
- प्रकाश उप्रेती
बाबा, विवाद और बडबोलेपन का पुराना नाता है. योग के जरिए घर-घर तक पहचाने जाने वाले बाबा ने इसी ‘पहचान’ को धीरे-धीरे शक्ति के केंद्र में बदल लिया. वह योग शिविरों में आने वाले लोगों को ‘भीड़’ बताकर राजनैतिक गलियारों में पैठ मजबूत करते रहे.वोट बैंक नेताओं का लालच था तो शक्ति अर्जित करना बाबा की महत्वकांक्षा. इसी गठजोड़ के बल पर
बाबा योग से आयुर्वेद की तरफ मुड़े और फिर एक साम्राज्य स्थापित कर लिया. इसी साम्राज्य की शक्ति के बलपर ही बाबा भारतीय कानून व्यवस्था को भी चुनौती देने का साहस कर जाते हैं.राजनैतिक
2014 में तहलका के लिए मनोज रावत की लिखी रिपोर्ट तफसील से बाबा और सत्ता के गठजोड़ की ‘जमीनी’ तह उजागर करती है. मनोज की रिपोर्ट का एक अंश-“साल 2004 की बात है. बाबा
रामदेव योगगुरु के रूप में मशहूर हुए ही थे. चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी. टीवी चैनलों पर उनकी धूम थी.
बाबा
हाल ही में उपजे विवाद के बाद बाबा का यह बयान काबिले- ए- गौर है कि –‘अरेस्ट तो कोई उनका बाप भी नहीं कर सकता बाबा रामदेव को’. इस चुनौती की ताकत बाबा रामदेव ने कहाँ से हासिल की है. इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. बाबा तब कभी महंगाई, कभी डीजल- पैट्रोल के बढ़ते
दामों तो वहीं विदेशों में जमा काला धन वापस लाने की मुहीम के अगवाह बने हुए थे. सत्ता से लगातार सवाल कर रहे थे. एक बाबा द्वारा सत्ता से लड़ने की इस ताकत ने सभी को प्रभावित किया लेकिन इसी बिसात पर बाबा एक दूसरा खेल भी खेल रहे थे. एक सत्ता से सवाल और दूसरी सत्ता के गलियारों में योगासन चल रहा था.रामदेव योगगुरु
बाबा की इसी योगनीति ने इनको वह ताकत दी है जिसके चलते वो कानून से भी ऊपर हो गए हैं. 2014 में तहलका के लिए मनोज रावत की लिखी रिपोर्ट तफसील से बाबा
और सत्ता के गठजोड़ की ‘जमीनी’ तह उजागर करती है. मनोज की रिपोर्ट का एक अंश-“साल 2004 की बात है. बाबा रामदेव योगगुरु के रूप में मशहूर हुए ही थे. चारों तरफ उनकी चर्चा हो रही थी. टीवी चैनलों पर उनकी धूम थी.योगनीति
देश के अलग-अलग शहरों में चलने वाले उनके योग शिविरों में पांव रखने की जगह नहीं मिल रही थी और बाबा के औद्योगिक प्रतिष्ठान दिव्य फार्मेसी की दवाओं पर लोग टूटे पड़ रहे थे. फार्मेसी ने उस वित्तीय वर्ष में सिर्फ छह लाख 73 हजार मूल्य की दवाओं की बिक्री दिखाई और इस पर करीब 54 हजार रुपये बिक्री कर दिया
गया. यह तब था जब रामदेव के हरिद्वार स्थित आश्रम में रोगियों का तांता लगा था और हरिद्वार के बाहर लगने वाले शिविरों में भी उनकी दवाओं की खूब बिक्री हो रही थी. इसके अलावा डाक से भी दवाइयां भेजी जा रही थीं.डाकघरों
रामदेव के चहुंओर प्रचार और देश भर में उनकी दवाओं की मांग को देखकर उत्तराखंड के वाणिज्य कर विभाग को संदेह हुआ कि बिक्री का आंकड़ा इतना कम नहीं हो सकता. उसने हरिद्वार के डाकघरों से सूचनाएं मंगवाईं. पता चला कि दिव्य फार्मेसी ने उस साल 3353 पार्सलों के जरिए 2509.256 कि.ग्रा माल बाहर भेजा था.
इन पार्सलों के अलावा 13 लाख 13 हजार मूल्य के वीपीपी पार्सल भेजे गए थे. इसी साल फार्मेसी को 17 लाख 50 हजार के मनीआर्डर भी आए थे. सभी सूचनाओं के आधार पर राज्य के वाणिज्य कर विभाग की विशेष जांच सेल (एसआईबी) ने दिव्य फार्मेसी पर छापा मारा. इसमें बिक्रीकर की बड़ी चोरी पकड़ी गई.डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा
छापे को अंजाम देने वाले तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर जगदीश राणा बताते हैं, ‘तब तक हम भी रामदेव जी के अच्छे कार्यों के लिए उनकी इज्जत करते थे. लेकिन कर प्रशासक के रूप में हमें मामला साफ-साफ कर चोरी का दिखा.’ राणा आगे बताते हैं कि मामला कम से कम पांच करोड़ रु. के बिक्रीकर की चोरी का था.
भ्रष्टाचार और काले धन की जिस सरिता के खिलाफ बाबा रामदेव अभियान छेड़े हुए हैं उसी में अगर वे खुद भी आचमन कर रहे हैं तो यह ऐसा ही है कि “औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत.” यहाँ इतना लंबा अंश उद्धृत करने का मकसद आपको उस पृष्ठभूमि में ले जाना था जहाँ से यह पूरा खेल शुरू होता है. पर्दे पर दिखने वाले योगा के पीछे भी एक पर्दा था. उसी की ताकत बाबा को ‘स्टेट’ से भी ऊपर बना देती है.पद्धतियाँ
कोरोना की इस महामारी में बाबा की कंपनी ने ‘कोरोनिल’ नाम से एक दवा भी बनाई जिसका खूब प्रचार-प्रसार यह कह कर किया गया कि ‘यह कोरोना को एकदम
ठीक कर देने वाली दवा है’. बाबा रामदेव के इस दावे पर जब मेडिकल विशेषज्ञों ने जाँच की तो उसके बाद बाबा ने इसको लेकर सफाई भी दी लेकिन उसके बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री ने इस दवा को आधिकारिक तौर से लॉन्च किया.
तरह की
बाबा के बयान को और विस्तार से समझने के लिए हाल के विवाद को समझना होगा. कुछ रोज पहले बाबा ने अलग -अलग मंचों से एलोपैथी को लेकर जो बयान दिए और उस पर The Economic Times ने बाबा को लेकर एक रिपोर्ट की और बताया कि वित्तीय वर्ष 2016-17 में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड का रेवन्यू 9000 करोड़ था और उसने 570 करोड़ विज्ञापन -प्रोमोशन में खर्च किए थे. वहीं न्यूज़ चैनलों को सबसे ज्यदा विज्ञापन देने वाली तीन बड़ी कंपनियों में एक पतंजलि भी है. यही कारण है कि बाबा न्यूज़ चैनलों के भी योग गुरु हैं.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने जो प्रतिक्रिया दी उससे बाबा एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गए. वैसे ‘केंद्र’ और बाबा का पुराना रिश्ता है. बाबा खबरों में अक्सर बने रहते हैं. टीवी न्यूज़ की दुनिया पर उनका बड़ा दबदबा है. वर्ष 2018 मेंकी कई
कोरोना की इस महामारी में बाबा की कंपनी ने ‘कोरोनिल’ नाम से एक दवा भी बनाई जिसका खूब प्रचार-प्रसार यह कह कर किया गया कि ‘यह कोरोना को एकदम ठीक कर देने वाली दवा है’. बाबा रामदेव के इस दावे पर जब मेडिकल विशेषज्ञों ने जाँच की तो उसके बाद बाबा ने इसको लेकर सफाई भी दी लेकिन उसके बाद देश के स्वास्थ्य मंत्री ने इस दवा को आधिकारिक तौर से लॉन्च किया. बाबा और IMA के बीच ‘कोल्डवॉर’ की शुरुआत यहीं से हुई थी लेकिन यह मामला तब और बढ़ गया जब बाबा ने- ऐलोपैथी की दवाओं को जानलेने वाला बता दिया साथ ही एलोपैथी को ‘स्टुपिड और दिवालिया साइंस’ कह दिया.
चिकित्सा
इसके साथ ही बाबा का डॉक्टरों की मौत पर उपहास उड़ाने वाला वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है. उसमें वह कहते सुनाई देते हैं कि जो डॉक्टर खुद को नहीं बचा सके IMA इससे खासा नाराज हुआ और उसने देश के प्रधानमंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक को चिट्ठी लिखी और बाबा पर क़ानूनी कार्यवाही करने के लिए कहा.
वह दूसरों को क्या बचाएँगे. इस तरह के बयान देने के कुछ रोज पहले उन्होंने कहा था- ”ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन है लेकिन लोग बेवजह सिलेंडर ढूँढ रहे हैं.” बाबा के लगातार आ रहे इन बयानों से जहाँ देश भर के डॉक्टरों के बीच रोष पनपा तो वहीं डॉक्टरों का संगठनएक बार
भारत में तो चिकित्सा की कई तरह की पद्धतियाँ काम करती हैं. केरल में करीब 9-10 तरह की चिकित्सा पद्धतियाँ काम करती हैं. दुनिया भर से लोग यहाँ इलाज कराने
आते हैं लेकिन कभी वह टकराव नहीं देखा गया जो बाबा और IMA के बीच देखने को मिला. बाबा समय-समय पर ऐलोपैथी को लेकर बयान देते रहे हैं. उन बयानों में स्वयं को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमतर बताने की मंशा स्पष्ट देखी जा सकती है. जबकि कमियां और सीमाएं दोनों तरफ हैं.
उससे बाबा
हालांकि बाबा ने यह सोचा नहीं होगा कि यह बात इतने आगे तक चली जाएगी. इसलिए विवाद बढ़ा तो बाबा ने तुरंत सफाई भी दे डाली लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बाबा रामदेव को तल्ख पत्र लिख उनकी सफाई को नाकाफी बताकर नाराजगी जाहिर की. उसके बाद बाबा ने अपना बयान वापस तो ले लिया,
लेकिन अगले ही दिन IMA से ऐलोपैथी संबंधित 25 सवाल कर डाले. इसके बाद IMA ने एलोपैथी को लेकर बाबा रामदेव के ज्ञान पर तो सवाल उठाए ही साथ ही सार्वजनिक माफीनामा न होने की दशा में एक हजार करोड़ की मानहानि का दावा भी किया है. इस बीच बाबा के शिष्य आचार्य बालकृष्ण के बयान ने मामले को अलग ही दिशा दे दी.प्रतिक्रिया दी
उन्होंने कहा कि देश को ईसाई बनाने के षड्यंत्र के तहत बाबा को टारगेट किया जा रहा है. अब यह मामला बढ़ता जा रहा है क्योंकि यह आयुर्वेद और ऐलोपैथी से ज्यादा ‘ईगो’ का मामला हो गया है. बाबा इसे जन भावनाओं के जरिए आयुर्वेद, भारतीय संस्कृति और ज्ञान पर हमला बता रहे हैं वहीं IMA इसे डॉक्टरों के अपमान और वैज्ञानिक चेतना के खिलाफ प्रचार के तौर पर देख रही है. ऐसे में यह विवाद जल्दी थमता तो नहीं दिखाई दे रहा क्योंकि देश कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है. डॉक्टर दिन-रात इसमें लगे हैं. हर कोई अपने स्तर पर इससे लड़ रहा है लेकिन खुद को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को अपमानित करने की इस मानसिकता से कोरोना की जंग तो नहीं जीती जा सकती है.
एसोसिएशन
WHO के अनुसार ही हर वर्ष ‘मेडिकल मिस्टेक’ के कारण 2.6 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है. यह भी ऐलोपैथी की एक हकीकत है लेकिन वहीं ऐलोपैथी के कारण ही कई
जानलेवा बीमारियाँ का इलाज भी खोजा गया है. इसलिए किसी भी चिकित्सा पद्धति को ‘स्टुपिड और दिवालिया साइंस’ कहना या ‘टर्र-टर्र’ कहकर डॉक्टरों का मजाक उडाना कहीं से भी उचित व्यवहार नहीं है.
मेडिकल
आयुर्वेद से लेकर ऐलोपैथी तक की अपनी सीमाएं हैं. दोनों के प्रति समाज में एक विश्वास वर्षों से कायम है. भारत में तो चिकित्सा की कई तरह की पद्धतियाँ काम करती हैं. केरल में करीब 9-10 तरह की चिकित्सा पद्धतियाँ काम करती हैं. दुनिया भर से लोग यहाँ इलाज कराने आते हैं लेकिन कभी वह टकराव नहीं देखा गया जो
बाबा और IMA के बीच देखने को मिला. बाबा समय-समय पर ऐलोपैथी को लेकर बयान देते रहे हैं. उन बयानों में स्वयं को श्रेष्ठ बताकर दूसरे को कमतर बताने की मंशा स्पष्ट देखी जा सकती है. जबकि कमियां और सीमाएं दोनों तरफ हैं. एलोपैथी से भी बहुत लोग नाराज रहते हैं. आए दिन दवाओं के ओवरडोज और डॉक्टर की लापरवाही से लोगों की जान जाने की खबरें आती रहती हैं.इंडियन
WHO के अनुसार ही हर वर्ष ‘मेडिकल मिस्टेक’ के कारण 2.6 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है. यह भी ऐलोपैथी की एक हकीकत है लेकिन वहीं ऐलोपैथी के कारण ही कई जानलेवा बीमारियाँ का इलाज भी खोजा गया है. इसलिए किसी भी चिकित्सा पद्धति को ‘स्टुपिड और दिवालिया साइंस’ कहना या ‘टर्र-टर्र’ कहकर डॉक्टरों का मजाक उडाना कहीं से भी उचित व्यवहार नहीं है. इस महामारी के दौर में जहाँ अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों के बीच समन्वय होना चाहिए वहीं ‘सिर फुटवल’ चल रहा है.
(लेखक हिमांतर के कार्यकारी संपादक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)