- कमलेश चंद्र जोशी
“My name is Greta Thunberg. I am sixteen years old. I come from Sweden and speak on behalf of future generations. I know many of you don’t want to listen to us. You say we are just children. But we are only repeating the message of the united climate science.”
सोलह साल की ग्रेटा थनबर्ग लंदन की संसद में इस संबोधन के साथ अपने भाषण की शुरुआत करती है. उसकी किताब “No one is too small to make a difference” अलग-अलग मंचों से दिये गए उसके भाषणों का संग्रह है जो उसकी पर्यावरण को लेकर बुलंद की गई आवाज को दर्शाती है. स्कूली हड़ताल से शुरूआत करती हुई ग्रेटा स्वीडन की संसद के सामने हड़ताल के बाद दुनिया की नजर में आती है और उन तमाम बच्चों के लिए प्रेरणा बन जाती है जो अपने भविष्य और पर्यावरण को बचाने के लिए दुनिया भर की सरकारों से सवाल पूछने लगते हैं.
हमारा घर यानी की पृथ्वी पर्यावरण में बदलाव के कारण जल रही है और हम मात्र 12 वर्ष दूर हैं जिसके बाद अपनी की हुई गलतियों को हम ठीक नहीं कर पाएँगे. हमें कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करना ही होगा. यदि हम वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने में कामयाब नहीं हुए तो इसके अप्रत्याशित परिणाम हमें ही भुगतने होंगे.
वर्ड इकनॉमिक फोरम के मंच से ग्रेटा दुनिया को चेताती हुई कहती है: “Our house is on fire. According to IPCC, we are less than twelve years away from not being able to undo our mistakes. In that time unprecedented changes in all aspects of society need to have taken place-including a reduction of our CO2 emissions by at least 50 percent.”
हमारा घर यानी की पृथ्वी पर्यावरण में बदलाव के कारण जल रही है और हम मात्र 12 वर्ष दूर हैं जिसके बाद अपनी की हुई गलतियों को हम ठीक नहीं कर पाएँगे. हमें कार्बन उत्सर्जन को 50 प्रतिशत तक कम करना ही होगा. यदि हम वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने में कामयाब नहीं हुए तो इसके अप्रत्याशित परिणाम हमें ही भुगतने होंगे. और दुनिया भर की सरकारों का रूख देखते हुए वैज्ञानिकों को यही लगता है कि हम पेरिस जलवायु सम्मेलन के 5 प्रतिशत लक्ष्य को भी प्राप्त कर पाने की स्थिति में नहीं हैं.
वह दुनिया को कोसती है कि आप लोग कहते हो कि आप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हो लेकिन फिर भी उनसे उनका भविष्य छीन रहे हो. हम एक अजीब सी दुनिया में जी रहे हैं जहां अधिकतर बच्चे अपने भविष्य को बचाने के लिए अपनी शिक्षा को ही दांव पर लगा रहे हैं. वो लोग जलवायु परिवर्तन के परिणामों को सबसे ज़्यादा भुगत रहें हैं जिनका इसमें योगदान सबसे कम है.
वह दुनिया को कोसती है कि आप लोग कहते हो कि आप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हो लेकिन फिर भी उनसे उनका भविष्य छीन रहे हो. हम एक अजीब सी दुनिया में जी रहे हैं जहां अधिकतर बच्चे अपने भविष्य को बचाने के लिए अपनी शिक्षा को ही दांव पर लगा रहे हैं. वो लोग जलवायु परिवर्तन के परिणामों को सबसे ज़्यादा भुगत रहें हैं जिनका इसमें योगदान सबसे कम है. ग्रेटा आगे कहती है कि राजनेता कहते हैं दुनिया को इस संकट से बचाना बहुत मंहगा सौदा है जबकि वो खरबों यूरो सिर्फ जीवाश्म ईंधन की सब्सिडी में खर्च कर देते हैं. अधिकतर राजनेता हमसे बात नहीं करना चाहते. ठीक है, हम भी उनसे बात नहीं करना चाहते. लेकिन हम चाहते हैं कि वो वैज्ञानिकों से बात करें और उनको ध्यान से सुनें क्योंकि हम भी वही सब कह रहे हैं जो वैज्ञानिक दशकों से कहते आ रहे हैं. हम चाहते हैं कि दुनिया भर की सरकारें पेरिस समझौते व उसकी शर्तों का पालन करें.
सरकारों को आईना दिखाती ग्रेटा कहती है कि जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण के संकट से उबरने के लिए सुंदर-सुंदर शब्दों व बड़े-बड़े वादों के अलावा कुछ नहीं किया जा रहा है. जलवायु परिवर्तन से निपटना एक तरफ सबसे आसान है तो दूसरी तरफ सबसे कठिन भी है. सबसे आसान इसलिए है क्योंकि हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हमें कौन से जरूरी कदम उठाने हैं.
ग्रेटा आगे कहती है आपका घर यानी पृथ्वी बढ़ते तापमान से जल रही है और आपको इसका दर्द होना चाहिये. कुछ लोग और बहुत से राजनेता कहते हैं कि इस तरह पैनिक में आकर तो कुछ भी अच्छा नहीं होगा. लेकिन जब घर जल रहा हो तो पैनिक होना स्वाभाविक है. हम हर दिन लगभग 200 प्रजातियों की विलुप्ति देख रहे हैं और इन प्रजातियों का विलुप्त होना सामान्य से 10,000 गुना ज़्यादा है. हम जमीन की उर्वरता खो रहे हैं. जंगलों को खत्म होता देख रहे हैं. हवा में जहर घुलता महसूस कर रहे हैं. कई वन्य जीव व कीट पतंगों की प्रजातियों को विलुप्त होने के साथ ही साथ महासागरों को अम्लीय होते हुए भी देख रहे हैं. इस सबको रोकने के लिए सबको मिलकर सब कुछ बदलना होगा. ग्रेटा दुनिया भर के देशों को कहती है:
“The bigger your platform-the bigger your responsibility.”
“The bigger your carbon footprint-the bigger your moral duty.”
यानी कि जो जितना अधिक कार्बन का उत्सर्जन करता है उसकी उतनी ही अधिक जिम्मेदारी बनती है उत्सर्जन कम करने की.
सरकारों को आईना दिखाती ग्रेटा कहती है कि जलवायु परिवर्तन व पर्यावरण के संकट से उबरने के लिए सुंदर-सुंदर शब्दों व बड़े-बड़े वादों के अलावा कुछ नहीं किया जा रहा है. जलवायु परिवर्तन से निपटना एक तरफ सबसे आसान है तो दूसरी तरफ सबसे कठिन भी है. सबसे आसान इसलिए है क्योंकि हम जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हमें कौन से जरूरी कदम उठाने हैं. और उन जरूरी कदमों में सबसे महत्वपूर्ण है ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकना. सबसे कठिन इसलिए है क्योंकि आधुनिक अर्थव्यवस्थाएँ अब भी जलते जीवाश्म ईंधनों पर टिकी हुई हैं. जिस वजह से पूरा ईको सिस्टम बर्बादी की कगार पर है. फिर भी दुनिया भर के देश इस बर्बादी को नजरअंदाज कर आर्थिक विकास की होड़ में लगे हुए हैं.
पर्यावरण व क्लाइमेट चेंज को लेकर लोगों को जागरूक करते ग्रेटा थनबर्ग के तमाम भाषणों को यूट्यूब में सुना जा सकता है. जो दुनिया को एक नई उम्मीद देते हैं. 2020 में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित ग्रेटा थनबर्ग की बातों पर समय रहते दुनिया भर की सरकारों को अमल करना चाहिये और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सख़्त कदम उठाने चाहिये अन्यथा आने वाली पीढ़ियों को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे
लंदन की एक रैली में ग्रेटा कहती है कि हम अपने लिए, अपने बच्चों के लिए और अपने नाती पोतों के लिए पृथ्वी को बचाने की अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे. हम सड़कों में इसलिए नहीं हैं कि आप हमारे साथ सैल्फी ले सकें और हमें बताएँ कि हम बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. हम बच्चे ये सब इसलिए कर रहे हैं ताकि वयस्क होश में आएँ तथा जागें और अपने मतभेदों को भुलाकर इस संकट से निकलने के लिए कार्य करें. हम बच्चे ये सब इसलिए कर रहे हैं ताकि हम अपनी उम्मीदें व सपने वापस पा सकें.
पर्यावरण व क्लाइमेट चेंज को लेकर लोगों को जागरूक करते ग्रेटा थनबर्ग के तमाम भाषणों को यूट्यूब में सुना जा सकता है. जो दुनिया को एक नई उम्मीद देते हैं. 2020 में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित ग्रेटा थनबर्ग की बातों पर समय रहते दुनिया भर की सरकारों को अमल करना चाहिये और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सख़्त कदम उठाने चाहिये अन्यथा आने वाली पीढ़ियों को इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे और वो शायद ही कभी वर्तमान पीढ़ी को इस बात के लिए माफ कर पाएंगी कि अपने स्वार्थ के लिए हमने उन्हें अंधकारमय भविष्य की ओर धकेल दिया.
(लेखक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में शोधार्थी है)