Tag: डॉ. दीपा चौहान राणा

अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

अपने बच्‍चों को पढ़ाएं नैतिक शिक्षा का पाठ

साहित्‍य-संस्कृति
कैसे बनता है कोई समाज, कौन हैं ये लोग? डॉ. दीपा चौहान राणा बिना किसी व्यक्ति विशेष के किसी समाज का निर्माण नहीं हो सकता है. हम मानव ही सभी समाज की नींव हैं. लेकिन इसी समाज में हमें सामाजिक बुराई देखने को मिलती है, एक से एक घिनौनी कुरीतियां तब से becauseचली आ रही हैं जब से इंसान इस धरती पर पैदा हुआ. कुरीति उसी कुरीति में से एक है बलात्कार! क्या है बलात्कार? so जब किसी के साथ पूरे बल से उसकी मर्जी के बिना उसकी आत्मा, उसके शरीर तथा उसके अंगों को छुआ या नोचा जाए, वो होता है बलात्कार. कुरीति ऐसी भी क्या है कि कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ इतने बल का प्रयोग करता है? उसके साथ इतना दानव जैसा व्यवहार करता है. ये एक संवेदनशील विषय है, जिस पर सिर्फ तभी बातbecause होती है, जब कोई बेटी या महिला इस घटना की शिकार होती है तभी बस बात होती है, उससे पहले कोई बात नहीं?  इसके क्या कारण हो सकते हैं क...
ये तो  पापा की परी है…

ये तो पापा की परी है…

आधी आबादी
विश्व बेटी दिवस पर विशेष डॉ. दीपा चौहान राणा यूँ  तो बेटी हर किसी कीbecauseलाडली होती है, पर क्या आप जानते हैं कि एक बेटी अपने पिता की जान होती है. आज बेटियों के लिए बेहद खास दिन है, क्योंकि आज डॉटर्स-डे यानी विश्‍व बेटी दिवस है. दुनिया भर में यह दिन अलग-अलग महीनों में मनाया जाता है, लेकिन भारत में यह दिन सितंबर के आखिरी रविवार को मनाया जाता है. सप्तेश्वर बेटियां आज भले ही किसी भी so क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. हर क्षेत्र में हैं वो तरक्की कर रही हैं, लेकिन आज भी समाज में कई जगह उन्हें कमतर आंका जाता है. इसे देखते हुए कुछ देश की सरकार ने मिलकर समानता को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया. जिससे लोग जागरूक हो और इस बात को समझे कि हर इंसान बराबर है. सप्तेश्वर सप्तेश्वर यूं तो बेटी हर किसी की butलाडली होती है, पर क्या आप जानते हैं कि बेटी और पिता के बीच खास बॉन्डिंग क्यों होती ...
हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

हमारी समृद्ध परंपरा और खुशहाली के प्रतीक हैं हमारे त्यौहार

लोक पर्व-त्योहार
लगातार 6 दिनों तक मनाया जाता है 'मगोच' डॉ. दीपा चौहान राणा हमारे उत्तराखंड में 12 महीनों के बारह त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहार का अपना एक खास महत्व है. हम उत्सवधर्मी लोग हैं. हमारे रीति—रिवाज हमारी संस्कृति की एक खास पहचान हैं. butहमारे यहां तीज—त्यौहार, उत्सव तो बहुत हैं लेकिन आज मैं एक विशेष त्यौहार की बात कर रही हूं, वह त्यौहार जो हर वर्ष 25 गते पौष यानी 9 जनवरी से हमारे पहाड़ों (रवांई-जौनपुर एवं जौनसार-बावर) में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वह त्यौहार हैं 'माघ के मगोच'. माघ मतलब जनवरी का महीना और मगोच का मतलब त्यौहार! त्यौहार मगोच लगातार 6 दिनों तक चलने वाला एक विशेष त्यौहार है. becauseइसमें लोग हर दिन के त्यौहार अगल—अलग नाम देते है और दिन अलग—अलग पकवान बनाते हैं. यह त्यौहार पीढ़ी—दर—पीढ़ी हमारी परंपरा के अनुसार बनाए जाते हैं. इनकी शुरुआत कई वर्ष पूर्व हमारे ...
बदलाव को लेकर हम परेशान व चिंतित क्यों…

बदलाव को लेकर हम परेशान व चिंतित क्यों…

योग-साधना
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है... डॉ. दीपा चौहान राणा बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, यह एक ऐसा विषय जिसके कई बदलाव, बदलना, बदल जाना आदि शब्दों को लेकर कई लोग शिकायत करते हैं, शिकायत  ही नहीं बल्कि चिंतित व परेशान भी रहते हैं. रिश्तों में भी खास शिकायत होती है कि वो बदल गया है. अब वो पहले जैसा नहीं रहा. मेरे पापा, मम्मी, पति, पत्नी सब पहले जैसे नहीं रहे अब वो बदल चुके हैं. कुछ इसी तरह की शिकायत हम सभी को किसी ना किसी से हो सकती है, जिस वजह से हमारे रिश्तों में दरारें आने लगती हैं क्यूंकि हमें बदलाव और बदलना पसंद नहीं है. जो जैसा है, हम उसे वैसा ही देखने के आदी हो गये हैं. मुझे आश्चर्य होता है कि हम बदलाव को स्वीकार क्यों नहीं कर पाते है, जबकि बदलाव तो प्रकृति का शाश्वत नियम है.  यह प्रकृति का स्वभाव है. बिना बदले किसी भी चीज की कल्पना मात्र भी धोखा है. सभी प्रकृतिवादियों में म...