जावेद साहब कंगना को घर बुलाकर हड़काना सहिष्णुता है क्या?

  • ललित फुलारा

जावेद साहब पिछले छह साल से भड़क रहे हैं. कभी टीवी पर, तो कभी मंचों पर, लेकिन मुझे उनका यह भड़कना अभी तक इतना ख़राब नहीं लगता था, पर जब से कंगना पर भड़कने की ख़बर सुनी है, तब से जावेद साहब की बौद्धिकता और उदारता से रश्क होने लगा है. कथित गढ़ी गई असहिष्णुता पर भड़कते हुए पुरस्कार लौटाने वालों के पक्ष में गोलबंदी करने वाले जावेद साहब को देश के प्रधानमंत्री के हर भाव-भंगीमा, साक्षात्कार, ओबामा से दोस्ती और यहां तक की सोने के घंटों पर अजीब-सी शक्ल बनाते हुए भड़कते और उपहास उड़ाते हुए तो देखा था, लेकिन एक स्त्री को घर बुलाकर माफी मांगने के लिए उस पर भड़कते/ धमकाते हुए सुना, तो कलेजा गुस्से से भर उठा.

इतना महान कवि और गीतकार एक स्त्री को अपने घर बुलाकर कैसे हड़का सकता है? माफी मांगने के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है. यहां तक कहता है कि अगर कंगना ने राकेश रोशन और उनके परिवार से माफी नहीं मांगी तो वो कहीं की नहीं रहेंगी.

मैं उम्मीद लगाए बैठा था कि जावेद साहब इंडस्ट्री की असहिष्णुता पर भड़केंगे. एक उभरते कलाकार को असमय मौत के मुंह में धकेलने पर भड़केंगे.. इंडस्ट्री में भीतर तक पसरे नैपॉटिज्म पर भड़केंगे, पर समाचार मिला भी तो जावेद साहब के कंगना पर भड़कने का!! दिल उदासी से भर बैठा. इतना महान कवि और गीतकार एक स्त्री को अपने घर बुलाकर कैसे हड़का सकता है? माफी मांगने के लिए दबाव बनाने का प्रयास कर सकता है. यहां तक कहता है कि अगर कंगना ने राकेश रोशन और उनके परिवार से माफी नहीं मांगी तो वो कहीं की नहीं रहेंगी. उनके पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.

सत्ता और सरकार फासीवादी है. पर जावेद साहब तो धर्मनिरपेक्ष और समतामूलक समाज के घोतक हैं. ऐसा समाज जहां एक रसूखदार कवि और गीतकार एक स्त्री को घर बुलाकर फिल्म इंडस्ट्री के एक रसूखदार परिवार से माफी मांगने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव बनाता है.

हद है जावेद साहब! एक स्त्री, जिसके पीछे पूरा बॉलीवुड पड़ा हो, इंडस्ट्री को अपने बाप की बपौती समझने वाले रसूखदार जिसको रत्ती भर पसंद न करते हो. जो अकेली अपने बेबाक बोल और हौंसले की बदौलत फिल्म इंडस्ट्री की सांठगांठ/ भाई-भतीजेवाद और गिराने-उठाने की प्रवृत्ति से लोहा लिए हो, आपने उसको अपने घर बुलाकर हड़का डाला….क्या यह फासीवाद नहीं है. देश के प्रधानमंत्री जावेद साहब को फासीवादी लगते हैं. सत्ता और सरकार फासीवादी है. पर जावेद साहब तो धर्मनिरपेक्ष और समतामूलक समाज के घोतक हैं. ऐसा समाज जहां एक रसूखदार कवि और गीतकार एक स्त्री को घर बुलाकर फिल्म इंडस्ट्री के एक रसूखदार परिवार से माफी मांगने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव बनाता है.

जावेद साहब कतर के स्टेट प्रायोजित ‘अल-जजीरा’ से बातचीत करते हुए देश के पीएम को फासीवादी तो बता देते हैं, लेकिन अपने ही देश में जब फिल्म इंडस्ट्री की स्याह सच्चाई पर बोलने की बात होती है, तो चुप्पी साध लेते हैं. वैसे ही चुप्पी जैसे जावेद साहब के कंगना को घर बुलाकर हड़काने पर तमाम बुद्धिजीवी साधे हुए हैं. जावेद अख्तर साहब मुंबई से कोसों दूर यूपी आकर सीएए और एनआरसी विरोधी रैली में योगी सरकार को गिराने का आवाह्न कर सकते हैं, लेकिन कभी करण जौहर और सलमान खान पर कुछ नहीं बोल सकते. सुशांत की आत्महत्या और उसके बाद उपजे विवाद पर मुंह खुला है क्या अभी जावेद साहब का!!

सोनू निगम जैसा संगीतकार जब सलमान खान पर गाना छिनने का आरोप लगाते हैं, तो भी जावेद साहब चुप्पी साध लेते हैं. जावेद साहब को फिल्म इंडस्ट्री की गुंडाई को छोड़कर बाकी सारी चीजें दिखती हैं.

क्या जावेद अख्तर साहब को गुस्सा सिर्फ सलेक्टिव चीजों पर ही आता है. जावेद साहब पीएम मोदी और अमित शाह को पसंद नहीं करते और राहुल गांधी को पीएम बनते हुए देखना चाहते हैं. पर जावेद साहब फिल्म इंडस्ट्री के भीतर देश के दूर-दराज के गांव/कस्बों से आने वाले कलाकारों के शोषण पर कुछ नहीं बोलते. सोनू निगम जैसा संगीतकार जब सलमान खान पर गाना छिनने का आरोप लगाते हैं, तो भी जावेद साहब चुप्पी साध लेते हैं. जावेद साहब को फिल्म इंडस्ट्री की गुंडाई को छोड़कर बाकी सारी चीजें दिखती हैं. जावेद साहब से उम्मीद है कि कभी जिस इंडस्ट्री ने उनको यह रसूख दिलाया है, उस तरफ भी झांक लिया करें.

(ललित फुलारा के फेसबुक वॉल से साभार)

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