बाघ जब एकदम सामने आ गया

मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—27

  • प्रकाश उप्रेती

आज किस्सा ‘बाघ’ का. बाघ का हमारे गाँव से गहरा नाता रहा है. गाँव में हर किसी के पास बाघ के अपने-अपने अनुभव और क़िस्से हैं. हर किसी का बाघ से एक-दो बार तो आमना -सामना हुआ ही होगा. अपने पास भी बाघ को लेकर कुछ स्मृतियाँ और ढेरों क़िस्से हैं.

हमारे घर में ‘कुकुर’ (कुत्ता) हमेशा से रहा है. पहले हम बकरियाँ भी पाला करते थे. बाघ के लिए आसान और प्रिय भोजन ये दोनों हैं लेकिन वह गाय और बैलों पर भी हमला करता है. मेरी याददाश्त में हमारे 9 कुत्ते, 2 बकरी, 4 गाय और 1 बैल को बाघ ने मारा. मैं इन सबका गवाह रहा हूँ. जब भी बाघ ने इनको मार उसके बाद हमें बस हड्डियाँ ही नसीब हुई थी. कुछ महीने पहले ही छोटी सी गाय को फिर बाघ ने मार दिया. इसलिए बाघ ‘अन्य’ की तरह न चाहते हुए भी हमारे ताने-बाने में दख़ल दे ही देता है.

ईजा अच्छे से छन के दरवाजे पर ‘अड़ी’ (एक मोटी, थोड़ी लंबी लकड़ी) लगाकर हूँ..हारच..(खास तरह का टोन) बोलती थीं. साथ ही ऊपर ‘थान’ (मंदिर) की तरफ देखकर बोलती- “इष्टा गोठ भतेर सबुक रक्षा करिए” (हे, कुल देवता अंदर-बाहर सबकी रक्षा करना). ईजा जब तक ये सारे काम करती थीं, मैं छिलुक लेकर खड़ा रहता था.

गर्मियों के दिनों में ईजा रात को खाना खाने तक गाय-भैंस को बाहर ही बांधे रखती थीं. ईजा कहती थीं- “भ्यार बे हवा खिल, आले बति गोठ उसी जिल नतर”( बाहर हवा खाएंगे, अभी से अंदर बांध दिए तो बहुत गर्मी हो जाएगी). खाना खाने के बाद हमेशा मैं और ईजा ‘छन’ (जहाँ गाय-भैंस बांधते हैं) जाते थे, मैं “छिलुक”(आग पकड़ने वाली लकड़ी) जलाकर पीछे और ईजा लाठी बजाते हुए आगे चलती थीं. ईजा छन में गाय को अंदर बांधती और गाय-भैंस दोनों को घास देती थीं. भैंस गर्मियों के दिनों में रातभर बाहर ही बंधी रहती थी. ईजा अच्छे से छन के दरवाजे पर ‘अड़ी’ (एक मोटी, थोड़ी लंबी लकड़ी) लगाकर हूँ..हारच..(खास तरह का टोन) बोलती थीं. साथ ही ऊपर ‘थान’ (मंदिर) की तरफ देखकर बोलती- “इष्टा गोठ भतेर सबुक रक्षा करिए” (हे, कुल देवता अंदर-बाहर सबकी रक्षा करना). ईजा जब तक ये सारे काम करती थीं, मैं छिलुक लेकर खड़ा रहता था.

ऐसे ही एक दिन रात को खाना खाकर मैं और ईजा ‘छन’ जा रहे थे. तभी देखते क्या हैं कि बाघ ने गाय की गर्दन पकड़ी हुई है. जैसे ही ईजा की नज़र बाघ पर पड़ी, ईजा बाघ… बाघ चिल्लाई और हम वापास घर की तरफ भागे. उतनी देर में बाघ ने गाय को तीन खेत नीचे फेंक दिया था.

ऐसे ही एक दिन रात को खाना खाकर मैं और ईजा ‘छन’ जा रहे थे. तभी देखते क्या हैं कि बाघ ने गाय की गर्दन पकड़ी हुई है. जैसे ही ईजा की नज़र बाघ पर पड़ी, ईजा बाघ… बाघ चिल्लाई और हम वापास घर की तरफ भागे. उतनी देर में बाघ ने गाय को तीन खेत नीचे फेंक दिया था. हमको बस बद, बद की आवाज आई. उसके बाद हम लाठी, कंटर फतोड़ते रहे. गाँव वालों ने भी खूब कंटर फतोड़ा और हा.. हुरच करने लगे लेकिन बाघ ने तब तक गाय को मार दिया था. दूसरे दिन सुबह गाय की हड्डियां हमें एक झाड़ी के पास बिखरी हुई दिखाई दी थी.

एक बार ईजा और मैं ‘सनणा’ (बाजार का नाम) से ‘घट’ (चक्की से आटा) पीसकर आ रहे थे. गाँव में बाजार जाने का समय शाम का ही होता था. हम भी शाम के 4 बजे घर से निकले थे. ईजा के पास गेहूँ व मेरे सिर में मंडुवा था. दुकान तक पहुँचते-पहुँचते 5 बजने वाले थे. घर से तकरीबन 4-5 किलोमीटर तो सनणा होगा ही. वहाँ भी लाइन लगी हुई थी. खैर, दिन ढलते-ढलते हमारा अनाज भी पिस गया. चक्की से निकला आटा गर्म होता है. उसे तुरंत सर पर नहीं रखा जा सकता है. ईजा ने सड़क से कुछ पत्ते तोड़े और एक ‘सिन’ अपने लिए और एक मेरे लिए बना दिया. मेरे सर में मंडुवे का कट्टा रखते हुए ईजा बोली- “च्यला चम-चम हिट रे अन्यार पड़ गो यो” (बेटा जल्दी जल्दी चल, अँधेरा हो गया है).

मैंने ईजा से कहा- “ईजा गध्यर होन कै छू” (ईजा खाई में कुछ है). मैं ईजा को यह कह ही रहा था कि तब तक बाघ हम से कुछ हाथ की दूरी पर रास्ते में आ खड़ा हुआ. हम दोनों की नज़र बाघ पर पड़ी. बाघ देखते ही आवाज ‘मुनि जेंछ’….

अब आगे मैं चल रहा था और पीछे से फटाफट ईजा आ रही थीं. दोनों के सर में भारी बोझा था. आते-आते हम वहाँ पहुँच गए जहाँ से हमारा गाँव दिखाई देता है. ईजा ने कहा- “च्यला थोड़ा बीसे ले रे, मोंड़ी दब गे” (बेटा थोड़ा सुस्ता लेते हैं, मेरी गर्दन दब गई है) . हम दोनों ने सर का आटा नीचे रखा और ‘ढीकोवम’ (किनारे पर) बैठ गए. पसीने से तर -बतर हो रखे थे. वहाँ पर बड़ी अच्छी हवा चल रही थी. ईजा कुछ- कुछ बातें बता रही थीं.

गाँव में जब ‘जागरी'(पूजा) लगती थी तो बाघ का दिखाई देना अच्छा मान जाता था. कहते थे- ‘देवी की सवारी ने दर्शन दे दिए, बाघ देवी के दर्शन के लिए आया था’.. अक्सर जागरी लगने के दिन किसी न किसी को बाघ दिखाई दे जाता था.

तभी जहाँ पर हम बैठे थे उसके नीचे ‘गध्यर’ (खाई) से कुछ आवाज सी आई. आवाज हम दोनों ने सुन ली थी लेकिन ईजा मुझे बता नहीं रही थी. ईजा ने आवाज को नजर अंदाज कर लिया और कुछ बातें मुझे बताने लगीं. ताकि मेरा ध्यान उधर न जाए. तभी फिर से आवाज सुनाई दी, मैंने ईजा से कहा- “ईजा गध्यर होन कै छू” (ईजा खाई में कुछ है). मैं ईजा को यह कह ही रहा था कि तब तक बाघ हम से कुछ हाथ की दूरी पर रास्ते में आ खड़ा हुआ. हम दोनों की नज़र बाघ पर पड़ी. बाघ देखते ही आवाज ‘मुनि जेंछ’ (आवाज बंद हो जाती है). ऐसा कहा जाता है. हमारी भी आवाज बंद सी ही हो गई थी. बाघ रास्ते में आकर बैठ गया. हम दोनों ने धीरे से अपने कट्टे उठाकर सर पर रखे और चल दिए. थोड़ी दूर जाकर ‘हुरच, हुरच'(बाघ को भगाने वाली ध्वनि) कहा और विद्युत गति से घर पहुंच गए. घर पहुंच कर ईजा बोलीं- “आज खा हाचि रे बागेल” (आज बाघ ने खा लिया था).

ईजा कहती हैं- “जंगों सब खत्म ह्वेगी त ऊ कथां जां” . मैं सिर्फ हां, हां ही कह पाता हूँ.. सोचता हूँ ईजा का ज्ञान कितना गूढ़ है और हम चार किताबें पढ़कर दुनिया की नज़र में पढ़े लिखे हो गए हैं और ईजा गंवार… क्या उल्टी रीत है न!

हमारे इलाके में कभी इंसानों पर बाघ ने हमला नहीं किया न ही इंसानों ने बाघ पर हमला किया. गाँव में जब ‘जागरी'(पूजा) लगती थी तो बाघ का दिखाई देना अच्छा मान जाता था. कहते थे- ‘देवी की सवारी ने दर्शन दे दिए, बाघ देवी के दर्शन के लिए आया था’.. अक्सर जागरी लगने के दिन किसी न किसी को बाघ दिखाई दे जाता था.

आजकल बाघ रात -दिन दिखाई देने लगा है. ईजा रोज बाघ के बारे में बताती हैं. आज वहां दिखाई दिया…रात ‘पार भ्योव पन गुरूजण मोछि’ (रात सामने जंगल से हुँकार रहा था). इसके साथ ही ईजा यह भी कहती हैं- “जंगों सब खत्म ह्वेगी त ऊ कथां जां” (जंगल सब खत्म हो गए तो, वो कहाँ जाएगा). मैं सिर्फ हां, हां ही कह पाता हूँ.. सोचता हूँ ईजा का ज्ञान कितना गूढ़ है और हम चार किताबें पढ़कर दुनिया की नज़र में पढ़े लिखे हो गए हैं और ईजा गंवार… क्या उल्टी रीत है न!

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं।)

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