Tag: सरनौल

पुरोला—मोरी: भेड़ पालकों का जीवन बीमा करने की मांग!

पुरोला—मोरी: भेड़ पालकों का जीवन बीमा करने की मांग!

उत्तरकाशी
नीरज  उत्तराखंडी भेड़ पहाड़ की  आर्थिकी की रीढ़ है लेकिन उचित  प्रोत्साहन न मिलने से भेड़ -बकरी पालन व्यवसाय  दम तोड़ता  नजर आ रहा है. आधुनिक सुख सविधाओं की ओर दौड़ती युवा पीढ़ी पारम्परिक व्यवसाय भेड़ बकरी पालन से विमुख होती जा रही है. जिसकी एक बडी वजह भेड़ पालकों की सरकारी अनदेखी भी शामिल है. उचित सहयोग प्रोत्साहन न मिले से युवा पीढ़ी इस पुश्तैनी  व्यवसाय  से  मुख मोड़ने लगी है. पहाड़ की जवानी रोटी रोजगार की तलाश  में  मैदान  की खाक छान रही है.आज के युवक भेड़ पालन व्यवसाय पर रुचि नहीं ले रहे हैं. जिससे लगातार भेड़-बकरी व्यवसायियों की संख्या में भारी गिरावट आ रही है. उच्च हिमालय की  सुन्दर घाटियों में समुद्रतल से  3566 मीटर (11700 फीट) की ऊंचाई पर भेड़ पालक बेखौफ मौसम की मार झेल कर  भेड़ बकरी व्यवसाय पालन करते है. प्रतिकूल परिस्थितियों में धूप, बारिश, सर्दी  आसमानी  बिजली  के संकट से...
गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

गांव की रामलीला से ही आरंभ हुआ रंगकर्म का सफर

संस्मरण, साहित्‍य-संस्कृति
रंग यात्रा भाग—1 महावीर रवांल्टा जीवन में पहली बार कब मुझे रामलीला या पौराणिक नाटक देखने का अवसर मिला होगा, कैसे मुझे उनमें रुचि होने लगी, इस समय यह बता पाना मुश्किल है लेकिन मेरी स्मृति में इतना जरूर दर्ज है कि महरगांव में अपने घर के बरांडे के नीचे ओबरों से बाहर की जगह पर हमने रामलीला की शुरुआत की थी. इसमें हमारे पड़ोस में रहने वाले भट्ट परिवार के बच्चे भी शामिल हुए थे. निश्चित तौर पर यह रामलीला हमारे अपनी समझ से उपजे संवाद एवं अभिनय के सहारे आगे बढ़ी होगी मुझे ऐसा लगता है. इस रामलीला की इतनी चर्चा हो पड़ी थी कि हमारे व आसपास के गांव के किशोर भी इसमें शामिल हुए. हमारे घर के बाहर के आंगन मे इसे खेला गया था. घर में उपलब्ध माता जी की धोतियों का पर्दे के रूप में इस्तेमाल हुआ था. घर में उपलब्ध सामग्री व वेशभूषा के साथ ही गत्ते से बनाए गए मुकुट, लकड़ी के धनुष बाण और तलवार सभी ने अपनी स...
जहां धरती पर स्नान के लिए उतरती हैं परियां!

जहां धरती पर स्नान के लिए उतरती हैं परियां!

संस्मरण
मनोज इष्टवाल सरूताल : जहां खुले आसमान के नीचे स्नान के लिए एक दिन उतरते हैं यक्ष, गंदर्भ, देवगण, परियां व तारामंडल! ऋग्वेद के कर्मकांड मन्त्र के कन्यादान में लिखा है- “पुष्ठारक्षेत्रे मधुरम्य च वायु, छिदन्ति योगानि वृद्धन्ति आयु” बात लगभग 13 बर्ष पुरानी है. मैं बर्ष तब रवांई घाटी के भ्रमण पर था. बडकोट गंगनाली राजगढ़ी होते हुए मैं 10 जून 2005 को सरनौल गांव पहुंचा जहां आकर सड़क समाप्त हो जाती है. दरअसल मेरा मकसद ही ऐसे स्थानों की ढूंढ थी जहां अभी भी हमारा लोक समाज लोक संस्कृति अछूती थी. सच कहूं तो मुझे आमंत्रण भी मिला था कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय पुरोला की उन बेटियों का जिनके गांव पुरोला से लगभग 30 किमी. पैदल दूरी पर 8 गांव सर-बडियार थे. मुझे आश्चर्य यह था कि ये लोग आज भी क्या सचमुच 30 किमी. पैदल यात्रा तय करते हैं. बस दो दिन बाद सर गांव में जुटने वाला कालिग नाग मेला जो था...