ़ाते हैं. इसमें लोग गीत रास लगा कर खूब नाचते-गाते हैं. फिर पांच कंटर सुरु गडुगाड़ खड़, जिसे केदार गंगा भी बोलते हैं, में ढोल-बाजों के साथ डाल कर बड़ी धूमधाम से मौण मेला मनाते हैं. लोग भदरासु से लेकर मोरी तक मच्छी पकड़ते हुए देर रात को अपने घरों को लौटते हैं.

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अब इस मेले का महत्व घटता जा रहा है क्योंकि लोग विशेष रुचि नहीं ले रहे हैं. लेकिन नानई गांव के लोगों को यह मेला मनाना जरूरी है. यदि नहीं मनाते हैं तो देवी प्रकोप हो जाता है. फसलें नष्ट हो जाती हैं, सूखा, भूखमरी जैसी समस्याएं आती हैं, इसलिए मौण मेले को जीवित रखना जरूरी है.

(नानई, मोरी उत्तरकाशी, उत्तराखंड)

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