Tag: मेघा प्रकाश

शिक्षा में अनूठे प्रयास करते उत्तराखंड के शिक्षक

शिक्षा में अनूठे प्रयास करते उत्तराखंड के शिक्षक

शिक्षा
मेघा प्रकाश स्वतंत्र पत्रकार एवं पूर्व सलाहकार संपादक, IISc बैंगलोर शिक्षा की कोई सीमा नहीं है, न ही इसे कक्षाओं तक सीमित रखा जा सकता है. पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक ने साबित कर दिया कि स्कूल के परिसर से परे भी सीखना संभव है. अल्मोड़ा जिले के गांव बजेला के एक प्राथमिक विद्यालय में भास्कर जोशी ने ‘ग्वाला क्लास’ की अनूठी पहल की जिससे स्कूल को ड्रॉपआउट की संख्या में सुधार करने में मदद मिली. जोशी कहते हैं, ‘शिक्षा सीखने के बारे में है’. यह विचार मेरे मन में तब आया जब मैं 2013 में बजेला प्राइमरी स्कूल में तैनात था. उस समय स्कूल में 10 छात्र नामांकित थे, लेकिन बहुत कम छात्र कक्षाओं में आते थे. जब मैंने अनुपस्थिति के पीछे का कारण जानने की कोशिश की, तो पता चला कि बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय उन्हें मवेशी चराने के लिए कहते हैं. यहीं से...
आयुष सचिव ने किया ग्रन्थी की गुत्थी पुस्तक का विमोचन

आयुष सचिव ने किया ग्रन्थी की गुत्थी पुस्तक का विमोचन

दिल्ली-एनसीआर
नई दिल्ली. “ग्रन्थी की गुत्थी” पुस्तिका का विमोचन पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा, सचिव, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के कर कमलों द्वारा दिनांक 29 मार्च 2025 को उनके कार्यालय में किया गया। राष्ट्र भाषा हिन्दी में मेघा प्रकाश द्वारा सम्पादित इस पुस्तक में अग्न्याशय शोथ (Pancreatitis) का विश्व में प्रादुर्भाव, रोग के निदान एवं उपचार सम्बन्धित सामयिक विकास के साथ इस भयावह एवं जानलेवा रोग का वर्तमान में एलोपैथिक निदान, उपचार तथा सीमितता का वर्णन करते हुए स्वर्गीय वैद्य चन्द्र प्रकाश जी द्वारा आविष्कृत एवं पद्मश्री वैद्य बालेन्दु प्रकाश द्वारा परिष्कृत आयुर्वेदिक उपचार के आँकड़ों को संकलित किया गया है। पाश्चात्य देशों से उपलब्ध जानकारी तथा अट्ठाईस वर्षों के चिकित्सीय अनुभवों को पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है जो Pancreatitis रोग के कारणों एवं चिकित्सा संबंधी विभिन्न पहलुओं पर कई प्रश्न चिह्न लगाता ह...
देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

देवताओं का वृक्ष ‘पय्या’!

लोक पर्व-त्योहार
मेघा प्रकाश उत्तराखण्ड में परिभाषा के अनुसार एक बड़ा क्षेत्र 'वन' घोषित है. अतीत में, समुदाय काफी हद तक अपनी आजीविका और दैनिक जरूरतों के लिए इन जंगलों पर निर्भर था. चूंकि, जंगल अस्तित्व के केंद्र में थे, समुदाय के बीच कई सांस्कृतिक और सामाजिक प्रथाएं अभी भी राज्य में प्रचलित हैं. इस प्रकार पवित्र वनों, स्थलों और वृक्षों की अवधारणा इस बात का सूचक है कि कैसे अतीत में समुदाय इन वनों का प्रबंधन करता था और अपनी आजीविका के स्रोत की पूजा करता था. स्थानीय बोलचाल में पवित्र वन चिन्हित स्थल, परिदृश्य, जंगल के टुकड़े या पेड़ हैं, जिन्हें पूर्वजों और श्रद्धेय देवताओं की पवित्र आत्माएं निवास करने के स्थान के रूप में माना जाता था. विश्वास के अनुसार, लोककथाएं, लोक गीत, मेले और पवित्र वनों पर त्योहार उत्तराखंड में समुदाय का हिस्सा हैं. उदाहरण के लिए, 'पय्या' (पयां, पद्म) को पवित्र वृक्ष के रूप ...