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महात्मा गांधी का सामाजिक प्रयोग

महात्मा गांधी का सामाजिक प्रयोग

साहित्‍य-संस्कृति
प्रो. गिरीश्वर मिश्र  आज कल विभिन्न राजनीतिक दलों के लोक लुभावन पैंतरों और दिखावटी  सामाजिक संवेदनशीलता के बीच स्वार्थ का खेल आम आदमी को किस तरह दुखी कर रहा है यह जग जाहिर है. परन्तु आज से एक सदी पहले पराधीन भारत में लोक संग्रह का विलक्षण प्रयोग हुआ था. में जीवन का अधिकाँश बिताने के बाद उम्र के सातवें दशक में पहुँच रहे अनुभव-परिपक्व गांधी जी ने आगे के समय के लिए वर्धा को अपनी कर्म-भूमि बनाया था. ज्योतिष नागपुर से75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित वर्धा अब रेल मार्गों और कई राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ चुका  है. तब महात्मा गांधी ने धूल-मिट्टी-सने और खेती-किसानी के परिवेश वाले इस पिछड़े ग्रामीण इलाके को  चुना और गाँव के साधारण किसान की तरह श्रम-प्रधान जीवन का वरण किया. इसके पीछे उनकी यह सोच और दृढ विश्वास था कि भारत का भविष्य देश के गाँवों के सशक्त होने में निहित है. उनकी दृष्टि में स्वतंत्रता ...
वर्तमान परिदृश्य पर गांधी जी की आर्थिक दृष्टि

वर्तमान परिदृश्य पर गांधी जी की आर्थिक दृष्टि

समसामयिक
151वीं गांधी जयंती पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज पूरे संसार में एक विकटbecause वैश्विक आपदा के चलते उदयोग और व्यवसाय की दुनिया के सारे कारोबार और समीकरण अस्त-व्यस्त होते जा रहे हैं. विकसित हों या अविकसित सभी तरह के देशों अर्थ व्यवस्था चरमरा रही है और उनकी रफ़्तार ढीली पड़ती जा रही है. ऐसे में यह प्रश्न सहज में उठता है कि आधुनिकता की परियोजना के तहत विश्वास जतलाते हुए प्रगति और विकास की जो राह चुनी गई थी वह किस सीमा तक सही थी या कि उसकी राह पर आगे भी चले चलना कितना ठीक होगा. बड़े पैमाने पर थोक भाव से उत्पादन और स्वचालित यंत्रों की सहायता से मानव श्रम के मूल्य का पुनर्निर्धारण हुआ और सामाजिक ताने बाने की तस्बीर ही बदलती गई . आज वैश्विक आर्थिक संस्थाओं के तंत्र butजाल ने विकास का एक ढांचा, एक मान दंड तय किया और उसी के इर्द-गिर्द और कमोबेश उसी के अनुरूप आगे बढ़ते रहने के लक्ष्य तय ...