जगमोहन बंगाणी: चित्रकारी में शब्दों का जादूगर…

  • प्रकाश उप्रेती

उत्तराखंड का एक छोटा सा गाँव मौंडा है. यह हिमाचल और उत्तराखंड के बॉर्डर पर स्थित है. एक तरह से उत्तरकाशी जिले का अंतिम छोर . मौंडा गाँव से एक लड़का कला (आर्ट) का पीछा because करते-करते देहरादून, दिल्ली होते हुए लंदन तक पहुँच जाता है. जिस दौर में इस लड़के ने कला का पीछा किया उस दौर में पहाड़ के ज्यादातर लड़कों की दौड़ सड़क से शुरू होकर सेना तक पहुँचती थी. इसलिए लंदन से लौटने पर उसके पिता ने भी उससे पूछा- बेटा विदेश से आ गया है… ये बता कोई सरकारी नौकरी इस पढ़ाई से लगेगी कि नहीं ? पहाड़ के हर पिता की चिंता अपने बेटे के लिए एक अदत सरकारी नौकरी की होती थी.

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वह नहीं जानते थे कि उनका लड़का जो कर रहा है उसमें वह सरकारी नौकरी की दौड़ से बहुत दूर अपनी दुनिया में चला गया है. उसकी दुनिया, रंगों की दुनिया है. उसकी दुनिया because भविष्य को रेखाओं के माध्यम से रचने की दुनिया है. उसकी दुनिया स्वयं के तलाश की दुनिया. वह कहता भी है कि “रचे जाने की प्रक्रिया को जितना मैं एंजॉय करता हूँ उतना रचे को नहीं.” वह निर्माण की प्रक्रिया को जीने वाला लड़का है. आज कला जगत में उस लड़के ने अपना एक खास मुकाम हासिल कर लिया है. वह दुनिया का अलहदा आर्टिस्ट है जो शब्दों से आर्ट की दुनिया रच रहा है. उसके आर्ट में शब्दों की दुनिया और उनके गहरे मायने होते हैं. वह संस्कृत, हिंदी, पंजाबी के शब्द को चित्रकला में उतारने वाला एक अनोखा आर्टिस्ट है.

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उस लड़के का नाम है- जगमोहन बंगाणी. because आज चित्रकला की दुनिया में जगमोहन एक सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम है. कुछ दिन पहले Jagmohan Bangani भाई से मुलाकात हुई. काफी समय से मिलना टलता जा रहा था लेकिन आखिर मुलाकात हो ही गई. यह मुलाकात सिर्फ जगमोहन भाई से ही नहीं हुई बल्कि चित्रकार जगमोहन से भी हुई. मुझे चित्रकला की न्यूनतम समझ है. करने को मैंने Post Graduation Diploma in Indian & Western Arts and Aesthetic किया है लेकिन उसके बावजूद भी चित्रकला की समझ रेखांकन और चित्रों तक ही सीमित है.

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जगमोहन भाई के स्टूडियो में जो चित्र मैंने देखे वह मेरी समझ से एकदम अलग थे. उन चित्रों में शब्दों की दुनिया थी. माँ, तुम कहाँ हो, गायत्री मंत्र, ऊँ, कबीर की वाणी जैसी शब्द because संपदा उन चित्रों में थी. चित्रों में शब्द, ध्वनि रूप में प्रकट हो रहे थे. यह चित्रकारी आपको एक अलग ही ज़ोन में ले जाती है. कला की समझ और आयाम की कई बंद खिड़कियाँ जगमोहन भाई की पेंटिंग्स को देखकर खुलीं. यही स्टाइल उन्हें भीड़ से अलग भी करता है.

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उनकी पेंटिंग्स के दीवाने भारत because और भारत से बाहर भी हैं.आश्रम और विनोबापुरी मेट्रो स्टेशन पर जगमोहन भाई की पेंटिंग्स की कॉपी लगी हुई हैं. वह कला और संबंधों को जीने वाले कलाकार हैं. कभी मौका मिले तो जगमोहन भाई की दुनिया को देखिए. यकीन मानिए आप एक नई दुनिया से रु-ब-रु हो जाएँगे…

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