टिहरी : बंगशील से ओडारशु मोटर मार्ग के दशरथ मांझी और चिपको की गौरा बन ग्रामीण बना रहे सड़क!

Road making in uttarakhand
  • जेपी मैठाणी

आजकल के समय में जब विकास और मूलभूत आवश्यकताओं के आवरण में जनशक्ति एकजुट हो जाए तो फिर राह में कोई काँटा नहीं बिछा सकता. इस एकजुटता का एक बड़ा उदाहरण पट्टी पालीगाड़ के साथ साथ दशजूला जैसी चार पट्टियों के ग्रामीणों ने ख़ुद यहाँ पर संपर्क मार्ग तैयार कर स्थापित करने की जिद्द के साथ स्थापित कर दिया है.

पिछले कुछ दिनों से जब पहाड में भारी बर्फ़बारी और बारिश की खबर से ही ठण्ड का आभास हो रहा है तब कडाके की ठंड में भी उत्तराखंड के टिहरी जिले के ग्रामीणों ने दशरथ मांझी की तर – कुदालें, फावड़े, सब्बल, रैक, गैंती, दरांती और थमाली के सहारे बंगशील से ओडारशु गाँव से ओडार्सू मोटर-मार्ग/ संपर्क मार्ग के निर्माण के लिए कमर कसी हुई है, गौरतलब है कि, इस क्षेत्र के ग्रामीण बड़े लम्बे समय से बंगशील से ओडारशु के एक छोटे से मोटर मार्ग के निर्माण के लिए मांग कर रहे हैं और संघर्ष कर रहे हैं और कड़ाके की ठंड में भी पुरुष, महिलाएँ, बुजुर्ग और बच्चे इस रास्ते को बनाने के लिए कुदाल-फावड़ा, दरांती लेकर रास्ता बनाने के लिए एकजुट हो गए हैं.

Road making in uttarakhand
  

असल में यह मोटर मार्ग जिसमे किस भी प्रकार से देवदार और अन्य प्रजाति के पेड़ पौधों को नहीं काटा जाएगा- उसके निर्माण में वन विभाग, इस क्षेत्र में कुछ होम स्टे संचालक और यह भी कहा जा रहा है लोकनिर्माण विभाग के इंजिनीयर भी रोड़ा अटकाने का कार्य कर रहे हैं. दूसरी और स्थानीय लोग बता रहे हैं कि, इस छोटे रास्ते जो कि पहले से ही एक चौड़े पैदल रास्ते के स्वरुप में है- उसको सिर्फ थोडा  चौड़ा करके हलके वाहनों और इमरजेंसी में एम्बुलेंस जैसे वाहनों, स्कूली बच्चों के लिए बनाया जाना बेहद जरूरी है साथ ही गांव की नगदी फसलों, अनाज सब्जी आदि बेचने के लिए  और क्षेत्र में इकोटूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए फायदेमंद होगा और इससे पलायन को रोकने में सहायता मिलेगी.

इस मार्ग को बनाने के दौरान झाड़ियों के अलावा किसी भी वृक्ष प्रजाति का न तो कटान होना है और ना ही दबान होना है -महिलाओं और युवाओं के द्वारा हाथ के ओजारों से बनाई जा रही इस सड़क को -डग एंड फिल मेथड से बनाया जा रहा है , जिसमे भूमि के कटान से निकली मिटटी को ढाल पर भी नहीं फेंकना पड़ता है . लेकिन फिर भी स्थानीय महिला मंगल दल रोड के बनाने के साथ साथ -1000 देव रिंगाल और देवदार के 1000 के पौधों की नर्सरी का निर्माण भी कर रहे हैं इस प्रकार से ग्रामीण – सड़क के साथ चिपको आन्दोलन के पर्यावरण के सन्देश को भी टिहरी गढ़वाल की 4 पट्टियों जैसे – पट्टी पालीगाड़ के साथ साथ दशजूला ग्रामीणों ने ख़ुद यहाँ पर संपर्क मार्ग तैयार करने की ज़िद ठान ली है सुविधा और मूल भूत आवश्यकता की  इस भावना से ग्रामीणों को जोड़कर ये सड़क निर्माण आन्दोलन  आगे बढ रहा है.

क्षेत्र में बन रहे इस चर्चित सड़क मार्ग के इस आन्दोलन में  युवा किसान रिवर्स माइग्रेशन के लिए अपने गाँव में 1500 सेब और कीवी के पेड़ लगाने वाले भुयाँसारी के विमल नौटियाल , उत्तराखण्ड की ओर से G20 सम्मेलन में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व करने वाली पड़ोसी ग्राम पंचायत ठिक की  शोभना देवी भी शामिल हैं. इसके साथ ही क़रीब 3000 लोग इस संपर्क मार्ग के श्रमदान और निर्माण में अपना हर संभव योगदान दे रहे हैं.

क्या है मोटर मार्ग का मामला

बंगशील से ओडार्सू मोटर-मार्ग कई सालों से थत्यूड़ जौनपुर क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है. साल 2019 में क़रीब 13 गांव के लगभग सभी ग्राम प्रधान, जनप्रतिनिधि इस सड़क के निर्माण के पक्ष में एकजुट हुए थे और महापंचयत आयोजित की गई थी, जिसमें सड़क मार्ग से प्रमुख रूप से प्रभावित होने वाले 13 मुख्य गांव के प्रधान, क्षेत्रपंचायत प्रतिनिधि, क्षेत्रीय लोग, सामाजिक कार्यकर्ता, वन विभाग व लोक निर्माण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. सभी लोगों की सर्वसम्मति से महापंचायत ने यह निर्णय लिया था कि बंगशील गांव से सड़क देवलसारी के पैदल रास्ते से मिलकर ओडार्सू गांव जाएगी जिससे देवदार के वृक्षों का कटान बच जाएगा.

बता दें कि बंगशील से ओडार्सू, दोनों गांव सड़क से तो जुडे़ हैं किन्तु दोनों गांवों के बीच 4 कि० मी० सड़क मार्ग से जुड़ नही़ पाए जिस कारण एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए लगभग 18 से 20 कि० मी० जाना पड़ता है. साथ ही अब ये मार्ग उत्तरकाशी एवं चिन्यालिसौड के लिए भी इन तमाम गाँवों को इकतरफ़ा कनेक्टिविटी प्रदान करने में सहायक होगा, जहां से कि जौनपुर के अधिकांश हित जुड़े हुए हैं. यदि यह 4 कि० मी० सड़क बन जाए तो दोनों गांव आपस में मोटर मार्ग से जुड़ जांएगे व लगभग 14 से 16 कि० मी० का फासला भी कम हो जाएगा. इसी दूरी को कम करने के लिए बंगशील ओडार्सू मोटर मार्ग निर्माण क्षेत्रवासियों की प्रमुख मांग रही है.

ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें भी मुख्यधारा से जुड़ने का अधिकार है और इस क्षेत्र में भी रोज़गार, शिक्षा, स्वास्थ, पर्यटन की सुविधा का लाभ सभी ग्रामीण उठा सकेंगे. उनकी शिकायत है कि फारेस्ट के अधिकारी ख़ुद लोगों से जंगली जानवरों की डर से घरों से बाहर ना निकालने की अपील करते हैं तो ऐसे में वो अपने बच्चों को स्कूल भी कैसे भेज पाएँगे? इन जंगलों से आवाजाही समय के साथ और भी ख़तरनाक होती जा रही है, यदि इलाक़े में पलायन को रोकना है तो उसके लिए उन्हें सड़क और सुविधाएँ भी चाहिए. आज वहाँ पर श्रमदान करने के लिए हर जाति और वर्ग के लोग एकजुट हो रखे हैं. इस क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के बीच ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे भी लगे थे और ग्रामीणों ने मतदान का बहिष्कार भी किया था.

कौन रख रहा है स्थानीय लोग को सड़क मार्ग से वंचित?

दोनो गांवों को सड़क से जोड़कर पूरे क्षेत्र का विकास भी संभव है, लेकिन इन सब बातों के बीच कुछ छद्म पर्यावरणविद ( दिल्ली- देहरादून वाले  जिन्होंने इस क्षेत्र को अपनी रोजी रोटी का साधन बना रखा है बाकि उनको उत्तराखंड के सरोकारों से कोई लेना देना नही है ) और कुछ NGO वाले  अपने सरकारी ग्रांट के धंधे के लिए इस सड़क का निर्माण नहीं होने देना  चाहते हैं . इन NGO वालों ने फर्जी तरीके से ग्रामीणों पर देवदार की ईमारती लकड़ियों की तस्करी की शिकायत भी की है . उनके द्वारा यह झूठ और भ्रम फैलाया ज रहा है कि,  इस सड़क निर्माण से कई पेड़ कटेगें, लेकिन जिस पुराने पैदल मार्ग या वन विभाग की पुरानी निरिक्षण बटिया या फायर लाइन से इन  जंगलो की सुरक्षा की जाती है ग्रामीण सिर्फ उस सड़क को ही थोडा चौड़ा मार्ग  बना रहे हैं- इससे वन विभाग को ही जंगलों की सुरक्षा  और जंगल की आग रोकने में मदद मिलेगी .  जनप्रतिनिधियों से बात चीत में उन्होंने बताया कि, इस बार भी जब श्रमदान कर रास्ता बनाने के लिए लोग एकजुट हुए तो उनके कार्य में तरह-तरह की बाधा डालने के प्रयास हो रहे हैं. NGO और उनके हैंडलर्स के नाम से उन्हें डराने और धमकाने के साथ-साथ फारेस्ट के अधिकारियों पर दबाव बनाने का भी कार्य किया जा रहा है .  टिहरी जनपद में बन रही ग्रामीणों की इस सड़क की माँग का मामला टिहरी ज़िलाधिकारी मयूर दीक्षित के पास भी  पहुँच गया है जिसमें उन्होंने संबंधित अधिकारियों को उचित कार्रवाही करते हुए इस मामले का समाधान निकालने के आदेश दिये हैं.

हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास जब यह मामला पहुंचा  तो उन्होंने इसका संज्ञान लेते हुए यह आश्वासन दिया है कि आचार संहिता हटने के बाद वे ख़ुद इस सड़क मार्ग के लिए स्थानीय नागरिकों के हित में उचित कार्रवाई करेंगे. हालाँकि, 45 गाँवों के ये ग्रामीण अपने श्रमदान से कड़ाके की ठंड, बर्फ और बारिश के बीच भी मौक़े पर डटे हुए हैं और मार्ग बनाने में जुटे हैं.

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