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बुद्ध पूर्णिमा: जीवन जीने का धर्म

बुद्ध पूर्णिमा: जीवन जीने का धर्म

साहित्‍य-संस्कृति
बुद्ध पूर्णिमा 5 मई  पर विशेषप्रो. गिरीश्वर मिश्र  पूजा और प्रशस्ति के बीच बुद्ध की प्रखर चिंतन प्रक्रिया ओझल या सरलीकृत हो जाती है. उनकी चिंतन प्रक्रिया कोरे वाग्विलास की जगह व्यावहारिक समाधान की ओर उन्मुख थी. जीवन की पीड़ादायी और असंतोषजनक स्थिति उनके विचार-यात्रा का मूल थी. जन्म मृत्यु के बंधन कारागृह जैसे ही थे. पुनर्जम का अनवरत चलने वाला वात्याचक्र दुःख का कारण था और इससे उबरना मुख्य समस्या थी . ईसा पूर्व पाँचवी सदी में जन्मे महात्मा बुद्ध अपने समय में प्रचलित धर्म-कर्म, विश्वास और जीवन पद्धति की विसंगतियों से क्षुब्ध थे. इतिहास में यह वह काल था जब कृषि की समृद्धि से नगर जन्म ले रहे थे और व्यापार के माध्यम से भारत से बाहर की संस्कृति की जानकारी भी मिल रही थी. बाह्य सम्पर्क से यह भी पता चल रहा था कि जातिविहीन समाज भी होते हैं और संस्कृत के अतिरिक्त और भी भाषाएँ बोली जाती हैं. बढ़त...