- अनीता मैठाणी
ये उन दिनों की बात है जब हम बाॅम्बे में नेवी नगर, कोलाबा में रहते थे। तब मुम्बई को बाॅम्बे या बम्बई कहा जाता था।
श्यामली के आने की आहट उसके पांव में पड़े बड़े-बड़े घुंघरूओं वाले पाजेब से पिछली बिल्डिंग से ही सुनाई दे जाती थी। उसका आना आमने-सामने की बिल्डिंग में रहने वाली स्त्रियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता। श्यामली हर दिल अजीज थी, उसको देख कर लगता ग़म उसे छूकर भी नहीं गुजरा। आंखों में कोस देकर लगाया गया काला मोटा काजल, सुतवा नाक में चांदी का फूलदार लौंग, गले में चांदी का मोटा कंठहार, हाथों में बाजूबंद-कड़े और पांव में चांदी के पाजेब। टखनों से थोड़ा ऊंचे कभी काले तो कभी गहरे नीले छींटदार लहंगा चोली पहने और पांव में काले प्लास्टिक के जूते पहने महीने दो महीने में किसी भी एक दिन प्रकट हो जाती थी श्यामली।
उसके आने की ख़बर उड़ती-उड़ती सब तक पहुंच जाती। और देखते ही देखते उसके आसपास हंसी ठिठोली करती स्त्रियों की भीड़ जमा हो जाती।उसके पास कई तरह के सामन होते जैसे- काजू, बादाम, किशमिश, छुहारे, लाख की चूड़ियां और नक्काशी वाले आर्टिफिशियल गहने।
दोनों बिल्डिंगों के बच्चे अपने आस-पास रहने वाली आंटियों को खबर कर देते कि छुहारे वाली श्यामली आई है और उसके आने की ख़बर उड़ती-उड़ती सब तक पहुंच जाती। और देखते ही देखते उसके आसपास हंसी ठिठोली करती स्त्रियों की भीड़ जमा हो जाती। उसके सिर पर बड़ा—सा टोकरा होता, जिस पर कई तरह के जरूरत के सामान होते- जैसे पुरानी पेंट और सूती धोती के बदले स्टील के बर्तन, सूखे मेवे जैसे- काजू, बादाम, किशमिश, छुहारे और खड़े गरम मसाले और लाख की चूड़ियां और नक्काशी वाले आर्टिफिशियल गहने।
श्यामली कुछ बिक्री के बाद हमेशा कुछ रूपये मेरी मम्मी के पास ये कहते हुए रखवा जाती कि उसका पति जिस दिन ज्यादा रूपये देख लेता है उस दिन दारू के लिए पैसे भी ज्यादा मांगता है। मम्मी हमेशा से उसका बैंक थी।
वो जो आती तो शाम ढले तक ही उसका जाना हो पाता। मां इस बीच कम भीड़ देखकर उसके लिए खाने को कुछ ना कुछ ले आती और खूब मनुहार से उसे खाने को देते हुई कहती- ले पहले कुछ खा ले तूने कुछ खाया पिया तो होगा नहीं। धूप में गठरी उठाये दिन भर की थकी होगी। उसे जो भी खाने को दिया जाता वो उसे इतने चाव से खाती कि सब उसे खाता देख कहते- कितने प्रेम से खाती है, कितनी भली दिखती है।
हां, श्यामली सबके लिए श्यामली ही थी। बच्चे हों या बड़े; सब उसे श्यामली कहकर ही पुकारते। वो बच्चों से बहुत प्यार करती थी, जाते हुए हम सभी बच्चों को छुहारे, मुनक्के, बादाम, काजू कुछ न कुछ सबके हाथ में एकाध दाने रख जाती। इसलिए हम बच्चों को भी उसका आना खूब भाता। और जब तक वो वहां रहती तब तक किसी बच्चे के घर से उसे खेल से वापस भी नहीं बुलाया जाता, ये भी एक कारण था कि हमें उसका आना हमेशा अच्छा लगता। वो अक्सर हमारे घर पर ही बैठती थी तो हमारे हिस्से के काजू-बादाम तो हमारे घर पर ना रहने पर भी पक्के थे।
एक दिन श्यामली सवेरे-सवेरे पहुंच गयी। उसकी आवाज सुन मैं भी बाहर आ गयी। वो मम्मी से कह रही थी कि कल रात उसका पति नशे में घर वापस आ रहा था तो किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। उसे अस्पताल ले गये हैं…
श्यामली कुछ बिक्री के बाद हमेशा कुछ रूपये मेरी मम्मी के पास ये कहते हुए रखवा जाती कि उसका पति जिस दिन ज्यादा रूपये देख लेता है उस दिन दारू के लिए पैसे भी ज्यादा मांगता है। मम्मी हमेशा से उसका बैंक थी। मम्मी थोड़ा-बहुत सिलाई करती थी। एक छोटे से बटुवे में मम्मी उसके रूपये रखा करती और उस बटुवे को मशीन के अंदर। मशीन का ऊपरी हिस्सा उठाकर उसके नीचे के तख्त/ बाॅक्स के अंदर बटुवा संभाल देती।
श्यामली ने अपने काम से जितना पैसा कमाया होगा उस से ज्यादा उसने रिश्ते कमाए थे। तभी उसके पति के दुर्घटना के बारे में सुनकर आसपास की सभी स्त्रियों ने अपने-अपने बटुवे में से कुछ ना कुछ उसके पति के इलाज के लिए सहयोग किया था।
हम जितना समय बाॅम्बे रहे श्यामली लगातार आती रही। मुझे अच्छी तरह याद है एक दिन श्यामली अन्य दिनों से अलग एकदम सवेरे-सवेरे पहुंच गयी। उसकी आवाज सुन मैं भी बाहर आ गयी। वो मम्मी से कह रही थी कि कल रात उसका पति नशे में घर वापस आ रहा था तो किसी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। उसे अस्पताल ले गये हैं, उसकी हालत बहुत खराब है। उसके इलाज के लिए पैसों की जरूरत आन पड़ी इसलिए वो सवेरे सवेरे चली आई। मम्मी ने उसके रूपयों में अपनी तरफ से भी कुछ रूपये रख दिये। श्यामली मम्मी को रोकते हुए बोली- ना-ना ऐसा मत करो मैं कहां से चुकाऊंगी। मम्मी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था- तू मुझे अपनी बहन मानती है ना फिर हमारे बीच में ये चुकाने जैसा शब्द कहां से आया। तू जा उसका इलाज करवा। मैं इनसे कहकर कुछ और पैसों का इंतजाम कर दूंगी। तू बिल्कुल चिंता मत करना। ईश्वर ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा, बस तू उस पर भरोसा रख। मम्मी ने अस्पताल का नाम पूछा और डैडी के साथ मिलने आने का भी कहा।
मेरा बालमन उस समय कुछ समझा हो ना समझा हो पर आज जब कभी ये बातें याद करती हूं तो सब याद आता है और सोचती हूं श्यामली ने अपने काम से जितना पैसा कमाया होगा उस से ज्यादा उसने रिश्ते कमाए थे। तभी उसके पति के दुर्घटना के बारे में सुनकर आसपास की सभी स्त्रियों ने अपने-अपने बटुवे में से कुछ ना कुछ उसके पति के इलाज के लिए सहयोग किया था।
(लेखिका कवि, साहित्यकार एवं जागर संस्था की सचिव हैं)