हिंदी पत्रकारिता का काल, कंकाल और महाकाल

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

  • प्रकाश उप्रेती

हिन्दी पत्रकारिता का सफर कई उतार-चढाव से होकर गुजरा है. उसका कोई स्वर्ण काल जैसा नहीं रहा है और होना भी नहीं चाहिए लेकिन पत्रकारिता का भक्तिकाल शाश्वत सत्य है. वह लगभग इन 200 वर्षों की यात्रा में नजर आता है.मासिक, साप्ताहिक और दैनिक से लेकर 24×7 तक सफर कई तरह की विषम परिस्थितियों से गुजरा है. because बंगाल गज़ट से उदंत मार्तण्ड, सरस्वती, आज,  नई दुनिया, हिंदुस्तान से लेकर जनसत्ता तक प्रिंट मीडिया का सफर रहा तो वहीं दूरदर्शन से लेकर आजतक और फिर 24×7 तक इलोक्ट्रोनिक मीडिया ने अपनी यात्रा तय की. इस यात्रा के दौरान पत्रकारिता ने एक तरफ जहाँ ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े होकर जनपक्षधरता दिखाई तो वहीं  मीडिया ने आजादी के आंदोलन में  भी महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई. लेकिन आजाद भारत में सरकार ने आपातकाल घोषणा के साथ ही पत्रकारिता का गला भी घोंट डाला.

सूर्य देव

एक तरह से मीडिया को पंगु बना दिया. इसके बाद मीडिया ने पूंजी और कॉर्पोरेट के गठजोड़ से टेलीविज़न के पर्दे पर एक नई दुनिया का सृजन किया. यह दुनिया टेलीविज़न की because पत्रकारिता की दुनिया थी जहाँ चकाचौंथ के साथ-साथ रंगीन तस्वीरों के बीच खबरों को दर्शकों के सामने पेश किया जा रहा था. टेलीविज़न की इस रंगीन पत्रकारिता को 1990 के बाद हु आर्थिक परिवर्तनों ने पंख लगा दिया. अब मीडिया न तो मिशन रहा न सरोकार वह विशुद्ध बिजनेस बनता चला गया और 21वीं सदी तक आते-आते मीडिया उद्योग में तब्दील हो गया.

सूर्य देव

रूपर्ट मर्डोक’ (Rupert Murdoch) जैसे मीडिया कारोबारियों ने पूरी दुनिया में मीडिया का साम्राज्यवाद फैलाया जिसका एक मात्र मकसद था पैसा कमाना. इस पैसे कमाने के लालच ने पेड न्यूज़ को जन्म दिया और मीडिया बहुत तेजी से बाजार तथा सत्ता की गिरफ़्त में आ गया. बाजार और टीआरपी के because दबाव ने मीडिया को खबरों में सनसनी पैदा करने लिए मजबूर किया और फिर मीडिया की भूमिका जनपक्षधरता की बजाय सत्तापरस्ती में सिमटने लगी है. ऐसे में यदि आज लोकतन्त्र को बनाए व बचाए रखना है तो मीडिया को भी बचाना होगा . मीडिया सत्ता से जितना दूर होगा उतना ही विश्वसनीय होगा और जितना सत्ता के करीब होगा उतना ही संदिग्ध होगा.

सूर्य देव

भारत में पत्रकारिता का प्रारंभ अंग्रेजी शासन स्थापित होने के बाद हुआ .18वीं  सदी के उत्तरार्ध में भारतीय पत्रकारिता के इतिहास की भूमिका लिखने का कार्य प्रारंभ हो गया था. दरअसल औद्योगिक क्रांति से पूर्व ही मुद्रण तकनीक का आविष्कार हो गया था. औद्योगिक क्रांति से इस तकनीक में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए. ईस्ट इंडिया because कंपनी जिन तकनीकों को अपने हित साधन के लिए भारत लाई मुद्रण तकनीकी उनमें से एक थी. औद्योगिक क्रांति से उत्पन्न पूँजीवादी व्यवस्था में ऐसी तकनीकों का व्यावसायिक इस्तेमाल स्वभाविक था. प्रिंटिंग प्रेस होते हुए भी कंपनी का इरादा कोई समाचार पत्र निकालने का नहीं रहा  इस दिशा में सर्वप्रथम व्यक्तिगत स्तर पर सन् 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की ने प्रयास किया और बंगाल गजट प्रकाशित किया.

बंगाल गजट  में प्रमुखता से ईस्ट इंडिया कंपनी के निजी  खबरें प्रकाशित होती थी. लेकिन भारत में यहाँ से एक पत्रकारिता की नींव पड़ चुकी थी भले ही वह बहुत कमजोर because और किसी के आसरे ही क्यों न टिकी हो . इसके बाद सन् 1795-96 तक कलकत्ता, मुंबई और मद्रास से कई समाचार पत्र प्रकाशित हुए . इस प्रकार कंपनी के भूतपूर्व कर्मचारियों द्वारा प्रारंभ की गई अँग्रेजी पत्रकारिता का उद्देश्य समाज में नवजागरण पैदा करना या समाज को आधुनिक बनाना था बल्कि कंपनी के प्रति शिकायतों को व्यक्त करना और उसके अधिकारियों व कर्मचारियों के निजी जीवन के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना इनका मूल उद्देश्य था. बंगाल गजट का निशाना तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंगस भी बने.

सूर्य देव

हेस्टिंगस की आलोचना का दुष्परिणाम हिक्की को झेलना पड़ा और सन् 1782 में सरकार ने इसका छापाखाना और संपत्ति जब्त कर ली साथ ही भारी जुर्माना लगाया गऔर अलग-अलग because तरीकों से  यातनाएं दी गई लेकिन इस सबके बावजूद भी हिक्की ने अपने विचारों में कोई परिवर्तन नहीं किया और अपने पत्र का संपादन करता रहा .पत्रकारिता को कैद करना व सरकारी अमले के जरिए उस पर नियंत्रण की कोशिश आरंभ से रही है .

सूर्य देव

भारतीय भाषाओं में समाचार पत्रों के प्रकाशन का दौर सन् 1816 से प्रारंभ होता है. इससे पूर्व जितने भी समाचार पत्र प्रकाशित हुए उनके संपादक और प्रकाशक विदेशी थे. इस वर्ष (1816) गंगाधर भट्टाचार्य ने ‘बंगाल गजट’ का सम्पादन किया तो वहीं युग पुरुष राजा राममोहन राय ने भारतीय भाषाई पत्रकारिता की नींव रखी because और हिंदी, उर्दू तथा फ़ारसी तीन भाषाओं में पत्र निकले. 1821 में ‘संवाद कौमुदी’ व सन्1822 में ‘मिरातुल’ अखबार प्रकाशित कर उन्होंने भारतीय समाज को दिशा देने का प्रयास किया. जब भारत में भाषाई प्रेस की भूमिका तैयार हो रही थी तो उसी समय सन् 1823 में कार्यवाहक गवर्नर जनरल जॉन एडम ने एक प्रेस अध्यादेश जारी कर समाचार पत्र प्रकाशित करने के नियम कानूनों की पहली बार व्यवस्था की.

सूर्य देव

समाचार पत्र निकालना अत्यंत जोखिम भरा और चुनौतीपूर्ण कार्य था. सरकारी दबाव व दमन के आगे समाचार पत्र निकालने का साहस कम ही व्यक्ति कर पाते थे. because इन्हीं परिस्थितियों के बीच 30 मई 1826 को जुगल किशोर शुक्ल ने प्रथम हिंदी पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ कलकत्ता से निकाला. यह पत्र उन्होंने भारतीयों के हित हेतु निकाला था, परन्तु बंगाल में हिन्दी का प्रचलन न होना, विज्ञापन न मिलने व आर्थिक कठिनाइयों के कारण पत्र अधिक दिनों तक नहीं चल सका.

सूर्य देव

इस अध्यादेश को आधार बनाकर राजा राममोहन राय के ‘मिरातुल’ अखबार के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गई. एक तरह से अँग्रेजी साम्राज्य ने प्रेस पर अंकुश लगाने का कार्य किया क्योंकि वह प्रेस की ताकत से वाकिफ़ थे. इसलिए उन्हें इसे नियंत्रण करना जरूरी लगा. देश में जब हिंदी पत्रकारिता की नीँव रखी गई उस समय because राजनीतिक परिस्थितिया अत्यंत विषम थी. शिक्षा का प्रसार नहीं के बराबर था. समाचार पत्र निकालना अत्यंत जोखिम भरा और चुनौतीपूर्ण कार्य था. सरकारी दबाव व दमन के आगे समाचार पत्र निकालने का साहस कम ही व्यक्ति कर पाते थे. इन्हीं परिस्थितियों के बीच 30 मई 1826 को जुगल किशोर शुक्ल ने प्रथम हिंदी पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ कलकत्ता से निकाला. यह पत्र उन्होंने भारतीयों के हित हेतु निकाला था, परन्तु बंगाल में हिन्दी का प्रचलन न होना, विज्ञापन न मिलने व आर्थिक कठिनाइयों के कारण पत्र अधिक दिनों तक नहीं चल सका.

सूर्य देव

दिसंबर 1827 में करीब डेढ़ साल बाद यह पत्र बन्द हो गया. इसके बाद सन् 1845 में प्रथम हिंदी साप्ताहिक ‘बनारस अखबार’ काशी से राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने निकाला. because पंडित गोविंद रघुनाथ क्षेत्र के संपादन में निकलने वाला बनारस अखबार राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द की भाषा नीति के अनुरूप था जिसमें अरबी, फारसी के शब्दों की भरमार रहती थी.

सूर्य देव

आजाद भारत में मीडिया से जो आशा और उम्मीद थी वह धीरे-धीरे निराशा में बदलने लगी. मीडिया दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र में ‘वॉचडॉग’ की भूमिका निभाने के बजाए बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों  के यहाँ घुटने टेकने लगा. लोकतन्त्र को मजबूत करने के बजाए उसको निरंतर कमजोर करता रहा है.

सूर्य देव

सन् 1829 में राजा राममोहन राय ने ‘बंगदूत’ हिंदी में निकाला. सन् 1846 में कलकत्ते से ‘इंडियन सन’ पांच भाषाओं में निकला जिसमें हिंदी प्रकाशन भी शामिल था. सन् 1850 में because हिंदी बंगला द्विभाषी पत्र ‘सुधाकर’ बनारस से तारा मोहन मैत्रेय ने निकाला. सन् 1850 में पंडित युगल किशोर शुक्ल का सामदंड मार्तण्ड, सन् 1852 में मुंशी सदा सुखलाल के संपादन में अगरा से ‘बुद्धि प्रकाश’ सन् 1855 में द्विभाषी सर्वहितकरक( हिंदी- उर्दू) निकला. इस तरीके से हिन्दी पत्रकारिता का कारवां आगे बढ़ता गया और धीर-धीरे पत्रकारिता में कई बदलाव आए.

सूर्य देव

आजाद भारत में मीडिया से जो आशा और उम्मीद थी वह धीरे-धीरे निराशा में बदलने लगी. मीडिया दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र में ‘वॉचडॉग’ की भूमिका निभाने के बजाए बड़े-बड़े कॉर्पोरेट घरानों  के यहाँ घुटने टेकने लगा. लोकतन्त्र को मजबूत करने के बजाए उसको निरंतर कमजोर करता रहा है. मीडिया की इस पूरी स्थिति का because एक बड़ा कारण आजादी के बाद हिंदी पत्रकारिता में बड़ी मात्रा में पूंजी का निवेश था. इसलिए देश के कई हिस्सों से नए दैनिक समाचार पत्रों का प्रारंभ हुआ. पत्रकारिता अब उद्योग और व्यवसाय के पदचिन्हों पर घुटनों के बल चलने लगी थी . इस दौर में मीडिया, सत्ता और पूँजीपतियों का एक ‘कोकस’ बन गया था. जहां सब कुछ ‘प्लांट’ किया जा रहा था. क्या लिखा जाए , क्या दिखाया जाए, किसे दिखाया जाए, क्या छुपाया जाए सबकुछ सत्ता, मीडिया और पूँजीपतियों के जरिए तय हो रहा था.

सूर्य देव

1990 के बाद मीडिया में पूँजी का because दखल जिस रूप बढ़ा उसका सीधा असर पत्रकारिता के ‘एथिक्स’  पर पड़ा. 21वीं सदी आते-आते  तो मीडिया में एथिक्स की बात करना गुजरे जाने की बात हो गई थी. अब समाचार के नाम पर प्लांट या पेड़ खबरों का दौर चल पड़ा. समाचार के नाम पर कुछ लिखा व दिखाया जाने लगा .

सूर्य देव

ब्रिटेन से लेकर फ्रांस, अमेरिका और भारत की सत्ता व मीडिया पर रूपर्ट मर्डोक का जो ‘होल्ड’ था वह आपने आप में 21वीं सदी के मीडिया की पोल खोलता है. पैसे लेकर because स्टिंग से लेकर हत्या करने व सत्ता में कौन आएगा और कौन नहीं यह सब कुछ मीडिया के जरिए तय हो रहा है . रूपर्ट मर्डोक प्रकरण ने एक तरफ मीडिया के स्याह सच को दुनिया के सामने तार-तार  किया तो वहीं 21वीं सदी के मीडिया की ताकत से भी दुनिया को रूबरू करा दिया.

सूर्य देव

 टीआरपी के चक्कर में जहाँ ‘काल, कपाल महाकाल’ जैसे अंधविश्वास फैलाने वाले कार्यक्रम समाचार चैनलों पर दिखाए जाने लगे तो वहीं ‘कुत्ते की मौत पर सलमान गमगीन’ जैसे शीर्षकों से बड़े-बड़े अखबारों के पन्ने भरे रहते हैं. इस तरह की पत्रकारिता का जनसरोकारों से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है. उसका एक because मात्र लक्ष्य है जनता को दिग्भ्रमित व चकचौंध से चकित कर बाजार से मुनाफा कमाना और अपनी टीआरपी बढ़ाना. 21वीं सदी की पत्रकारिता का लक्ष्य  बाजार से टीआरपी और टीआरपी से सत्ता तक है. एक तरह से यह समय मीडिया के साम्राज्यवाद का समय है. कुछ वर्ष पहले ‘मीडिया मुगल’ के रूप में ‘रूपर्ट मर्डोक’ (Rupert Murdoch) जो खबरें व तथ्य समाने आए उनसे 21वीं सदी को मीडिया के साम्राज्यवादी विस्तार की सदी कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए.

सूर्य देव

ब्रिटेन से लेकर फ्रांस, अमेरिका और भारत की सत्ता व मीडिया पर रूपर्ट मर्डोक का जो ‘होल्ड’ था वह आपने आप में 21वीं सदी के मीडिया की पोल खोलता है. पैसे लेकर स्टिंग से because लेकर हत्या करने व सत्ता में कौन आएगा और कौन नहीं यह सब कुछ मीडिया के जरिए तय हो रहा है . रूपर्ट मर्डोक प्रकरण ने एक तरफ मीडिया के स्याह सच को दुनिया के सामने तार-तार  किया तो वहीं 21वीं सदी के मीडिया की ताकत से भी दुनिया को रूबरू करा दिया.

सूर्य देव

आज मीडिया एक बड़ी ताकत के रूप में स्थापित हो चूका है. सोशल मीडिया के आने के बाद तो हर व्यक्ति पत्रकार की भूमिका में आ गया है. इसका सकारात्मक- नकारात्मक because दोनों पक्ष हैं लेकिन सत्ता ने इसे अपने पक्ष में बखूबी इस्तेमाल किया है. ऐसे में दिनों-दिन चौथे खम्बे की विश्वसनीयता कम होती जा रही है. ऐसे में पत्रकारिता दिवस की मुबारकबाद तो सिर्फ काल, कंकाल और महाकाल को दी जा सकती है. बधाई कंकाल…

सूर्य देव

(लेखक हिमांतर के कार्यकारी संपादक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *