Tag: uttarayani festival

‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

‘उत्तरायण’ के पर्याय थे बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’

स्मृति-शेष
हमारी लोक विधाओं को नया आयाम देने वाले बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए चारु तिवारी उन दिनों हम लोग बग्वालीपोखर में रहते थे. यह बात 1976-77 की है. आकाशवाणी लखनऊ से शाम 5.45 बजे कार्यक्रम आता था- ‘उत्तरायण.’ शाम को  ईजा स्कूल के दो-मंजिले की बड़ी सी खिड़की में बैठकर रेडियो लगाती. हम सबका यह पसंदीदा कार्यक्रम था. हम किसी भी हालत में इसे मिस नहीं होने देते. हमें नहीं पता था कि इस कार्यक्रम को संचालित करने वाले हमारे ही बगल के गांव नहरा (कफड़ा) के वंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी हैं. बहुत बाद में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जानने का मौका मिला. उन्होंने कुमाउनी भाषा और साहित्य के लिये अपना जो अमूल्य योगदान दिया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. जिज्ञासु जी ने आकाशवाणी लखनऊ में रहते ‘उत्तरायण’ के माध्यम से जिस तरह कुमाउनी-गढ़वाली भाषा के संवर्धन और नाटकों की शुरुआत की उस...
कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

कुली-बेगार कुप्रथा: देश के स्वतन्त्रता आंदोलन का शताब्दी वर्ष है 2021 का उत्तरायणी मेला

बागेश्‍वर
डॉ. मोहन चंद तिवारी इस साल कुमाऊं मंडल के बागेश्वर के शताब्दी वर्ष  का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला भी आखिर कोरोना की भेंट चढ़ गया. जिला प्रशासन की so ओर से मेले में धार्मिक अनुष्ठान के साथ केवल स्नान और जनेऊ संस्कार की अनुमति दी गई है और मेले की शोभा बढाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों और व्यापारिक गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है. कोरोना 14,जनवरी,1921 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले से ही उत्तराखंड के दोनों प्रान्तों कुमाऊं और गढ़वाल में कुली-बेगार कुप्रथा को समाप्त करने के लिए बद्रीदत्त पाण्डे और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के नेतृत्व में but अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जो जनआंदोलन चला,वह समूचे भारत में अपनी तरह का पहला और अभूतपूर्व राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ भी था. कोरोना शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि इस वर्ष 14 जनवरी, 2021 को बागेश्वर के उत्तरायणी मेले के दिन उत्तराखंड क...