उत्तराखंड की लोककला ऐपण को नए कैनवास पर उकेर कर बनाया ब्रांड ‘चेली ऐपण’

0
1707

आशिता डोभाल

संस्कृति और सभ्यताओं because का समागम अगर दुनिया में कहीं है तो वह हमारी देवभूमि उत्तराखंड में है, जो हमारी देश—दुनिया में एक विशेष पहचान बनाते हैं, इसके संरक्षण का जिम्मा वैसे तो यहां के हर वासी का है पर इस लोक में जन्मे कुछ ऐसे साधक और संवाहक हैं जो इनको संजोने और संवारने की कवायद में जुटे हुए हैं.

संस्कृति

हम जब कहीं जाते हैं, तो वहां की संस्कृति और सभ्यता को देखने की ललक जब हमारे मन को लालायित करती है, सबसे पहले हम वहां देखते हैं कि लोक के प्राणदायक because वो कर्मयोगी कौन हैं जिनके तप और संकल्प से ये पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे पास धरोहर के रूप रहती है. ऐसे ही एक संस्कृति के सच्चे साधकों में है— नमिता तिवारी, जो पिछले दो दशक से अपने काम को नए—नए कलेवर और कैनवास पर अपनी कला के हुनर की छाप छोड़ रही है, जो आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत है प्रेरणादायक सिद्ध होगी.

परिवार

‘संकल्प से सिद्धि तक की यात्रा’ का वर्णन आज मैं अपनी लेखनी के माध्यम से करने जा रही हूं. आज उत्तराखंड जैसे राज्य में संस्कृति दम तोड़ती नजर आ रही है पर नमिता तिवारी जैसे लोग इसे जीवंत किए हुए हैं. उत्तराखंड का इतिहास और संस्कृति हमेशा से ही शोध का विषय रहे हैं कुछ शोध हुए भी है पर वो ना के because बराबर हैं और शायद ये वही कर्मयोगी हैं, जिनकी मेहनत और तपस्या से वो शोध पूरे हो पाते हैं. बेटियों का इतिहास उत्तराखंड को हमेशा से गौरवान्वित कराता आया है, सदियों से यहां की माटी में समय—समय पर प्रतिभाशाली बेटियों का जन्म हुआ है, जैसे- तीलू रौतेली, नंदा, गौरा, रामी  बौराणी, बचेंद्री पाल, बसंती बिष्ट और न जाने कितनी प्रतिभाओं की धनी बेटियों का नाता यहीं की माटी से रहा है, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है.

उनके

इस सब के पीछे उनकी मेहनत, लग्न, दृढ़ संकल्प और उनकी इच्छा शक्ति रही है. पहाड़ के परिपेक्ष में एक कहावत काफी प्रचलित है कि ‘पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ के काम नी आनी’ पर अब वक्त आ गया है कि यहां की जवानी यहीं के काम आएगी, बशर्ते हम अपने अंदर के सोए हुए हुनर को जगाएं because और इसी हुनर की मिसाल को कायम कर दिखाया है मूलतः अल्मोड़ा जिले की बेटी नमिता तिवारी ने, जिनका जन्म टिहरी गढ़वाल (पुरानी टिहरी) में हुआ. नमिता ने अपने जीवन को कलात्मक और रचनात्मक कार्यों के लिए समर्पित किया हुआ है. वह कुमाऊं की एक लोककला ऐपण को जमीन से उठाकर अन्य चीजों पर बनाने की सोची और उसमे वो सफल भी रही है.

साथ

उनकी मां एक कुशल गृहणी थी और उनके पिता लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे आमतौर पर देखा जाता है कि हर नौकरी वाले इंसान की जिंदगी में तबादले होते रहते है इनके because पिता के साथ भी वही होता था जिससे इन सब भाई बहनों की शिक्षा प्रभावित होती गई तो वर्ष 1993 में इनके माता पिता ने इनको अल्मोड़ा में शिफ्ट करने का फैसला लिया ताकि ये लोग एक जगह रहकर अपनी आगे की शिक्षा पूर्ण कर सके और अल्मोड़ा से ही नमिता ने अपनी स्नातकोत्तर तक की शिक्षा पूर्ण की.

उनका

हमारी पहली गुरु हमारी मां ही होती है क्योंकि बचपन हमारी पहली पाठशाला वही होती है और सृजन और निर्माण की शक्ति प्रकृति ने सिर्फ नारी जाति को ही प्रदान की है, वो चाहे किसी भी रूप में हो. नमिता का कहना है कि मैंने न दादी देखी और न नानी. बचपन से सारे काम अपनी मां को करते हुए देखा. because कुमाऊं मंडल की प्रसिद्ध लोककला ऐपण को भी इन्होंने अपने घर में बचपन से बनते देखा जो खास मौकों और तीज त्यौहारों पर घर की देहरी पर लाल मिट्टी (गेरू रंग) पर बिस्वार (चावल का आटा) से उनकी मां बनाती थी, जो नमिता को बहुत आकर्षित करती थी. बचपन से ही अपनी मां के साथ ऐपण में अपनी कला के हुनर को निखारने लगी थी पर तब तक उन्हें दूर—दूर तक ये ख्याल भी नहीं आता था कि एक दिन यही लोककला उनकी पहचान बनेगी जो विश्व स्तर पर उन्हें सम्मान के साथ जीना सिखाएगी और मचों पर सम्मानित करवाएगी.

पंखों की उड़ान

नमिता बचपन से ही प्रतिभा की धनी व्यक्तित्व रही है. पहाड़ों में महिलाओं की शिक्षा काफी चुनौतीपूर्ण रहती है और यदि कोई पढ़ लिख कर कुछ करना भी चाहती है तो घर परिवार उसे स्वीकार नहीं करता उसे बल्कि नकारा जाता है पढ़ने लिखने के बाद मां बाप की सोच होती है या तो सरकारी नौकरी या फिर शादी. नमिता को भी घर से हिदायत दी गई थी कि उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी करनी है पर उनके अंदर का सृजनात्मक मन तो कुछ और करने को आतुर रहता था.

सफर के

संस्कृति नगरी अल्मोड़ा शुरू से ही सृजनात्मक गतिविधियों का केंद्र रही है. वहां समय—समय पर नई—नई प्रतिभाओं के हुनर को निखारने के लिए मंच तैयार होते थेण. because सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा समय—समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते और उसका क्रम आज भी जारी है. नमिता को भी उन प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जानकारी मिली और उनमें प्रतिभाग करने का मौका भी मिला, जिससे उनकी रचनाशीलता को निखरने का सुनहरा मौका मिलता गया और फिर जब भी समय मिलता वो अपने घर में छोटे—छोटे ऐपण बनाने लगी. फिर क्या था, आत्म विश्वास बढ़ता गया और रचनाशीलता का विस्तार होता गया.

संस्कृति

पहले घर की देहरी में बनने वाले ऐपण अब नए—नए कलेवर और कैनवास पर बनने लगे, वैसे भी रचनाओं के संसार का कोई परिसीमन नहीं होता है. सन् 2002 में अपने घर की दहलीज पर बनने वाले ऐपण को उच्च स्तर पर पहुंचाने में उनके ‘सफर के पंखों की उड़ान’ में उनका साथ उनके परिवार ने तो दिया ही, 2006 में because उनकी मुलाकात श्रीमती किरन साह से हुई, जिनके साथ मिलकर उन्होंने कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए, जिसका क्रम आज भी जारी है. नमिता शुरुआत से ही जिम्मेदारियों का निर्वहन करने वाली महिला रही हैं, वो चाहे आपने काम की हो या घर—परिवार की. उनकी ईमानदारी और काम के प्रति निष्ठा देखते हुए कई लोग उनसे तीज त्यौहारों और शादी ब्याह के मौको पर अपने घर में ऐपण बनाने की जिम्मेदारी सौंपते हैं.

आयोजित

सन् 2011 में अल्मोड़ा में आयोजित नंदादेवी महोत्सव में “ऐपण प्रतियोगता” आयोजित की गई, जिसमें उन्होंने पहली बार प्रतिभाग किया और प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया. इससे उनका उत्साह और भी बढ़ गया व सन् 2012 में जिला उद्योग केन्द्र, अल्मोड़ा के सौजन्य से ‘हस्तशिल्प पुरस्कार’ देने की घोषणा हुई जिसमें जिले में जितने भी because हस्तशिल्प पर काम कर रहे थे सभी  ने प्रतिभाग किया व नमिता ने इस प्रतियोगिता में भी प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया. उनका मनोबल दिन—ब—दिन बढ़ता गया. उन्होंने दृढ़ संकल्प लिया कि अपनी मूल संस्कृति को ही अपनी कमाई और जीने का जरिया बनाया जाय. इस तरह से फिर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभाग के लिए नए—नए प्रयोग करने को योजना बनाई और नए—नए प्रयोग करने की शुरआत गई. वर्ष 2013 में ‘उत्तराखंड राज्य स्तरीय हस्तशिल्प पुरस्कार’ में नमिता ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया. उनके इरादे और मजबूत हो गए व आगे बढ़ने की दिशाएं मिलने लगी.

प्रतियोगता

भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय व हस्तशिल्प विभाग अल्मोड़ा के सौजन्य से 50 महिलाओं का पहला प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करवाया गया, जिसमें आपने मुख्य प्रशिक्षक की भूमिका में because प्रतिभाग किया व आपके कार्यों की गुणवत्ता की समीक्षा तत्कालीन कार्यरत उत्तराखंड की सचिव मनीषा पंवार जी द्वारा किया गया. उनके द्वारा समय—समय पर इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी गई, तत्पश्चात जिला उद्योग केंद्र, अल्मोड़ा व हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट्स या कोई भी सरकारी संगठन हो या गैर सरकारी संगठन हो, जिनके साथ मिलकर आपने मुख्य प्रशिक्षक की भूमिकाएं निभाई, जो क्रम आज भी जारी है.

ऐपण

आपके इनोवेशन को देखते हुए वर्ष 2015 (16-18 अगस्त) भारतीय तकनीकी संस्थान (IIT) रुड़की में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में आपने बतौर प्रशिक्षक के रूप में प्रतिभाग because किया, जिसमें आपने आईआईटी के छात्रों को ऐपण की संपूर्ण जानकारी दी. इस तरह से आपने अलग -अलग तरह की ऐपण कला का विस्तार किया.

महोत्सव में

9 नवम्बर 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारीbecause सविन बसंल व जिला उद्योग केन्द्र, अल्मोड़ा में कार्यरत जिला उद्योग महाप्रबंधक श्रीमती कविता भगत के सहयोग से नमिता ने ‘अल्मोड़ा ऐपण शिल्पकला स्वायत सहकारिता’ का गठन किया गया, जिसके ब्रांड का नाम ‘चेली ऐपण’ है. आपने बहुत सारे इनोवेशन युवा पीढ़ी को ध्यान में किए.

नंदादेवी

पहाड़ में महिलाएं हमेशा कार्य बोझ से जूझती हैं पर नमिता जैसी महिलाएं जिनकी रचनाओं को देखने देश के कोने—कोने से लोग आते हैं और आप से सीख कर जाते हैं. because कला के हुनर को देखते हुए प्रोजेक्ट फ्युल ने उनकी एक शॉर्ट फिल्म बनाई, जिसे लोगों ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब सराहा. इतना ही नहीं देश में जाने माने ‘फैशन के गढ़’ नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (NIFT)में भी अपनी लोककला ऐपण के हुनर का लोहा मनवा चुकी है. वहां के छात्र—छात्राओं को ऑन लाइन ट्रेनिंग देकर देश दुनिया को उत्तराखंड की लोक कला से रू—ब—रू करवा रही हैं.

आयोजित

पहाड़ों में प्रतिभाओं की कमी न थी और न है बस जरूरत है तो उन प्रतिभाओं को पहचानने की व  उनके हुनर को because निखारने की. जहां हम उत्तराखंडी आज अपनी संस्कृति और परंपराओं को खोते हुए दिखते है वहीं नमिता तिवारी जैसे साधक पहाड़ में अपनी तपस्या में लीन दिखते हैं जिनसे पहाड़ का अस्तित्व और अस्मिता पर कोई सवाल नहीं होता है क्योंकि ये वही सच्चे कर्मयोगी है जो निश्वार्थ भाव से अपनी परम्पराओं और संस्कृति के समागम को बचाए हुए है.

संस्कृति

चेली ऐपण के उत्पादों की सूची

  • 2014- फ़ाइल फोल्डर,डायरी, because पैन स्टैंड, वॉल फ्रेमिंग,टेबल क्लॉथ, कुशन कवर,पेंसिल पाउच, रुमाल मनी पाउच.
  • 2015- कॉटन साड़ी, सिल्क because साड़ी,लेडीज सूट,लेडीज वेस्कोट, टी शर्ट, पर्दा, बैग,कैंडिल लैंप,शीशा, स्कार्फ,कॉटन दुपट्टा.
  • 2016 जेंट्स टाई, जेंट्स कमीज, because जेंट्स वेस्कोट, टी कोस्टर, टोपी, लकड़ी ट्रे, लकड़ी हेयर क्लिप, वुडन बेंगल,वुडन ड्रायbecause फ्रूट बॉक्स,वुडन ज्वैलरी बॉक्स, वुडन ओखली, की- हैंगर,की-रिंग, लेपटॉप बैग.
  • 2017- दीवार घड़ी,तांबे के becauseजग, विवाह चौकी,वुडन मनी बैंक,धूप स्टैंड.
  • 2018- डाइनिंग टेबल मेट, because कैंडिल होल्डर, टिशू होल्डर, बुक मार्क.
  • 2019- ज्युती पट्टा, कैंडिल,थाली, because लोटे,कलश, वुलन लेडीज सूट,मिट्टी के दीए, जुट बैग, जूट फ़ाइल फोल्डर.
  • 2020- वुडन मैग्नेट, सिल्क बैग,वुलन because शॉल, मॉफ्लर, वुडन स्टॉल,वुडन नेम प्लेट, तोरण.
  • 2021- बेड सीट, काउच सेट,कैलेंडर.

(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here