Tag: सांस्कृतिक धरोहर

पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मददगार है भांग की चटनी!

पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मददगार है भांग की चटनी!

उत्तराखंड हलचल, सेहत
भांग की चटनी उत्तराखंड की खानपान संस्कृति का प्रतीक है. इसका इतिहास स्थानीय संसाधनों के कुशल उपयोग और पारंपरिक ज्ञान से जुड़ा हुआ है. यह न केवल स्वादिष्ट और पौष्टिक है, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को भी दर्शाती है. आज यह व्यंजन उत्तराखंड की पहचान बन चुका है और अपनी लोकप्रियता के कारण देश-विदेश तक पहुंच चुका है. भांग के बीज प्रोटीन, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. यह चटनी न केवल स्वादिष्ट होती है, बल्कि सर्दियों में गर्माहट प्रदान करती है और शरीर को ऊर्जा देती है. भांग की चटनी इस राज्य के खानपान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है और इसे सदियों से यहां के लोग चाव से खाते आ रहे हैं. भांग का उल्लेख अथर्ववेद में देवताओं के प्रिय पौधों में से एक के रूप में किया गया है. इसे पवित्र माना गया और इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में भी होता रहा है. हालांकि, भांग की ...
कुमाउनी रामलीला: पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय सौंदर्य

कुमाउनी रामलीला: पहाड़ की सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय सौंदर्य

दिल्ली-एनसीआर
दिल्ली में होगी उत्तराखंड की गायन प्रधान रामलीला उत्तराखंड की प्रचलित "कुमाउनी रामलीला" की परंपरा अपने आप में अद्वितीय है, जिसमें संगीत, नाटक और लोक कला का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. यह रामलीला उत्तराखंड की लोकसंस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई है, जिसमें राग-रागिनियों के माध्यम से संवाद प्रस्तुत किए जाते हैं. विशेष रूप से भैरवी, मालकौंश, जयजयवंती, विहाग, पीलू और माण जैसे रागों में चौपाई, दोहा और सोरठा का गायन किया जाता है. दादरा और कहरवा तालों का तालमेल भी इस प्रस्तुति में प्रमुख भूमिका निभाता है, जो दर्शकों को एक अद्भुत लोकसंगीत का अनुभव देता है. सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (संस्कृति मंत्रालय-भारत सरकार) सीनियर फैलोशिप अवॉर्डी व  "कुमाऊनी शैली" की रामलीला पर वृहद शोध कार्य कर चुके वरिष्ठ लेखक हेमंत कुमार जोशी जी ने 'श्रीराम सेवक पर्वतीय कला मंच' के इस प्रयास की सराहना   की ...