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चोखी ढाणी देखने के बाद आमेर किले (आंबेर) की सैर

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चोखी ढाणी देखने के बाद आमेर किले (आंबेर) की सैर

सुनीता भट्ट पैन्यूली

सुबह के साढ़े दस बजे हैं हम घर से निकल गये हैं. मुश्क़िल यह है कि मुझे हर हाल में आमेर का किला देखना है और समय हमारे पास कम है और पतिदेव ने समय सीमा बता दी है कि दो बजे तक किसी भी सूरत में देहरादून के लिए निकलना है मुझे भली-भांति ज्ञात है सीमित समय में इतना विराट और भव्य दुर्ग नहीं देखा जा सकता है.सरसरी नज़र से पहले भी आमेर देख चुकी हूं किंतु इस बार मैं आमेर किले के because बारे में थोड़ा बहुत पढ़कर आयी हूं ताकि भारत की इस विशालकाय यूनेस्को की धरोहर को इतिहास की उसी ड्योढ़ी पर बैठकर उस समृद्ध,अनुशासित,वैभव और कीर्ति के काल को केंद्रित दृष्टि से जीवंत महसूस कर सकूं और थोड़ा बहुत आमेर के बारे में लिख पाऊं.

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अपनी धरोहरों के माध्यम से ही इतिहास अपने वैभव, because अपनी कीर्ति अपनी संस्कृति को समय की तरंगों पर बसा सकता है. मेरा अपना अनुभव है कि जिस जगह  भ्रमण के लिए जा रहे हैं उस जगह विशेष और उसके आसपास की जानकारी पूर्व में ही जुटा ली जाये तो अनावश्यक समय की बर्बादी और बेफज़ूल के झंझटों से काफी हद तक बचा जा सकता है.

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गाइड लेना चाहते थे ताकि आमेर दुर्ग के बारे में ज़्यादा से because ज़्यादा जानकारी एकत्रित की जा सके और  सब कुछ यथावत सुना और समझा जाये इस गौरवशाली धरोहर के बारे में. लेकिन समय के अभाव में यह हो नहीं पाया फिर भी स्वयं के प्रयास से आंबेर दुर्ग को जितना समझ पायी और महसूस किया आप सभी के सुपुर्द कर रही हूं तस्वीरें भी हैं जो ज़ल्दबाज़ी का ही परिणाम हैं फिर भी पोस्ट कर रही हूं.

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अंदाज़न हम साढ़े बारह बजे आमेर दुर्ग पहुंच गये हैं पैदल पहुंचना because तो वहां नामुमकिन है हमारे लिए समय के अभाव के कारण. हमें जानकारी है कि पीछे के रास्ते कार, जीप द्वारा भी आमेर का किला पहुंचा जा सकता है और हमारे शेड्यूल में भी यह व्यवस्था फिट बैठ रही है. आमेर दुर्ग जिसे आंबेर का किला भी कहा जाता है भारत के राजस्थान राज्य की राजधानी जयपुर यानि कि गुलाबी नगरी से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर है. वैसे आमेर शहर  जयपुर में ही आता है.

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कहते हैं आमेर का किला मीणाओं ने बनाया था बाद में कच्छावाओं का इस पर आधिपत्य हो गया. आज का किला जिस रुप में है कच्छावा  राजपूत मानसिंह प्रथम ने जिस पर राज किया और कालांतर because में आमेर के किले का पुनर्निर्माण करवाया. लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से निर्मित यह आकर्षक आमेर दुर्ग अपनी हिंदु वास्तुशैली व मुगल शैली की कला के समागम के लिए जाना जाता है.

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अरावली पर्वतमाला के ऊपर बना आंबेर महल,महल की विशाल प्राचीर,द्वारों की कलात्मक श्रंखलाएं एवं प्रत्येक द्वार पर विशेष प्रांगण आमेर  महल की  खासियत हैं. महल की ओर ऊपर जाते हुए चमकीले पत्थरों के रास्तों और इन because रास्तों से नीचे की ओर देखने पर मावठा सरोवर और उसके बीच में केसर क्यारी बहुत ही अद्भुत दिखती है और सुहाग मंदिर से केसर  क्यारी और भी बहुत सुंदर दिखती है.

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हम ज़ल्दबाज़ी में हैं कार से ही आमेरफोर्ट जाना because तय किया है दरअसल आमेर दुर्ग जाने के लिए हाथी और घोड़ों का मार्ग अलग है और कार या जीप से जाना जाते हैं तो वह मार्ग अलग है और पैदल-यात्रियों के लिए सीढ़ी द्वारा जाने के लिए अलग रास्ता है.सीढ़ियों द्वारा जो रास्ता आमेर दुर्ग जाता है वह शाही रास्ता होता था जिस पर केवल शाही परिवार जाता था.

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हम कार के रास्ते आमेर के चांद पोल (द्वार) पर पहुंच गये हैं जहां से एक बड़े से अहाते में हमने प्रवेश कर लिया है जिसे जलेब चौक कहते हैं. ज़लेब चौक अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ है सैनिकों के एकत्र होने का स्थान. because जलेब चौक यानि जब सैनिक युद्ध में जीतकर जो भी साजो-सामान,धन,दौलत जीतकर लाते थे वह जलेब चौक में ही एकत्रित किया जाता था.

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यदि हम सीढ़ियों के द्वारा पैदल चलकर आमेर दुर्ग जाते हैं तो सूरज पोल (द्वार) पर पहुंचते हैं जो पूर्वाभिमुख है और सूरज पोल के ठीक विपरीत  चांद पोल है जहां हम कार या जीप द्वारा पहुंचते हैं उस तरफ शाही अस्तबल because है जहां शाही घोड़े रहते थे और उसके ऊपर कमरे हैं जहां सैनिक रहते थे. चांद पोल के बांयी तरफ टिकट घर है जहां प्रत्येक व्यक्ति 100 रूपये टिकट हैं और यदि आप छात्र या छात्रा हैं तो 25 Rs की छूट मिल जाती है.

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जलेब चौक से सिंह पोल (मुख्य प्रांगणों और महल की रक्षा  के लिए अंगरक्षक तैनात होते थे इसलिए इसे सिंह पोल कहा जाता है) इसके बांयी तरफ शिला माता का मंदिर है जिसके दरवाजे  सोने के पतरों से मढे हुए हैं जिस पर नौ देवियों की तस्वीरें चित्रित  हैं, राजपूत लालत्य और कला का उत्कृष्ट उदाहरण है  जिसे राजा मानसिंह युद्ध में जीतकर लाये जिस पर उकेरी हुई दुर्गा को शिला माता के रूप में because कच्छावा वंश द्वारा पूजा जाता था. सिंह पोल की ओर सीढ़ियों से चलने पर हम फिर एक बड़े से प्रांगण  में पहुंचते हैं जहां पर एक बड़े से संगमरमर के चबूतरे पर  दीवाने-आम है जहां राजा आम लोगों की शिकायतें सुनते और उनका हल निकालते थे.

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मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली because का अनुपम और अद्भुत समिश्रण है आंबेर  दुर्ग दीवाने-आम के ठीक सामने एक ऊंची सीढ़ियों वाला जिस पर  ख़ूबसूरत नक़्काशी  व कलात्मक चित्र बनाये गये  हैं  द्वार है जिसे गणेश पोल (द्वार) कहते हैं  उसके साथ ही लगी हुई सत्ताईस कचहरी है.गणेश पोल के ठीक ऊपर गणेश जी का एकमात्र चित्र हमें दिखाई दे रहा है.गणेश पोल के भीतर प्रवेश करते ही  फिर एक और प्रांगण में संगमरमर के चबूतरे पर चालीस खंबो पर बना हुआ शीश महल है जिसे जय महल भी कहा जाता है.आमेर का किला अपने शीश महल के कारण विश्व -भर में प्रसिद्ध है.

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शीश- महल जहां कहते हैं माचिस की तीली जलाने because पर सारे महल में रोशनी की जगमगाहट हो जाती थी.शीश महल में मेहराबों की कांट छांट एक विशिष्ट आकर्षण है जहां हाथी राजपूत शैली और कमल मुगल शैली का अनुपम उदाहरण है.

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शीश महल की दीवारें और छत  अवतल शीशे की because रंगीन पच्चीकारी से सुसज्जित हैं.किसी गाइड को बोलते हुए सुना मैंने की शीश-महल को गर्म रखने और और तारों का आभास ज़मीन पर होने के लिए महल में मोमबत्तियां जलाई जाती थीं या फिर महल की दिवारों और छतों का  रंग जिस प्रकार का बदलना हो उसी रंग का कालीन फर्श पर बिछा दिया जाता था.यह शीशा (Concave mirror) मुख्यत: बेल्जियम से मंगाया गया था.शीश महल के ठीक सामने सुख महल है जहां शाही परिवार गर्मियों के दिनों में विश्राम किया करता था. शीशमहल और सुख मंदिर के बीचों बीच मुगल शैली में बना मुगल गार्डन है.

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सुख मंदिर में पानी की because बेहतरीन निकासी के साथ गर्मियों में कमरों को ठंडक देने की बेहतरीन व्यवस्था और संगमरमर की जालीयों से बने डिजाइन के ख़ूबसूरत कमरे हैं. इन जालियों के पीछे  जल प्रवाह की व्यवस्था है जो कमरों को ठंडी हवा देते थे साथ ही पानी के सदुपयोग के लिए सुनिश्चित जल  निकास की भी व्यवस्था है जिसके द्वारा पानी गुप्त रूप से बहकर मुगल गार्डन में गिरता है. गर्मियों में कमरों को ठंडक देने के लिए आर्क पर सुगंधित खस घास के पर्दे लगाये जाते थे जिससे हवायें ठंडी और खुशबूदार बनी रहती थीं.

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शीशमहल के ऊपर जस मंदिर है because और गणेश पोल के ऊपर सुहाग मंदिर है जहां रानियां बैठकर झरोखे से दीवाने-आम की कार्यवाही में रूचि लेती थीं.सुहाग मंदिर से बाहर केसर क्यारी और मावठा झील जिसे मावठा सागर भी कहते हैं बहुत सुंदर दिखाई देते हैं. केसर क्यारी इसे इसलिए कहा जाता है कि राजा मानसिंह ने इन क्यारियों में केसर उगाने का एक  असफल प्रयास किया था जो कि राजस्थान की गर्म जलवायु के हिसाब से नहीं उगाया जा सकता है.

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सुहाग मंदिर से आमेर किले को लाल बलुआ because पत्थर की 12 किलोमीटर  की मोटी दिवार घेरती हुई और आमेर शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है,आमेर शहर जो महज़ चार किलोमीटर में सिमटा हुआ है.सुहाग मंदिर की दीवारें प्राकृतिक रंगों की चित्रकारी का ख़ूबसूरत और  बेजोड़ नमूना हैं.

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यहीं से दूर अरावली की पहाड़ी पर ही जयगढ़ का because किला दिखाई देता है जिसे दरअसल आमेर का ही भाग कहा जाता है दोनों महलों को एक गुप्त सुरंग जोड़ती है.आज सुरंग बंद है किंतु किसी ने बताया कि  इस गुप्त सुरंग से मुश्क़िल से दस मिनट में जयगढ़ महल पहुंचा जा सकता है.

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सुहाग महल देखने के बाद हम आमेर के सबसे because पुराने महल की ओर जाते हैं यानि राजा मानसिंह का किला.राजा मानसिंह की बारह रानियां थीं बारह रानियों के बारह महल जिसे जनानी ड्योढ़ी भी कहते हैं प्रत्येक रानी से मिलने के लिए राजा के महल से गुप्त रास्ता था. जनानी ड्योढ़ी में ही एक चौड़े चबूतरे पर ख़ूबसूरत बुर्ज़ है जिसे बारादरी कहा जाता है जहां दासियां,किन्रर रानियों का मनोरंजन किया करते थे.

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आमेर दुर्ग के पुराने महल के पीछे रसोईखाना है because जहां दो बड़ी-बड़ी लोहे की कड़ाही रखी गयी हैं.एक शाही रसोई की और एक फिल्म जोधा अकबर के दौरान शुटिंग में प्रयुक्त हुई थी जिसे यहीं छोड़ दिया गया है. शाही रसोई घर अब मीना बाजार में तब्दील हो गया है यहां से आप राजस्थान हैंडीक्राफ्ट का सामान ले सकते हैं.

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यहां म्युजियम भी है जिसे बंद होने के कारण हम because देख नहीं पाये शायद आमेर का किला इतवार को दो बजे तक ही खुला रहता है और हम इतवार को ही आमेर देखने आये हैं. सुना है यहां डोली महल भी है जिसका आकार डोली जैसा है वह हम नहीं देख पाये.

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संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर  से बना आमेर because की निर्माणशैली पुरातन में नवीनता और आधुनिकता का अद्भुत सामंजस्य है जैसे पानी निकास की सुव्यवस्थित नीति,टर्किश हमाम में रानियों के नहाने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था और यहां के 99 शौचालय, कुशल व्यवस्था और नवोन्मेष का प्रशंसनीय उदाहरण हैं.  मीना बाजार में लकड़ी व पीतल  का सामान, कठपुतलियां,लाख की चुड़ियां, साज-सज्जा का सामान ,हाथ से बने पर्स, बैग, छतरियां इफ़रात में मिल रहे हैं.

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वापसी में हम सूरज पोल से सीढिय़ां उतरते हुए because कार वाले रास्ते की ओर मुड़ गये हैं समय लगभग दो बजने वाला है. रास्ते में कार से जलमहल देखते हुए हमने देहरादून की राह पकड़ ली है. आमेर के किले को देखना भारत की  विशाल और समृद्ध  धरोहर पर मेरे लिए गर्व का विषय रहा.

(लेखिका साहित्यकार हैं एवं विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में अनेक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं.)

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