भारतमाता की सेवा में समर्पित यमुना घाटी के कई लाल
- ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’
सीमान्त जनपद उत्तरकाशी का रवांई क्षेत्र जहां अपनी सांस्कृतिक विविधता प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जग जाहिर है वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी इन सुदूरवर्ती गांवों से निकलने वाले नौजवान ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा कर समूचे देश के साथ कंधे से कंधा मिला रहे हैं. इन सुदूर रवांई क्षेत्र की शांत वादियों में बसे गांव के होनहार नौनिहाल जब विभिन्न क्षेत्रों में अपनी कामयाबी की सूचना देते हैं तो इन पहाड़ों में बसने वाले सीधे-सादे जन मानस का मस्तिष्क भी पहाड़ सा ऊँचा हो जाता है.
अखिल राणा की माँ कहती है कि अखिल अक्सर मुझे कहता था -‘‘माँ एक दिन मैं सेना में ऑफिसर बन के रहूंगा और देश की सेवा करूंगा.’’
राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में जहां उत्तराखण्ड राज्य देश में अपना विशिष्ट स्थान बनाए है वहीं अब उत्तरकाशी और रवांई क्षेत्र के युवाओं का रूझान भी इस ओर होने लगा है. एनडीए में निकलना और राष्ट्रीय रक्षा आकादमी पुणे से प्रशिक्षण पाने के उपरान्त आईएमए देहरादून, एअरफोर्स डिफेंस अकादमी हैदराबाद और इण्डियन नेवल अकादमी एझिमाला केरल से पासआउट होना भारतीय सेना में एक गौरव की बात मानी जाती है. अपने रवांई क्षेत्र की ऐसी कई प्रतिभाएं हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है.
‘‘मुझे मृदुल की शानदार उपलब्धियों पर गर्व हैं मृदुल ने परिवार के सपनों को अपना लक्ष्य मानकर इसे पूरा किया है. अब मृदुल न सिर्फ मेरा बेटा है अपितु पूरे हिन्दुस्तान का बेटा है. मुझे गर्व होगा कि मेरा बेटा देश की रक्षा में सदैव आगे रहेगा.’’
– श्रीमती सरिता रावत, लेफ्टिनेंट मृदुल रावत की माँ
इनमें विंग कामाण्डर धीरेन्द्र जयाड़ा पुत्र जबर सिंह एवं श्रीमती पवित्रा देवी जयाड़ा ग्राम डख्याटगांव, 2004 में एनडीए और वर्श 2005 को एयरफोर्स डिफेंस एकेडमी हैदराबाद से कमीश न पाकर वायु सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. ले. कर्नल विपिन जयाड़ा पुत्र श्री बचन सिंह जयाड़ा डख्याटगांव. माकुड़ी बंगाण से मदन सिंह रावत की सुपुत्री मेजर चेतना आज इण्डियन आर्मी का हिस्सा हैं. कैप्टेन अखिल राणा पुत्र रवीन्द्र सिंह राणा एवं श्रीमती कान्ता राणा मठ पुरोला, नवम्बर 2016 को एनडीए से और 2017 को भारतीय सैन्य अकादती देहरादून से कमीशन पाकर थल सेना में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं. अखिल राणा की माँ कहती है कि अखिल अक्सर मुझे कहता था -‘‘माँ एक दिन मैं सेना में ऑफिसर बन के रहूंगा और देश की सेवा करूंगा.’’
विवके की माँ कहती हैं कि जब उसने हाईस्कूल की परीक्षा में टॉप किया तो एक पत्रकार ने पूछा-‘‘बेटे आपका सपना क्या हैं?’’ तो विवके ने कहा था ‘‘मै एअरफोर्स में ऑफिसर बनूंगा.’’
कैप्टेन विवके रावत पुत्र ध्यान सिंह एवं श्रीमती अनीता रावत सरनौल वर्ष 2017 को एनडीए से और दिसम्बर 2018 में आईएमए देहरादून से कमीशन पाकर देश की सरहद की रक्षा कर रहे हैं. विवके की माँ कहती हैं कि जब उसने हाईस्कूल की परीक्षा में टॉप किया तो एक पत्रकार ने पूछा-‘‘बेटे आपका सपना क्या हैं?’’ तो विवके ने कहा था ‘‘मै एअरफोर्स में ऑफिसर बनूंगा.’’ लेफ्टिनेंट मृदुल रावत पुत्र मनोज रावत एवं श्रीमती सरिता रावत मई 2019 को एनडीए से और जून 2020 को आइएमए देहरादून से कमीशन पाकर थल सेना में ऑफिसर हैं. मृदुल की माँ श्रीमती सरिता रावत कहती हैं- ‘‘मुझे मृदुल की शानदार उपलब्धियों पर गर्व हैं मृदुल ने परिवार के सपनों को अपना लक्ष्य मानकर इसे पूरा किया है. अब मृदुल न सिर्फ मेरा बेटा है अपितु पूरे हिन्दुस्तान का बेटा है. मुझे गर्व होगा कि मेरा बेटा देश की रक्षा में सदैव आगे रहेगा.’’ लेफ्टिनेंट अक्षत चैहान पुत्र जगमोहन एवं श्रीमती नीतू चैहान झोटाड़ी बंगाण ने सीडीएस की परीक्षा पास कर आईएमए देहरादून से 2020 में पासआउट हुए हैं.
पैरेंट्स का नेशनल डिफेंस अकादमी पुणे का भ्रमण और वहां पर मिला सम्मान भी कम गौरव की बात नहीं है. मुझे भी वर्ष 2014 में पहली बार जाने का अवसर मिला था जब बेटे ने दूरभाष से एनडीए में निकल जाने की खुश खबरी दी थी. यह सफ़र मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था. एक माह पश्चात ‘ज्वाइनिंग लेटर’ भी आ गया. 26 दिसम्बर को 2014 को खड़गवासला पुणे (महाराष्ट्र) में उपस्थिति देनी है तो ट्रेन के तीन टिकट शीघ्र ही रिज़र्व करवा दी. किन्तु अंत तक भी टिकट कन्फर्म नहीं हो पाये तो बाय एयर ही जाने का निश्चय किया. दिल्ली से पुणे कोई सीधी उड़ान नहीं मिली तो मुम्बई की टिकट मिल पाई. खैर 25 नवम्बर 2014 की प्रातः को नई दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंच गये जहां सब कुछ हमारे लिए नया-नया था. इससे पूर्व हमने कोई हवाई सफ़र नहीं किया था. वर्षों से संजोये आज उस सपने को बेटे की कामयाबी ने पंख लगा दिये थे. रनवे पर इण्यिन एयरलाइन्स का विमान बहुत तेजी से रफ्तार पकड़ने लगा. जैसे ही उसने ‘टेक आफ’ किया तो हम पहली बार खुले अम्बर में थे. नीचे श्वेत काले मेघों की परतें हमारे सपनों की भांति अनेकों आकृतियाँ बनाये दिखाई पड़ रही थी. मुझे डॉ. कलाम की लिखी एक बात याद आ रही थी कि ‘‘सफलता सपनों के लिए प्रयास करने वालों के पीछे चलती है आकाश की ओर देखिए हम अकेले नहीं हैं, समूचा ब्रह्मांड हमारे अनुकूल है जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं उन्हें प्रतिफल देखने की साजिश करता है.’’ मेरे लिए अपने जीवन का यह सबसे रोमांचकारी सफ़र था ओर बेटे के लिए अपने सपनों का साकार करने का मकसद. सफर पर जाने का उद्देश्य स्पष्ट था.
जनवरी के महीने दिल्ली का कुहरा और हाड़ कंपकंपा देने वाली ठण्ड अपने चरम पर होती हैं धूप तो धरती पर बमुश्किल ही नजर आती है किन्तु अब हम मेघों के ऊपर थे जहां सूर्य देव की किरणें उन छोटी-छोटी बन्द मोरियों से भीतर झाँक रही थी. निगाहें तो मैंने उस छोटी सी मोरी के बाहर गढ़ाई रखी. वायुयान के विंग्स में लगे फ्लेप और स्लैट कब खुलते और बन्द होते हैं यह सारा खेल तो खुले आकाश में वायु वेग का है. पहाड़, नदियाँ, जंगल और तालाब धरती पर सुक्ष्म चींटी की भांति दिखाई पड़ रहे थे. जब वायुयान मुम्बई के ऊपर था तो समुद्र के कुछ भाग को मेरी आँखे टटोल रही थी. धीरे-धीरे जमीन पर चहलकदमी, बड़ी-बड़ी गगनचुम्बी ईमारतें साफ-साफ दिखाई पड़ने लगी थीं. दो घण्टा दस मिनट के बाद विमान मुम्बई की धरा पर उतर गया.
एक सैन्य अधिकारी ने आकर सभी उपस्थित पेरेट्स से शिष्टाचार मुलाकात की और हमें सौभाग्यशाली कहकर अपनी शुभकामनाएँ भेंट की. पहली बार इतने बड़े अधिकारी से मुखातिब हुए थे हम. इन वाक्यों को सुनकर आनन्द की अनुभूति अवश्य हुई थी. सीनियर कैडेट्स आकर बहुत ही शिष्टाचार से बात कर रहे थे. उनका मृदुभाशी सौम्य व्यवहार बराबर हर एक को सम्मोहित कर रहा था.
हम मुम्बई से सांय तक पुणे पहुंच गये. 26 दिसम्बर की प्रातः को ही एक टैक्सी से 22 किमी की दूरी पर स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़गवासला आर्मी एरिया के भीतर गहन सुरक्षा जाँच से गुजरते हुए एक ऑडिटोरियम में पहुंचे. एक सैन्य अधिकारी ने आकर सभी उपस्थित पेरेट्स से शिष्टाचार मुलाकात की और हमें सौभाग्यशाली कहकर अपनी शुभकामनाएँ भेंट की. पहली बार इतने बड़े अधिकारी से मुखातिब हुए थे हम. इन वाक्यों को सुनकर आनन्द की अनुभूति अवश्य हुई थी. सीनियर कैडेट्स आकर बहुत ही शिष्टाचार से बात कर रहे थे. उनका मृदुभाशी सौम्य व्यवहार बराबर हर एक को सम्मोहित कर रहा था. सेना में अनुशासन का कितना बड़ा महत्व होता है यह हमें चारों ओर नजर आ रहा था. सोचा, काश! मेरे वतन का एक-एक नागरिक ऐसा हो जाय. राष्ट्रीय सैन्य अकादमी खडगवासला पुणे में तीनों सेनाओं के भावी ऑफिसर्स जिन्हें कैडेट्स कहते हैं वे यहां तीन सालों तक स्नातक की डिग्री के साथ-साथ हर चुनौती का मुकाबला करने के लिए कठोर प्रशिक्षण पाते हैं. सेना के अनुभवी अधिकारी और इन्सट्रक्टर कैडेट्स को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत करने के लिए दिन-रात जुटे रहते हैं ताकि कोई कोर-कसर न रह जाए. यहां प्रशिक्षण के दौराने गुजारे अपने एक-एक पल की मजबूती को ये भारतीय सेना के सुरमा अपने जीवन में उतारते हैं.
तीन साल की कठोर ट्रेनिंग के उपरान्त पासिंग आउट परेड (पीओपी) के लिए राष्ट्रीय सैन्य अकादमी खड़गवासला की ओर से हर पेरेंट्स को आमन्त्रण-पत्र प्राप्त होता है. एयरपोर्ट और रेलवे स्टेश न पर विभिन्न प्रान्तों से आने वाले पेरेंट्स, अभिभावकों के लिए सैन्य अकादमी की ओर से वाहन बराबर उपलब्ध रहते हैं. एयरपोर्ट से बाहर खड़ी बस में बैठकर हम सीधे होटल आ गये जहां हमारे ठहरने की सुव्यवस्था की गयी थी. बेटा मिलने आ गया.
समुद्र से लगा होने के कारण यहां की जलवायु समशीतोषण है. यह वीर मराठों की भूमि जहां शाहजी भोंसले वीर शिवाजी जैसे योद्धा जन्में हैं. हमने नमन किया इस माटी को. 29 तारीख को प्रातः सबसे पहले हबीबुल्ला हॉल में प्रविष्ट हुए जहाँ पास आउट होने वाले कैडेट्स को एक भव्य समारोह में जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी के व सैन्य अधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति में स्नातक की उपाधियाँ प्रदान की जा रही थीं साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में अपने कौशल का उम्दा प्रदर्शन करने वाले होनहार कैडेट्स को भी सम्मानित किया जाता है. एनडीए दर्शन के उपरान्त कैडेट्स मेस में सुमधुर धुन के साथ हजारों पेरेंट्स और कैडेट्स ने एक साथ लजीज लंच का रसास्वादन करते हैं. बाम्बे स्टेडियम में उपस्थित दर्शकों को सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण पा रहे कैडेट्स के हुनर कलाबाजियों, अनेकों सहासिक स्पर्धाओं जैसे पैराग्लाइडिंग, यु़द्ध कौशल, घुड़सवारी की शानदार प्रस्तुतियों से सबको सम्मोहित कर देते हैं. एक्सपो एनडीए प्रदर्शनी में मॉडलिंग, आर्ट, फोटोग्राफी, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, और भी बहुत कुछ कैडेट्स के द्वारा दिखाये जाते हैं तो हर एक दर्शक मन से इनके जज्बे को दिल में जगह देना नहीं भूलते. सांय को भव्य सुडान ब्लाक की उस शानदार बिल्डिंग से जो लाइटिंग शो हुआ उसमें नेशनल डिफेंस एकेडमी के इतिहास की गौरवमय गाथा और इस अकादमी से निकलने वाले सुरमाओं के शौर्य, अदम्य साहस और वीरता के अद्भुत प्रदर्शन को प्रदर्शित किया गया तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है.
मुख्य भवन जो सुडान ब्लाक के नाम से जाना जाता है. ऐतिहासकि तथ्यों के अनुसार वर्ष 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पूर्वी अफ्रिका के देश सुडान की मुक्ति के लिए भारतीय सैनिकों के बलिदान और शौर्य की याद में यह स्मारक सुडान देश के सहयोग से बनाया गया है. इस ब्लाक की वास्तुकला देखते ही बनती है. 6 अक्टूबर सन 1949 को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा इस अकादमी की नींव रखी गयी थी. 7 दिसम्बर 1954 से यहां मेजर हबीबुल्ला एवं अन्य सैन्य अधिकारियों के नेतृत्व में विधिवत रूप से यहां तीनों सेनाओं के कैडेट्स का एक साथ प्रशिक्षण प्रारम्भ हुआ. यहां का हर एक भवन इतिहास पुरुषों के अविस्मरणीय योगदान को अपने में संजोए शान से अपनी आभा को बिखेर रहे हैं. एनडीए का हरा-भरा परिसर करीब 7015 एकड़ में फैला अपनी सुन्दरता से हर एक को अभिभूत कर देता है. अनेकों वन्य जीव, प्रवासी दुर्लभ पक्षियों का भी यह प्रमुख स्थान है. खडगवासला में एक बहुत बड़ी झील भी है जिसका उपयोग नौ सेना के कैडेट्स के वाटरमैन्सशिप प्रशिक्षक के तौर पर भी किया जाता है.
खेत्रपाल परेड ग्राउण्ड मैदान में हर छः माह पश्चात होने वाली पासिंग आउट परेड कदम-कदम बढ़ाये जा खुशी के गीत……. की धुन पर एक साथ जब यहां से निकलने वाले कैडेट्स कदमताल करते हुए सलामी मंच से गुजरते हैं तो हर एक भारतवासी का सीना गर्व से चैड़ा हो जाता हैं. भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर पुष्प वर्षा करते हैं और फाइटर प्लेन इनकी इस उपलब्धि के लिए आकाश से गर्जना करते हुए अनको करतब कलाबाजियाँ दिखा कर मानो इनके बुलन्द हौसलों और इनके सपनों को चुनौती प्रस्तुत कर रहे हों.
श्रीमती शैलेन्द्री असवाल कहती हैं कि कि आयुष को बचपन से ही वर्दी पहनने का शौक रहा है जिसे बेटे की लगन कर्मठता ने कर दिखाया है.
हर वर्ष रवांई घाटी के छात्र एनडीए की परीक्षा में पास हो कर अकादमी का हिस्सा बन रहे हैं जिनमें आयुष असवाल पुत्र गुणवीर सिंह एवं श्रीमती शैलेन्द्री असवाल पुरोला जून 2019 से एनडीए खडगवासला पुणे में प्रशिक्षण पा रहे हैं. श्रीमती शैलेन्द्री असवाल कहती हैं कि कि आयुष को बचपन से ही वर्दी पहनने का शौक रहा है जिसे बेटे की लगन कर्मठता ने कर दिखाया है. अजय विक्रम सिंह बिष्ट पुत्र विनोद सिंह एवं श्रीमती आरती देवी बिष्ट ग्राम नन्दगांव जनवरी 2020. श्रीमती आरती कहती हैं कि अजय अक्सर फ्लाइंग ऑफिसर बनने के सपने देखा करता था. आज उसकी जिजीविषा, मेहनत और लगन रंग लाई और मंजिल तक पहुंचा दिया है.
(लेखक प्राध्यापक, कवि एवं साहित्यकार हैं)