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पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

पितरों के प्रति आस्था का पर्व – श्राद्ध एवं हवीक

अध्यात्म
भुवन चन्द्र पन्त पितरों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किये जाने वाला कर्म ही श्राद्ध है. दरअसल पितर ही हमें इस धरती पर लाये, हमारा पालन पोषण किया और हमें अपने पांवों पर खड़े होने के लिए समर्थ किया. लेकिन उनसे ऊपर भी हमारे ऋषि थे, जो हमारे आदिपुरूष रहे और जिनके नाम पर हमारे गोत्र चले तथा उन ऋषियों के शीर्ष में देवता. देवऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए ही श्राद्ध की परम्परा शुरू हुई. हालांकि जितना उपकार इनका हमारे प्रति है उस ऋण से उऋण होना तो संभव नहीं और नहीं ऋण का मूल चुका पाना संभव है, श्राद्ध के निमित्त सूद ही चुका दें because तो हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर सकते हैं. जिसने हमारे लिए इतना सब किया, उनके इस दुनियां से चले जाने के बाद उनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान देकर कृतज्ञता व्यक्त करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है. यों तो श्रद्धाभाव से  पितरों को स्वयं पिण्ड अर्पित कर तथा उन्ह...
भवाली के जगदीश नेगी के प्रयासों ने दिलवाया शिप्रा नदी को पुनः जीवनदान

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अभिनव पहल
भुवन चन्द्र पन्त इन्सान भी कितना अहसान फरामोश है कि जिन नदियों के किनारे कभी मानव सभ्यता का विकास हुआ, उन्हीं नदियों को इन्सान ने अपने क्षुद्र स्वार्थों के लिए कूड़े कचरे के ढेरों में तब्दील करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कुछ लोग यदि जागरूक हुए भी तो समाज की इस तरह की घिनौनी करतूतों के तमाशबीन बनकर रह जाते हैं. कुछ इसके लिए समयाभाव का रोना रोते हैं तो दूसरे कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो संबंध खराब होने की गरज से लफड़े में पड़ने से कन्नी काट जाते हैं. ऐसे बिरले लोग होते हैं जो “लोग क्या कहेंगे’’ की परवाह किये बिना निकल पड़ते हैं, समाजहित के लिए और आने वाली पीढ़ी के सुखद भविष्य का सपना संजोये अपनी राह पर. फिर व्यक्तिगत संबंध समाजहित के सामने गौण हो जाते हैं. ऐसे जुनूनी शख्स समाज की परवाह किये बिना जब निकल पड़ते हैं लक्ष्य की ओर, तो मुड़कर नहीं देखते. यह समाज की मानसिकता है कि जब भी समाजहित में कोई काम...