गिरगिट की तरह रंग बदलने पर मज़बूर हो रही थी मैं!
जवाबदेही की अविस्मरणीय यात्रा – अंतिम किस्त
सुनीता भट्ट पैन्यूली
वक़्त की हवा ही कुछ इस तरह से बह रही है because कि किसी अपरिचित पर हम तब तक विश्वास नहीं करते जब तक कि हम आश्वस्त नहीं हो जायें कि फलां व्यक्ति को हमसे बदले में कुछ नहीं चाहिए वह नि:स्वार्थ हमारी मदद कर रहा है.
सत्य
अमूमन ऐसा होता नहीं है कि किसी प्रोफेसर because के घर जाने की नौबत आये, कालेज के सभी कार्य और प्रयोजन कालेज में ही संपन्न कराये जाते हैं. छात्र और छात्राओं को प्रोफेसर के घर से क्या लेना-देना? ख़ैर अत्यंत असमंजस में थी मैं असाइनमेंट जमा करवाने को लेकर.
यदि दीदी साथ न होती तो मेरी इतनी हिम्मत because नहीं थी कि सब कुछ ताक पर रखकर अकेले ही चली जाती प्रोफेसर के पास असाइनमेंट जमा करवाने.
सत्य
किंतु यहां पर इस परिदृश्य में मेरी because स्थिती अलहदा है स्वयं को मैंने जज़्ब किया है कि मुझे फाईनल परीक्षा ...