Tag: डॉ. कुसुम जोशी

अपने पहाड़ लौटने का सपना अपने साथ  ही ले गई प्यूलीं

अपने पहाड़ लौटने का सपना अपने साथ  ही ले गई प्यूलीं

किस्से-कहानियां
डॉ. कुसुम जोशी         फ्यूंली (प्यूंली) के खिलते ही पहाड़ जी उठे, गमक चमक उठे पहाड़ पीले रंग की प्यूंली से, कड़कड़ाती ठन्ड पहाड़ से विदा लेने लगी, सूखे या ठन्ड से जम आये नदी नालों में पानी की कलकल ध्वनि लौटने लगी, फ्यूंली के साथ खिलखिला उठी प्रकृति, रक्ताभ से बुंराश, राई के फूलो की पीली आभा, गुलाबी कचनार, आडू, खुबानी, प्लम, के सफेद, गुलाबी फूल, इन सब से खिल उठे हैं पहाड़, पशु, पक्षी सब. पहाड़ी सुन्दरी प्यूंली जब हंसती तो झरझर जी उठता था उसका घर आंगन, उसके पहाड़, गुनगुनाती हुई जंगल जाती घास काटती, लकड़ी बीनती, सारा जंगल, चिड़िया पशु पक्षी भी उसके साथ गुनगुनाते, रंग बिरंगी तितलियां पूरे जंगल को रंग से भर देती. ... पूरा पहाड़ झूम उठा उनकी प्यूंली रानी बनेगी, पर जैसे जैसे रस्म आगे बढ़ रही थी, प्यूंली का दिल पहाड़ से दूर जाने के नाम से घबराने लगा था, पहाड़ भी महसूस करने लगे की उ...
अपेक्षायें

अपेक्षायें

किस्से-कहानियां
लघु कथा डॉ. कुसुम जोशी  "ब्वारी मत जाया करना रात सांझ उस पेड़ के तले से... अपना तो टक्क से becauseरस्सी में लटकी और चली गई, पर मेरे लिये और केवल' के लिये जिन्दगी भर का श्राप छोड़ गई. श्राप तीन साल से एक रात भी हम मां बेटे चैन से नही सोये... but आंखें बंद होने को हों तो सामने खड़ी हो जाय... कसती है  "देखती हूं कैसे लाती हो दूसरे खानदान से ब्वारी...". अब ले तो आई हूं तुझे,  अपना और केवल का ध्यान रखना…. तारी ने सास धर्म का पालन करते हुये बहू को आगाह किया. “किसे पता… क्या दिमाग फिरा उसका… कुछ लोगों को सुख नही सहा जाता है ना, सोलह साल हो गये थे ब्याह के… गरभ से एक पत्थर तक न पड़ा… केवल ने सारे वैध… हकीम… शहर के बड़े डाक्टर तक एक कर दिये… बांझ थी वो.., फिर भी सबने दिल में पत्थर रख लिया था” सास कांप उठी थी चन्दा सास की बात सुन कर, soधीरे से बोली "ऐसा क्यों किया बड़ी ने"? "किसे पता...
बंद सांकल

बंद सांकल

किस्से-कहानियां
लघु कथा   डॉ. कुसुम जोशी  ऊपर पहाड़ी में खूब हरी भरी घास देख कर लीला को अपनी गैय्या गंगी की खुशी आंखों में नाच उठी. गंगी की उम्र बढ़ रही है, इसीलिये उसे मुलायम-सी हरी घास, भट्ट और आटे को पीस कर बनाया दौ बहुत पसन्द था. अधिक से अधिक घास काटने के चक्कर में लीला को घर पहुंचते बहुत देर हो गई थी. ऊपर से घास का गट्ठर भी बहुत भारी होने से तेज चलना भी मुश्किल था,  उसे थकान महसूस होने लगी, उसने घास का गट्ठर सर से नीचे पटक कर रखा और वहीं पर पांव फैला कर वहीं पर बैठ गई. लम्बी गहरी सांस ली और आंगन में सरसरी नजरें दौड़ाई. बिखरी हुई घास, पत्तियां, लकड़ी के टुकड़े ज्यों के त्यों पड़े थे, सुबह जंगल जाते समय उनसे सोये हुये पति को चाय का गिलास पकड़ाते हुये आग्रह किया था  कि "उसके घास लेकर आने तक अगर वे आंगन बुहार लेगें तो कल से काटे  गेहूं को धूप लगाने के लिये फैला देगीं".  घर पर नजर पड़ी तो द्वार पर स...
खनार

खनार

किस्से-कहानियां
कहानी डॉ. कुसुम जोशी रमा कान्त उर्फ रमदा के बिल्कुल सड़क से सटे घर के आंगन में कार को पार्क कर उनकी छोटी सी परचून की दुकान में उनसे मुलाकात करने के लिये आगे बढ़ गया. बचपन में एक ही स्कूल में पढ़ते थे हम. दो साल सीनियर थे मुझसे, पढ़ने में अच्छे थे पर पुरोहिताई करने वाले  पिता असमय ही चल बसे. किसी तरह दो साल मां की  मेहनत, थोड़ा-सा मलकोट का सहारा था जो इंटर कर ही लिया, इंटर के बाद अल्मोड़ा चले गये. किसी दुकान में काम करने लगे. उन पर ईश्वर कृपा इतनी ही रही कि 'दिल्ली मुम्बई' जाने की प्रेरणा नही मिली.घर के सयाने थे हर समय मां छोटे भाई बहनों की चिन्ता सताती थी.पगार भी इतनी भर की अपना ही खर्च खींच तान के निकल पाता.पर एक बड़ी उपलब्धि ये हुयी कि दुकान में काम करते दुकानदारी सीख ली. दो साल बाद आत्मविश्वास आते ही गांव  लौट आये और गांव में किराने की छोटी सी दुकान शुरु की .सफर ठीक-ठाक ही रहा. ...