
मेघा प्रकाश
स्वतंत्र पत्रकार एवं पूर्व सलाहकार संपादक, IISc बैंगलोर
शिक्षा की कोई सीमा नहीं है, न ही इसे कक्षाओं तक सीमित रखा जा सकता है. पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक ने साबित कर दिया कि स्कूल के परिसर से परे भी सीखना संभव है.
अल्मोड़ा जिले के गांव बजेला के एक प्राथमिक विद्यालय में भास्कर जोशी ने ‘ग्वाला क्लास’ की अनूठी पहल की जिससे स्कूल को ड्रॉपआउट की संख्या में सुधार करने में मदद मिली. जोशी कहते हैं, ‘शिक्षा सीखने के बारे में है’.
यह विचार मेरे मन में तब आया जब मैं 2013 में बजेला प्राइमरी स्कूल में तैनात था. उस समय स्कूल में 10 छात्र नामांकित थे, लेकिन बहुत कम छात्र कक्षाओं में आते थे. जब मैंने अनुपस्थिति के पीछे का कारण जानने की कोशिश की, तो पता चला कि बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय उन्हें मवेशी चराने के लिए कहते हैं. यहीं से विचार आया कि खुले में कक्षाएं लगाई जाएं, जहां छात्र पढ़ाई कर सकें और जानवर चरते रहें. और यह कारगर रहा. अब छात्र और उनके माता-पिता दोनों खुश हैं. धीरे-धीरे उपस्थिति में सुधार हुआ.
जोशी ने न केवल अनूठी ग्वाला क्लास बनाई, बल्कि बच्चों के लिए कई शिक्षण मॉडल भी तैयार किए. उनके प्रयासों की राज्य सरकार ने सराहना की और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए उनके द्वारा विकसित नई शिक्षण विधियों को मान्यता देने के लिए उन्हें पुरस्कार प्रदान किया. जोशी अब अल्मोड़ा के ताड़ीखेत ब्लॉक के एक अन्य स्कूल में तैनात हैं, जहां उन्होंने उसी मॉडल को दोहराया है.
जोशी की तरह ही पर्वतीय राज्य के सुदूर ग्रामीण इलाकों में कई शिक्षक तैनात हैं. उदाहरण के लिए, चमोली के वाण गांव के एकमात्र माध्यमिक सरकारी स्कूल के छात्र अपने शिक्षक राजेंद्र सिंह महर के आभारी हैं. गणित के शिक्षक की अनुपस्थिति में, महर ने कक्षा दस के छात्रों को संख्या विषय पढ़ाने का बीड़ा उठाया. मेरे पास गणित में डिग्री है, लेकिन मुझे शारीरिक शिक्षा के लिए नियुक्त किया गया था. महर के प्रयासों से इस विषय में छात्रों के पास प्रतिशत में सुधार करने में मदद मिलती है.
उदाहरण के लिए, 2020 में, 32 छात्रों में से 31 ने अपनी 10वीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की, 2021 में सभी 18 छात्र उत्तीर्ण हुए और 2022 में 31 छात्रों के एक बैच ने भी बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की. गांव के स्कूल की टॉपर प्रभा बिष्ट अपनी सफलता का श्रेय महर को देती हैं. उन्होंने हमारी कक्षाएं लीं, क्योंकि हमारे पास गणित का कोई शिक्षक नहीं था. बिष्ट और उनकी बड़ी बहन दोनों ने दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में 80 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए.
वाण सरकारी स्कूल में प्रतिनियुक्त पूर्व प्रधानाध्यापक गजेंद्र लाल अग्निहोत्री बताते हैं कि कैसे महर के प्रयासों से न केवल छात्रों को संख्याओं के विषय में अपनी रुचि पुनर्जीवित करने में मदद मिली, बल्कि इस दूरदराज के गांव के छात्रों को खेलों में भी उत्कृष्टता हासिल करने में मदद मिली. भागीरथी बिष्ट, जिन्होंने अपने पिता को खो दिया था, को मेहर ने प्रशिक्षित किया था, वह एक राज्य स्तरीय एथलीट और कबड्डी खिलाड़ी हैं. एक खिलाड़ी होने के अलावा, बिष्ट ने अपनी बोर्ड परीक्षाओं में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. अग्निहोत्री कहते हैं कि स्कूल परिसर में खेल के मैदान की अनुपस्थिति में, यह एक बड़ी उपलब्धि है.
अग्निहोत्री, जो अब गोपेश्वर शहर के करीब बेरागना में तैनात हैं, याद करते हैं कि कैसे समुदाय ने शिक्षकों (तब संख्या में तीन) को सामुदायिक कोष बनाकर स्कूल भवन की टूटी छत की मरम्मत जैसे पर्याप्त बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद की थी. अग्निहोत्री बताते हैं कि जैसे-जैसे परिणाम बेहतर हुए, न केवल बच्चों के साथ बल्कि उनके माता-पिता के साथ भी एक मजबूत रिश्ता विकसित हुआ.
संजय जगूड़ी विभिन्न सरकारी स्कूलों में शिक्षक के रूप में अपने नियमित कर्तव्यों के अलावा, ग्रामीण जिले उत्तरकाशी में बच्चों के पढ़ने के कौशल को बढ़ाने के लिए अपने आवास पर निःशुल्क कक्षाएं आयोजित करते हैं. जगूड़ी कहते हैं, ‘मैंने देखा कि जब राष्ट्रव्यापी तालाबंदी हटने के बाद बच्चे स्कूल लौटे, तो बच्चों की सीखने की क्षमता, विशेष रूप से पढ़ने के कौशल में कमी आई.’ यही कारण है कि 2021 की गर्मियों में, उन्हें छुट्टियों के दौरान अपने छात्रों के लिए निःशुल्क समर कैंप आयोजित करने का विचार आया. उनके प्रयासों को एक नया मुकाम तब मिला जब उत्तरकाशी के डुंडा ब्लॉक के गेंवला गाँव के ग्राम प्रधान, बृजपाल रजवार ने एक सामुदायिक पुस्तकालय की स्थापना की.
रजवार ने इस पुस्तकालय की स्थापना के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग किया जो अब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए ज्ञान के भंडार के रूप में काम कर रहा है. अपने शुरुआती दिनों में, लगभग 35 छात्र पुस्तकालय में आए जहाँ समर कैंप का आयोजन किया गया था. अगली गर्मियों में, यह संख्या बढ़कर लगभग 70 हो गई और दिन-ब-दिन बढ़ती गई.
लगभग तीन वर्षों में, जगूड़ी 150 बच्चों को उनके पढ़ने के कौशल को निखारने में मदद करने में सक्षम रहे हैं.
बच्चों में पढ़ने की आदत डालने के अलावा, बच्चों के लिए कई अन्य गतिविधियाँ भी बनाई गई हैं जैसे कि पेंटिंग, कविता पाठ, खेल के माध्यम से सीखना और कहानी सुनाना. जगूड़ी के प्रयास केवल उन स्कूलों तक ही सीमित नहीं हैं जहाँ उन्होंने पढ़ाया है, बल्कि आस-पास के गाँव के बच्चे भी उनके समर कैंप में शामिल होते हैं. अपने प्रयासों के लिए, जिसे वे ‘मिशन कोशिश’ कहते हैं, जगूरी को कई मौकों पर सम्मानित किया गया है. जगूड़ी कहते हैं, ‘इन शिविरों को चलाने के पीछे एकमात्र उद्देश्य समाज के हाशिए पर रहने वाले बच्चों में अंग्रेजी भाषा में सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने (LSRW) में सुधार करना है.’ जगूड़ी ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि अजीम प्रेमजी फाउंडेशन ने भी संयुक्त गतिविधियों के आयोजन में मदद की.’