इगास पर्व: भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
सुनीता भट्ट पैन्यूली इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और पुरुष संभवतः अपने कठिन जीवन की पीड़ा सहकर भी इस प्रकार से आशान्वित हैं कि, अंधेरा वहीं काबिज़ रहेगा जहां उसे रहना है,ये प्रकाश ही है जिसे स्वयं अंधेरों के कोने-कोने तक पहुंचकर उसके काले रंध्रों […]
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