Tag: पशुधन

विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

विकृत इतिहास चेतना की भेंट चढ़ता ‘खतड़ुवा’ पर्व

लोक पर्व-त्योहार
पशुधन की कुशलता की कामना का पर्व  है 'खतडुवा' डॉ. मोहन चंद तिवारी 'कुमाऊं का स्वच्छता अभियान से जुड़ा 'खतडुवा' because पर्व वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतु के प्रारंभ में कन्या संक्रांति के दिन आश्विन माह की प्रथमा तिथि को मनाया जाने वाला एक सांस्कृतिक लोकपर्व है. अन्य त्योहारों की तरह 'खतड़ुवा' भी एक ऋतु से दूसरी ऋतु के संक्रमण का सूचक है. प्रारंभ से ही यह कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल के कुछ क्षेत्रो में मनाया जाने वाला पारंपरिक त्यौहार है. कुमाऊं 'खतड़ुवा' शब्द की उत्पत्ति “खातड़” या but “खातड़ि” शब्द से हुई है. कुमाऊं में 'खातड़' यानी रजाई-गद्दे को कहा जाता है. चौमास में सिलन के कारण ये सभी रजाई-गद्दे आदि बिस्तर सिल जाते हैं. इसलिए खतुड़वे के दिन प्रातःकाल ही घर की सभी वस्तुओं को इस दिन धूप दिखाकर सुखाया जाता है. मास गौरतलब है कि अश्विन मास की शुरुआत so(सितम्बर मध्य) से पहाड़ों में ...
अन्वेषक अमर सिंह रावत के अमर उद्यमीय प्रयास

अन्वेषक अमर सिंह रावत के अमर उद्यमीय प्रयास

इतिहास
डॉ. अरुण कुकसाल सीरौं गांव (पौड़ी गढ़वाल) के महान अन्वेषक और उद्यमी अमर सिंह रावत सन् 1927 से 1942 तक कंडाली, पिरूल और रामबांस के कच्चेमाल से व्यावसायिक स्तर पर सूती और ऊनी कपड़ा बनाया करते थे. उन्होने सन् 1940 में मुम्बई (तब का बम्बई) में प्राकृतिक रेशों से कपड़ा बनाने के कारोबार में काम करने का 1 लाख रुपये का ऑफर ठुकरा कर अपने गढ़वाल में ही स्वःरोजगार की अलख जगाना बेहतर समझा. परन्तु हमारे गढ़वाली समाज ने उनकी कदर न जानी. आखिर में उनके सपने और आविष्कार उनके साथ ही विदा हो गये. बात अतीत की करें तो उत्तराखंड में सामाजिक चेतना की अलख़ जगाने वालों में 3 अग्रणी व्यक्तित्व इसी गांव से ताल्लुक रखते थे. अन्वेषक एवं उद्यमी अमर सिंह रावत, आर्य समाज आंदोलन के प्रचारक जोध सिंह रावत और शिक्षाविद् डॉ. सौभागयवती. यह भी महत्वपूर्ण है कि गढ़वाल राइफल के संस्थापक लाट सुबेदार बलभद्र सिंह नेगी के पूर्वज...