बदलाव को लेकर हम परेशान व चिंतित क्यों…

परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है…

  • डॉ. दीपा चौहान राणा

बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, यह एक ऐसा विषय जिसके कई बदलाव, बदलना, बदल जाना आदि शब्दों को लेकर कई लोग शिकायत करते हैं, शिकायत  ही नहीं बल्कि चिंतित व परेशान भी रहते हैं. रिश्तों में भी खास शिकायत होती है कि वो बदल गया है. अब वो पहले जैसा नहीं रहा. मेरे पापा, मम्मी, पति, पत्नी सब पहले जैसे नहीं रहे अब वो बदल चुके हैं. कुछ इसी तरह की शिकायत हम सभी को किसी ना किसी से हो सकती है, जिस वजह से हमारे रिश्तों में दरारें आने लगती हैं क्यूंकि हमें बदलाव और बदलना पसंद नहीं है. जो जैसा है, हम उसे वैसा ही देखने के आदी हो गये हैं. मुझे आश्चर्य होता है कि हम बदलाव को स्वीकार क्यों नहीं कर पाते है, जबकि बदलाव तो प्रकृति का शाश्वत नियम है.  यह प्रकृति का स्वभाव है. बिना बदले किसी भी चीज की कल्पना मात्र भी धोखा है. सभी प्रकृतिवादियों में माना है कि बदलाव हमारी खोज नहीं है बल्कि ये एक प्रक्रिया है. प्रकृति का गुण या स्वभाव है. जो निरन्तर चलता रहता है.

जन्म से मृत्यु तक मानव शरीर भी बदलता रहता है. रंग, रूप, चाल-ठाल अंग-प्रत्यंग बदलते रहते हैं. एक मां अपने बच्चे को बड़े होते हुए देखना चाहती है. बच्चे का  बड़ा होना भी तो एक बदलाव है. ऐसा बदलाव माँ को चाहिए लेकिन जब वही बच्चा बड़ा होकर अपनी बीवी से प्रेम करता है, उसकी परवाह करता है तो यह बदलाव माँ को सहज स्वीकार नहीं होता. आखिर ऐसा क्यों?

सूरज भी कभी एक जैसा नहीं दिखता. वो भी एक दिन में सुबह से शाम तक अलग- अलग दिशाओं में नज़र आता है. यह भी तो एक बदलाव ही है.

सभी सांकेतिक फोटो pixabay.com से साभार

जन्म से मृत्यु तक मानव शरीर भी बदलता रहता है. रंग, रूप, चाल-ठाल अंग-प्रत्यंग बदलते रहते हैं. एक मां अपने बच्चे को बड़े होते हुए देखना चाहती है. बच्चे का  बड़ा होना भी तो एक बदलाव है. ऐसा बदलाव माँ को चाहिए लेकिन जब वही बच्चा बड़ा होकर अपनी बीवी से प्रेम करता है, उसकी परवाह करता है तो यह बदलाव माँ को सहज स्वीकार नहीं होता. आखिर ऐसा क्यों? जबकि ये सब तो होना ही होगा, क्यूंकि बदलाव तो प्रकृति का नियम है.

अगर प्रकृति की हर चीज़ बदलती रहती है तो फिर हमें बदलते इंसान क्यों पसंद नहीं? व्यक्ति विशेष में होते बदलाव को लेकर हम परेशान व चिंतित क्यों हो जाते हैं जब कि बदलाव सकारात्मक है? कहीं ऐसा तो नहीं किसी के बदलने से हमारे स्वार्थ हार रहें हैं? हम बदलाव को लेकर चिंतित हैं या बदलते व्यक्ति के व्यवहार व व्यवसाय से? विषय विचारणीय हो जाता है. क्यों हम चाहते हैं कि बदलाव हमारी इच्छानुसार ही हो? 

प्राचीन काल की वर्तमान से तुलना करते हैं तो क्या इस बीच नहीं बदला है? बदला है ना? उसी बदलाव को हम विकास का नाम देकर गर्व महसूस करते है जबकि वो भी तो एक बदलाव मात्र है. पेड़, पहाड़, नदी, नाले सब बदले हैं. कोई पहले जैसा नहीं रहता. जो एक जीता जागता उदाहरण है जिसे हम सब देख सकते हैं. एक बीज भी घनाह छायादार पेड़ बन जाता है जिसकी छाऊं में हम सब आनंद से साथ रहते है. वो भी तो एक बदलाव ही था. तभी तो  बीज से वृक्ष बना. अगर प्रकृति की हर चीज़ बदलती रहती है तो फिर हमें बदलते इंसान क्यों पसंद नहीं? व्यक्ति विशेष में होते बदलाव को लेकर हम परेशान व चिंतित क्यों हो जाते हैं जब कि बदलाव सकारात्मक है? कहीं ऐसा तो नहीं किसी के बदलने से हमारे स्वार्थ हार रहें हैं? हम बदलाव को लेकर चिंतित हैं या बदलते व्यक्ति के व्यवहार व व्यवसाय से? विषय विचारणीय हो जाता है. क्यों हम चाहते हैं कि बदलाव हमारी इच्छानुसार ही हो?

सभी सांकेतिक फोटो pixabay.com से साभार

हमने मौसम भी तो बदलते हुए देखें हैं. मौसम के बदलने पर हम उसका भरपूर लुत्फ उठाने हैं. गरमी में स्वीमिंगपूल का आनंद, सर्दी में गाजर के हलवे का आनंद, बारिश में बारिश में भीगने का आनंद, बसंत में फूलों के खिलने की खुशी. ये भी तो बदलाव है और अगर ऐसा ना हो तो क्या होगा? पतझड़ के मौसम में जब पेड़-पौधे अपने पत्ते गिरा देते है. कैसा सुनसान और वीरान सा लगने लगता है सब कुछ? लेकिन वो वीरान-सा मौसम हमें उम्मीद भी देता है आने वाली हरियाली के लिए. बदलाव तभी तो होगा जब कुछ पुराना जाएगा और उसकी जगह नया आयेगा.

बिना बदलाव कुछ भी संभव नहीं है. जिस दिन प्रकृति और उसके बदलाव को महसूस करेंगे उसके कारणों को समझेंगे तो हमें वास्तविक खुशी और आनन्द की अनुभूति होने लगेगी. इसलिए समझना होगा कि उम्मीद किसी के बदले जाने का दुःख नहीं बल्कि खुशी है जिसे सहजभाव से स्वीकार करते हुए आनंद लिया जा सकता है. परंतु ये तभी होगा जब हम समझ जाएंगे कि बदलाव जरूरी  है!

हम लोग कितना भी परिवर्तन नहीं होने की कोशिश करें लेकिन हमें समय और प्रकृति के साथ बदलना ही पड़ता है क्योंकि ये गीता में लिखा है, जो आज है वो कल नहीं होगा और जो कल होगा, वो परसों नही होगा क्योंकि ‘परिवर्तन ही संसार का नियम है’.

हम लोग कितना भी परिवर्तन नहीं होने की कोशिश करें लेकिन हमें समय और प्रकृति के साथ बदलना ही पड़ता है क्योंकि ये गीता में लिखा है, जो आज है वो कल नहीं होगा और जो कल होगा, वो परसों नही होगा क्योंकि ‘परिवर्तन ही संसार का नियम है’.

(लेखिका राणा क्योर होम्योपैथिक क्लिनिक, सुभाष रोड, नियर सचिवालय, देहरादून की ऑर्नर हैं. आप इनसे 7982576595 चीकित्‍सकीय सलाह ले सकते हैं)

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