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परिपक्वता

परिपक्वता

किस्से-कहानियां
डॉ अमिता प्रकाश“मैडम, आज रोहिणी आ रही है." सुनीता ने मुझसे कहा तो रोहिणी की अनेकों स्मृतियाँ कौंध उठीं. शादी के एक साल बाद रोहिणी अपने घर आ रही थी. अपना घर...? वह घर जहाँ उसने जन्म लिया था. वह घर जिसके आँगन में खेलकूद कर वह बड़ी हुयी थी. वह घर जिसकी कई चीजों को उसने अपने हाथों से एक रूप दिया था. आँगन के नीचे वाले खेत में लगे कई माल्टे के पेड़ जो आज बड़े होकर उसके स्वेद के मोतियों को ही मानो फलों के रूप में धारण कर रहे थे, उसने अपने हाथों से उन्हें लगाया था. जिस उम्र में बच्चे अपने गुड्डे-गुड़ियाओं में मस्त होते हैं उस उम्र के उसके ये साथी आज उसी की तरह फलित होने लगे हैं... वह भी तो पेट से है, सोचकर चिन्ता की कई रेखाएँ मेरे चेहरे पर तैर आती हैं. उसका वही अपना घर. लेकिन अब कहाँ अपना रह गया था? शादी के दूसरे दिन ‘दोहरबाट’के लिए आयी थी. मात्र रस्म निबाहने के लिये. उसी समय उसने सोचा था कि ...