जौनसार-बावर: कीमावणा….

डॉ. लीला चौहान

“दस्तूर उल अमल एवं वाजिब उल अर्ज 1883 ई0” दो ऐसे पुराने शासकीय दस्तावेज थे जिनका जौनसार-बावर में भूमि सुधार और रीति-रिवाज़ के लिए प्रयोग किया जाता था. यहां के लोग अपने सेवन के लिए सुर (शराब) भी बना सकते थे यह इन्हीं दस्तावेजों का आधार था.जिसमें (लगभग दो लीटर कच्ची शराब) अपने साथ लेकर भी चल सकते थे.

इसी रीति रिवाजों को मध्यनजर रखते हुए आज भी एक्साइज़ मैनुअल जौनसार-बावर के 39 खतों में से सिर्फ एक खत व्यास नहरी (कालसी का आस पास का क्षेत्र) में लागू है. व्यास नहरी में इसलिए लागू था क्योंकि यह हमेशा से बाहरी लोगों का गढ़ रहा है यहां से चीन, तिब्बत के लिए व्यापार होता रहा.

जौनसार- बावर के अधिकतर क्षेत्र में 20 गत्ते भादों (सितंबर) में कीमवणा (Method of Yeast preparation used for alcohol preparation) त्योहार के रूप मनाया जाता है. मानसून के भादों महीने में जब सारी वनस्पतियाँ हरी भरी होती है उस समय समस्त गांववासी जंगल से लगभग बीस पच्चीस प्रकार की हरी पत्तियां (टिमरू) टहनियां, कई प्रकार जड़ें आदि लाते है. फिर इनको छोटे छोटे टुकड़ो में काटकर ओखली में कूटते, उस से निकलने वाले रस को जौ, मड़ुवा आदि के आटे के साथ गूंथा जाता है, इसकी मोटी-मोटी रोटी बनाकर अंधेरे कमरे में पराल, चीड़ की पतियाँ या भांग पत्तियों के अंदर सुखाने के लिए बंद और अंधेरे कमरे में रख दी जाती है. आठ से दस दिन के दौरान यीस्ट डेवलप हो जाता. उसको धूप में सुखाया जाता है, ताकि ख़राब न हो और इसका इस्तेमाल पूरे साल भर सकें .

सुर बनाने की दो विधियाँ है. एक वाष्पीकरण (distillation) और बिना वाष्पीकरण जिसको गिंगठी और पाकोई कहते है.

मान्यताओं के अनुसार इसके कई फ़ायदे भी बताए जाते है. क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान जब ना के बराबर थी तब यह निश्चित मात्रा में दवाई के रूप में भी प्रयोग की जाती थी. समस्त गांववासी मिलकर बड़े हर्ष उल्लास से इस कार्य को एक त्योहार के रूप में मनाते है.

शराब बनाने के लिए मँड़ुवा, चौलाई, जौ आदि के आटे से रोटी बनाई जाती है. इसको बड़े घड़े में पानी में डाल देते है. साथ में बनाई गई कीम (यीस्ट) मिला देते है. उपलब्धता के अनुसार शहद का छत्ता, गुड़, कद्दू, सेब, चुल्लू आदि को भी मिला दिया जाता है. कीम (Yeast work as a catalyst) जिसका मुख्य कार्य कार्बोहाइड्रट को तेज केमिकल रिएक्शन के साथ ब्रेक करके एल्कोहल एवं कार्बन डाइआक्साइड में कन्वर्ट कर देना होता, चार पाँच दिन की प्रक्रिया के बाद अगर उसका वाष्पीकरण (distillation) कर के ऐल्कहॉल को अलग करते है उसको लोकल भाषा में सुर (शराब) कहते है जिसमें एल्कोहल की मात्रा लगभग 35 से 40 प्रतिशत होती है. अगर इसी को 10-15 दिन तक बंद घड़े में रख देते है और बीच-बीच में हिलाते है तो इसको गिंगटी कहते यह मुख्यत Semi liquid होता है. अगर इसी को आगे तीन चार महीने के लिए घड़े में बंद कर देते उसके बाद (Sedimentation process) के तहत अधिकतर ठोस पदार्थ नीचे बैठ जाता है और क्लीन द्रव ऊपर रहता उसको अलग कर देते है जिसे की पाकोई कहते है.

गिंगटी और पाकोई अक्सर शरीर के लिए लाभदयक मानी जाती थी. हालांकि इसका कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है. इसमें एल्कोहल की मात्रा लगभग 12- 15 प्रतिशत होती है. जो विभिन्न प्रकार की शुद्ध जड़ी बूटी से तैयार होती है. मान्यताओं के अनुसार इसके कई फ़ायदे भी बताए जाते है. क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान जब ना के बराबर थी तब यह निश्चित मात्रा में दवाई के रूप में भी प्रयोग की जाती थी. समस्त गांववासी मिलकर बड़े हर्ष उल्लास से इस कार्य को एक त्योहार के रूप में मनाते है.

नोट:- शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तथा समाज के लिए एक अभिशाप है लेकिन पोस्ट लिखने का एक कारण यह है कि इसकी प्राचीन, प्राकृतिक तथा केमिकल मुक्त विधि को जान सकें. साथ ही मेडिकल साइंस में भी कई दवाइयां, इंजेक्शन एल्कोहल युक्त रहते हैं इसलिए इस विधि से निकले द्रव्य को यदि बीमारियों के उपचारों हेतु उपयोग किया जाता था तब उन जड़ी, बूटियों पर भी शोध की आवश्यकता है.

(डॉ लीला चौहान, गांव च्यामा, खत बौन्दुर, तहसील चकराता, जौनसार से हैं और वर्तमान में कृषि विज्ञान केंद, बिहार में वैज्ञानिक (कृषि अभियंत्रकी) के पद पर कार्यरत हैं)

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