Tag: दादी

शुभदा

शुभदा

किस्से-कहानियां
कहानीडॉ. अमिता प्रकाशयही नाम था उसका शुभदा! शुभदा-शुभता प्रदान करने वाली. शुभ सौभाग्य प्रदायनी. हँसी आती है आज उसे अपने इस नाम पर और साथ ही दया के भाव भी उमड़ पड़ते हैं उसके अन्तस्थल में, जब वह इस नाम को रखने वाले अपने पिता को याद करती है.... कितने लाड़ और गर्व से, कितना सोच-समझकर, कितने सपने बुनकर उन्होंने उसका नाम रखा होगा- शुभदा. वह अपने माता -पिता की दूसरी सन्तान थी. पहले बड़ा भाई और फिर छोटी लाडली बहन.... “माँ-बाप फूले नहीं समा रहे होंगे कि चलो परिवार पूरा हुआ. भले ही उस जमाने में जब चार -पाँच बच्चे पैदा करना सामान्य और भाग्य की बात हुआ करती थी तब माता-पिता ने परिवार के पूरे होने के बारे में सोचा होगा ऐसा सम्भव नहीं था. यह मात्र उसकी अपनी सोच थी, शायद अपने को दिलासा देने का एक झूठा आसरा. वरना वह जमाना ही कुछ और था, कि परिवार में एक लड़का हुआ तो डाल को दोहरी करना जरूरी समझा जाता थ...
वड़ और एक नारी की पीड़ा

वड़ और एक नारी की पीड़ा

संस्मरण
डॉ. गिरिजा किशोर पाठकगांव की कहावत है 'वड़ (Division stone), झगड़ जड़'. जब दो भाइयों के बीच में जमीन का बंटवारा होता है तो खेतों के बीच बंटवारे के बाद विभक्त जमीन में एक लम्बा पत्थर खड़ा करके गाड़ दिया जाता है जिसे वड़ (division line) कहते हैं. भाइयों में जमीन के बंटवारे पर एक बार वड़ डल जाने पर ये हमेशा के लिए दो भाइयों की जमीन की सीमा रेखा बन जाती है. इस वड़ (सीमा रेखा) के कारण खेती किसानी में परिवारों में बहुत झगड़े, लड़ाइयां, मुकदमे देखने को मिलते हैं क्योंकि अस्थाई तौर पर गाड़े गए पत्थर की जो मर्यादा रखते हैं वो सीमा का उल्लंघन नहीं करते और खुराफाती इसको मनमाने ढंग से खिसका कर विवाद पैदा करते हैं.हमारे गांव में 2 ऐसे महत्वपूर्ण/खुराफाती पुरुष थे जिनका काम अल्मोड़ा, सोर और बागेश्वर जाकर अपनी नई जमीन के लिए दरख्वास्त (fresh application) लगाना होता था. वड़ के झगड़े पर राजस्व ...
अब घट नहीं आटा पीसने जाते हैं

अब घट नहीं आटा पीसने जाते हैं

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—6प्रकाश उप्रेतीइसको हम- जानहर, जंदरु, जांदरी कहते हैं. यह एक तरह से घरेलू चक्की है. उन दिनों बिजली तो होती नहीं थी. पानी की चक्की वालों के पास जाना पड़ता था. वो पिसे हुए का 'भाग' (थोड़ा आटा) भी लेते थे. इसलिए कई बार घर पर ही 'जानहर' चलाकर अनाज पीस लिया जाता था. पहाड़ अधिकतर चीजों में आत्मनिर्भर था. उसके पास अपनी जरूरतों के हिसाब से संसाधन थे और ये समझ भी कि उनका सर्वोत्तम उपयोग किस तरह करना है. तकनीक और मशीनों से बहुत दूर इस समझ के बलबूते ही जीवन चलता था. घर में रोज अम्मा (दादी) जानहर चलाती थीं. अम्मा एक बार में दो समय की रोटी भर के लिए ही पीस पाती थीं. मगर जब अम्मा और ईजा(मां) साथ मिलकर पीसते थे तो फिर कुछ आटा अगले दिन के लिए भी बच जाता था. यह तब ही होता था जब बाहर का कोई काम न हो. नहीं तो ईजा बाहर के कामों में ही लगी रहती थीं. जानहर से बड़ी आवाज ...