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काशी में मां गंगा की गोद से झिलमिलाई आस्था, लाखों दीपों से जगमगाए अर्धचंद्राकार गंगा घाट

काशी में मां गंगा की गोद से झिलमिलाई आस्था, लाखों दीपों से जगमगाए अर्धचंद्राकार गंगा घाट

देश—विदेश
 हिमांतर ब्यूरो, वाराणसी देव दीपावली के पावन पर्व पर शाम काशी के अर्धचंद्राकार गंगा घाटों पर जब शाश्वत ज्योति की लौ प्रज्वलित हुई, तो पूरा शहर दिव्यता और भव्यता के अद्भुत संगम में डूब गया। मां गंगा की गोद से निकलती आस्था की सीढ़ियों पर जलते लाखों दीपों की रोशनी ने ऐसा दृश्य प्रस्तुत किया, मानो स्वर्ग स्वयं धरती पर उतर आया हो। गोधूलि बेला में उत्तरवाहिनी गंगा की लहरों पर जब दीपों की सुनहरी आभा झिलमिलाई, तो काशी की आत्मा एक बार फिर सनातन संस्कृति की उजास से आलोकित हो उठी।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया पहला दीप प्रज्वलित देव दीपावली का शुभारंभ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नमो घाट पर पहला दीप जलाकर किया। उनके साथ पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह, राज्य मंत्री रविन्द्र जायसवाल, विधायक डॉ नीलकंठ तिवारी, जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य, महापौर अशोक तिवारी ने भी दीप प्रज्वलित कर मा...
हिमालय की लड़ाई अब कौन लड़ेगा!

हिमालय की लड़ाई अब कौन लड़ेगा!

स्मृति-शेष
हिमालय पुत्र पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जी का यों चले जाना…डॉ. गिरिजा किशोरसच पूछिए तो आज हिमालय अपने हितों के लिए प्रकृति का दोहन करने वाले  आक्रांताओं से बड़ा भयभीत हैं. आज हम हिमालय के जंगलों को पत्थर, लकड़ी, लीसा के दोहन और नदियों को करोड़ों की प्यास बुझाने के लिए पानी और कल-कारखाने चलाने के लिए बिजली देने वाला यंत्र से ज्यादा कुछ नहीं मानते. सत्ता के नीति because निर्धारकों द्वारा हिमालय के जंगलों की बेतहाशा कटाई और हिमालय की नदियों में बेतहाशा बड़े-बड़े बांध बनाकर हिमालय के विनाश की पटकथा अनवरत लिखी जा रही है. परिणामत: हिमालय और हिमालय वासियों का जीवन खतरे में आ गया है. नदियां विकराल रुप धारण करती जा रही है. जंगलों के उजाड़ के कारण पहाड़ दरकने लगे हैं. गांव के गांव इस जल तांडव में विलुप्त होने लगे हैं. हिमालय और हिमालयी प्रकृति और प्रवृति  के इस दर्द को समझा हिमालय के छोट...
‘गंगा’

‘गंगा’

किस्से-कहानियां
कहानीसीता राम शर्मा ‘चेतन’रात्रि के आठ बज रहे थे. हमारी कार हिमालय की चोटियों पर रेंगती हुई आगे बढ़ रही थी. नौजवान ड्राइवर मुझ पर झुंझलाया हुआ था - “मैनें आपसे कहा था भाई साहब, यहीं रूक जाओं, आपने मेरी एक ना सुनी, अब इस घाटी में दूर-दूर तक कोई होटल-धर्मशाला है भी या नहीं क्या मालूम, शरीर थक चुका है.” ड्राइवर की बात सुन मित्र झुंझला उठा था “ये किसी की बात मानता ही नहीं. इसका क्या है अकेला है. यहां मेरा पूरा परिवार है. बीवी है, बच्चे है, कहीं कोई हादसा हुआ तो पूरा वंश खत्म हो जाएगा, कोई नाम लेने वाला भी नहीं होगा. देखों तो, बाप रे बाप, यहां से थोड़ी सी गलती से भी अगर गाड़ी का पहिया एक इंच इधर-उधर हो जाए तो हजारों फीट नीचे खाई में जा गिरेगे.”“आप लोगों को ऐसा लगता था तो रूक जाना था वहीं, मैनें तो बस इतना सोचा था कि चालीस किलोमीटर का रास्ता शेष है, पांच बज रहे हैं आठ बजे तक हम आराम...
पहाड़ों में जल परम्परा : आस्था और विज्ञान के आयाम

पहाड़ों में जल परम्परा : आस्था और विज्ञान के आयाम

जल-विज्ञान
डॉ. मोहन चंद तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं। वैदिक ज्ञान-विज्ञान के गहन अध्येता, प्रो.तिवारी कई वर्षों से जल संकट को लेकर लिखते रहे हैं। जल-विज्ञान को वह वैदिक ज्ञान-विज्ञान के जरिए समझने और समझाने की कोशिश करते हैं। उनकी चिंता का केंद्र पहाड़ों में सूखते खाव, धार, नोह और गध्यर रहे हैं। हमारे पाठकों के लिए यह हर्ष का विषय है कि प्रो. तिवारी जल-विज्ञान के संदर्भ में ‘हिमांतर’ पर कॉलम लिखने जा रहे हैं। प्रस्तुत है उनके कॉलम 'भारत की जल संस्कृति' की पहली कड़ी...भारत की जल संस्कृति-1डॉ. मोहन चन्द तिवारी‘हिमाँतर’ में जल परंपरा पर चर्चा प्रारम्भ करने से पहले मैं जल की अविरल और निर्मल धारा के सर्जनहार और दिव्य जलों के भंडार देवतात्मा हिमालय को महाकवि कालिदास के निम्न श्लोक से नमन करना चाहता हूं- “अस्त्युत्तरस्यां दिशि दे...