पुस्तक-समीक्षा

वियोगी मन की ‘आह’ से नहीं बल्कि ‘बेचैनी’ से उपजी कविताएँ 

वियोगी मन की ‘आह’ से नहीं बल्कि ‘बेचैनी’ से उपजी कविताएँ 

पुस्तक-समीक्षा
 प्रकाश उप्रेतीयह दौर कहन का अधिक है. सब कुछ एक साथ कह जाने की होड़ में बहुत कुछ छूट रहा है. साहित्य में भी यही परम्परा दिखाई दे रही है. यहाँ भी ठहराव और अर्थवता की जगह आभासी दुनिया ने ले ली है. रामचन्द्र शुक्ल जिस कवि कर्म को समय के साथ कठिन आंक रहे थे वह आज ज्यादा आसान दिखाई दे रहा है. ठीक इससे पहले की सदी जिसे कथा साहित्य की सदी कहा गया. वह जीवन के जटिल और संश्लिष्ट यथार्थ को अभिव्यक्त करने में काफी हद तक सफल रही. कविता इसमें कहीं चूक गई. इसीलिए सदी के अंत तक एक ओर ‘कविता के अंत’ की बात हो रही थी तो दूसरी तरफ ‘कविता की वापसी’ की घोषणा हो रही थी. आलोचक कविता का अंत लिख रहे थे तो वहीं कवि, कविता की वापसी करवा रहे थे. एक ही समय में कविता दो राहों पर थी. कहा जा रहा था कि कविता संचार के मकड़जाल में तेजी से बदलते समय को पकड़ने में चूक रही है और वह अपने समय के यथार्थ को नहीं पकड़ पा रही है. गद...
हिमालय को जानने-समझने की कोशिश

हिमालय को जानने-समझने की कोशिश

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘हिमालय बहुत नया पहाड़ होते हुए भी मनुष्यों और उनके देवताओं के मुक़ाबले बहुत बूढ़ा है. यह मनुष्यों की भूमि पहले है, देवभूमि बाद में, क्योंकि मनुष्यों ने ही अपने विश्वासों तथा देवी-देवताओं को यहां की प्रकृति में स्थापित किया. हिमालय के सम्मोहक आकर्षण के कारण अक्सर यह बात अनदेखी रहती आयी है. यह आशा करनी so ही होगी कि हिमालय की सन्तानों और समस्त मनुष्यों को समय पर समझ आयेगी, पर यह याद रहे कि यह समझ न अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में उपलब्ध है और न कोई बैंक या बहुराष्ट्रीय कम्पनी इसे विकसित कर सकती है. यह समझ यहां के समाजों और समुदायों में है, वहीं से उसे लेना होगा. बस, हमें और हमारे नियन्ताओं को इस समझ को समझने की समझ आये.’शिव शेखर पाठक की ‘दास्तान-ए-हिमालय’ किताब में लिखी उक्त पक्तियां आम जन से लेकर अध्येताओं के हिमालय के प्रति विचार और व्यवहार को सचेत करती है. हिमालय पृथ्वी का मा...
युवाओं की दुविधा को कम करने वाली है अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की किताब  ‘प्रो. ड्रौउ’

युवाओं की दुविधा को कम करने वाली है अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की किताब ‘प्रो. ड्रौउ’

पुस्तक-समीक्षा
अरविंद मालगुड़ीभारत युवाओं का देश है, जहां का हर युवा पढ़ लिख कर अपने सपनों को पंख दे सफलता की उड़ान भरना चाहता है। परन्तु अगर सही दिशा और मार्गदर्शन न मिले तो भ्रम की because स्थिति  पैदा हो जाती है। उत्तराखण्ड के दो लेखकों अक्षिता बहुगुणा और डॉ राजेश नैथानी की पुस्तक "प्रो. ड्रौउ करियर कोचिंग" युवाओं को इसी भ्रम से निकाल पेशेवर पाठ्यक्रमों के अलावा सभी व्यावहारिक  करियर विकल्पों का पता लगाने में मदद करती है। इसके साथ ही आवश्यक कौशल और मूल्यों पर प्रकाश डालती है। एकाग्रता इन दोनों लेखकों का समृद्ध अनुभव पुस्तक में अच्छी तरह से परिलक्षित होता है। डॉ राजेश नैथानी  जो कि शिक्षा के क्षेत्र में भारत ही नहीं, कई अन्य देशों का व्यावहारिक अनुभव रखते हैं because और भारत के शिक्षा मंत्रालय में  बतौर सलाहकार का अनुभव रखते हैं।  वहीं दूसरी लेखिका अक्षिता बहुगुणा का भी शिक्षा के क्षेत्र में खासा अ...
उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

उत्तराखंड के लोक और देव परंपरा को समझने के लिए एक ज़रूरी क़िताब

पुस्तक-समीक्षा
पुस्तक समीक्षाचरण सिंह केदारखंडीकोटी बनाल (बड़कोट उत्तरकाशी) में 7 जून 1981 को जन्मे दिनेश रावत पेशे से शिक्षक और प्रवृति से यायावर और प्रकृति की पाठशाला के अध्येता हैं जिन्हें because अपनी सांस्कृतिक विरासत से बेहद लगाव है. अंक शास्त्र “रवांई के देवालय एवं देवगाथाएं” नवम्बर 2020 में प्रकाशित लोक संस्कृति पर उनकी दूसरी किताब है इससे पहले रावत जी “रवांई क्षेत्र के लोकदेवता और लोकोत्सव” पुस्तक लिख चुके हैं जो because उनकी दूसरी किताब की प्रेरणा बनी है. समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून और संस्कृति विभाग उत्तराखंड के आर्थिक अनुदान से प्रकाशित 294 पृष्ठ की इस किताब में 5 अध्याय हैं और कवर पेज (महासू देवता) सोबन दास जी का बनाया हुआ है... अंक शास्त्र उत्तराखंड समूचे भारत के साथ साथ हिमालयी राज्यों में भी अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक अस्मिता के लिए जाना जाता है. भावना के उदात्त स्फुरणों में...
संघर्ष, साहस, संयम और साहित्य के साधक

संघर्ष, साहस, संयम और साहित्य के साधक

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल‘सामाजिक जीवन में आम नागरिकों के साथ, मनसा-वाचा-कर्मणा अन्याय/अव्यवस्था के विरोध में मैं हमेशा खड़ा रहता हूं. (‘मेरा जीवन प्रवाह‘ आत्मकथा, चमन लाल प्रद्योत, पृष्ठ-233)जीवन पृष्ठभूमि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी वरिष्ठ आई.पी.एस. अधिकारी एवं साहित्यकार श्री चमन लाल प्रद्योत का जन्म 3 मई 1936 को ग्राम- भीमली तल्ली (पालसैंण तोक), पट्टी- पैडुलस्यूं, जनपद- पौडी गढवाल में हुआ. प्रद्योत के पिता बूथा लाल और माता दीपा देवी का एक सामान्य किसान परिवार था. जब प्रद्योत लगभग तीन साल के थे because तो उनके माता-पिता सपरिवार पालसैंण तोक छोड़ कर गोदीगदना तोक में नया मकान बना कर रहने लग गये.  अन्य ग्रामीणों की तरह ही खेती, पशुपालन के साथ राजमिस्त्री के कार्य से परिवार का भरण-पोषण होता था. स्वरोजगार शिक्षा विकट आर्थिक अभावों के रहते हुए प्रद्योत अपनी 9 साल की उम्र तक स्कूल नहीं जा पाये...
मालिनी का आंचल…

मालिनी का आंचल…

पुस्तक-समीक्षा
नीलम पांडेय ‘नील’डा. डी. एन. भटकोटी जी के प्रबंध काव्य संग्रह मालिनी (भरत-भारत) पूर्व लिखित गघ एवं काव्य संग्रह से काफी भिन्न और नवीन है. पूर्व में लिखित अधिकतर काव्य संग्रह में जिस प्रकार दुष्यन्त केन्द्र बिन्दु थे, उसी प्रकार मालिनी (भरत-भारत) काव्य संग्रह में शकुन्तला प्रधान नायिका है. डा. भटकोटी जी ने शकुन्तला को प्रधानता देते हुऐ, because एक पहाड़ की स्त्री के रूप में उसकी मनःस्थिति का अवलोकन किया है. समस्त काव्यखंड की अन्र्तवस्तु, अभिव्यक्ति, शिल्प तथा भाव स्तर बेहद अलग है, या यूँ कहें कि यह अपनी परम्परागत शैली को बनाऐ रख कर की गयी नवीनतम विधा है. भटकोटी उक्त संग्रह में रचनाकार का लम्बा रचनात्मक संर्घष नजर आता है, यहां पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है कि आदरणीय डी. एन. भटकोटी जी लिखते हुऐ अपने मन की सतह पर उग आयी विचारों की तहों को खोलने के प्रयास में रहते हैं, जिनमें उनका खुद का ग...
लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…

पुस्तक-समीक्षा
सुनीता भट्ट पैन्यूलीरंग हैं, मौसम हैं, तालाब हैं पोखर हैं, मछली है, खेत हैं, खलिहान हैं, पुआल है, मवेशी, कुत्ता, गिलहरी हैं, ढिबरी है, बखरी है, बरगद है, पीपल हैं, पहाड़ हैं, पगडंडियां हैं, because आकाश है, ललछौंहा सूरज है, धूप है, बादल हैं, बुजुर्ग मा-बाबूजी हैं, बच्चे हैं, बीमारी है, षोडशी है, मेहनतकश जुलाहे की दिनचर्या है, भूख है, चुल्हा है, राख है तवा है, गोल रोटी है, मजबूरी है, संताप है, भूख है, परंपरायें हैं, रस्म हैं रिवाज हैं, लोक-परंपराओं और माटी की खूशबू है.किताबी तिलिस्म ऐसा एक किताबी तिलिस्म soजिसमें सिमट आया है सबकुछ इंसानी जज़्बात, रिश्तों की जद्दोजहद, रोज़मर्रा की खींचतान जिंदगी से, साक्षात्कार दैनिक जीवन-मुल्यों का और विशेषकर आदमी की  दैनंदिन उपभोग की मूलभूत आवश्यकताओं का. उपरोक्त जो भी मैंने लिखा but है मित्रों परिचय करा रही हूं मैं आदरणीय श्लेष अलंकार द्वारा लिखी गय...
जब नाराज होगी प्रकृति …

जब नाराज होगी प्रकृति …

पुस्तक-समीक्षा
राजीव सक्सेनाजैसे समुद्र छुपा लेता है सारे शोर... नदियों, जीव जंतुओं के.. कविताएं भी मेरे लिए समुद्र से कम न थी! मैं भी कविता होना चाहती हूं... कविता को लेकर ये आसक्ति... ये प्रेम... ये जूनून अभिव्यक्त हुआ है कवयित्री निमिषा सिंघल की अपनी ही एक रचना में. 'जब नाराज होगी प्रकृति' शीर्षक से, सर्वप्रिय प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित उनके काव्य संग्रह में निमिषा सिंघल ने न सिर्फ प्रकृति के प्रति लगाव बल्कि ईश्वर से संवाद और सामाजिक अवधारणाओं को भी अपनी कलम के जरिए गंभीरता से रेखांकित किया है. निमिषा, कहीं सुबह को अपने तरीके से परिभाषित करती हैं... सूरज ने प्रेम दर्शाया है, फूलों, कलियों को दुलराने मस्त मगन पवन आया है... तो कहीं मौसम के मिजाज के बहाने ज़िंदगी के फ़लसफ़े को कुछ यूं उज़ागर करती हैं नित नए रंग बदलती है जिंदगी.. ठीक ही समझा आपने मौसम की तरह मिजाज बदलती है जिंदगी....
भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

भारतीय हिमालय क्षेत्र से मानवीय पलायन के बहुआयामों पर सार्थक चर्चा करती पुस्तक

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसालअपने गांव चामी की धार चमधार में बैठकर मित्र प्रो. अतुल जोशी के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय हिमालय क्षेत्र से पलायन: चुनौतियां एवं समाधान- Migration from Indian Himalaya Region: Challenges and Strategies' का अध्ययन मेरे लिए आनंददायी रहा है. इस किताब के because बहाने कुछ बातें साझा करना उचित लगा इसलिए आपकी की ओर मुख़ातिब हूं.उत्तराखंड ‘मेरी उन्नति अपने ग्राम और इलाके की उन्नति के साथ नहीं हुई है, उससे कटकर हुई है. जो राष्ट्रीय उन्नति स्थानीय उन्नति को खोने की कीमत पर होती है, वह कभी स्थाई नहीं because हो सकती. उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों का देश की उन्नति में कितना ही बड़ा योगदान हो, उत्तराखंड की समस्याओं से अलगाव और उन्नति में योगदान से उदासीनता उनके जीवन की बड़ी अपूर्णता है. यह राष्ट्र की भी बड़ी त्रासदी है.’ वरिष्ठ सामाजिक चिंतक और अर्थशास्त्री प्रो. पी. सी. जोशी...
गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

गढ़वाली भाषा और साहित्य को समर्पित बहुआयामी व्यक्तित्व- संदीप रावत

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसालप्रायः यह कहा जाता है कि जो समाज में प्रचलित और घटित हो रहा है, वह उसके समसामयिक साहित्य में स्वतः प्रकट हो जाता है. परन्तु इस धारणा के विपरीत यह भी कहा जा सकता है कि जो सामाजिक प्रचलन में अप्रासंगिक हो रहा है, ठीक उसी समय उसकी अभिव्यक्ति उसके साहित्य और संगीत में प्रमुखता से होने लगती है. लोक भाषायें और संगीत सामाजिक जीवन व्यवहार से हट रही हैं, परन्तु लोकभाषा और संगीत रचने का शोर चहुंओर है. गढ़वाळि भाषा-संगीत के विकास की बात करने वाले आये दिन और मुखर हो रहे हैं, पर उसको सामाजिक व्यवहार में लाने में उनमें से अधिकांश के प्रयास बस किताबी ही हैं.शरद लोक साहित्यकार संदीप रावत जैसे विरले ही हैं जो गढ़वाळि भाषा को पूरे समर्पण भाव से जवान हो रही पीढ़ी की मुख्य जुबान बनाने का प्रयास कर रहे हैं. गढ़वाळि साहित्य की प्रत्येक विधा में पारंगत उनकी लेखनी में कमाल का आकर्षण है. गढ़वाळि...