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जानिए ‘मैं एक पुरुष हूं’ कहने पर क्यों ट्रोल हो रहे हैं कवि गीत चतुर्वेदी?

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जानिए ‘मैं एक पुरुष हूं’ कहने पर क्यों ट्रोल हो रहे हैं कवि गीत चतुर्वेदी?
  • हिमांतर ब्यूरो, नई दिल्ली

गीत चतुर्वेदी युवाओं के प्रिय कवि हैं. कवि एवं लेखक संदीप नाईक के शब्दों में कहें तो, ‘उजबक किस्म के लौंडो – लपेड़ो के बीच लोकप्रिय हैं.’ पर इनदिनों सोशल मीडिया पर युवा ही उनको सबसे ज्यादा ट्रोल कर रहे हैं. इसकी वजह है उनकी स्लोगननुमा कविता की चार लाइनें, जिसे लेकर उनकी ख़ूब किरकिरी हो रही है और उनको ओवर रेटिड कवि कहा जा रहा है.

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ये हैं कविता की चार लाइनें जिनको लेकर कहा जा रहा है- कोई मतलब नहीं?

गीत चतुर्वेदी 7 जून के बाद अचानक से सोशल मीडिया पर ट्रोल होने लगे. ट्रोल करने वालों में उसी उम्र के युवा ज्यादा हैं जिस उम्र के युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता है. धीरे-धीरे इस ट्रोलबाज़ी में गंभीर किस्म के कवि भी कूदे और कुछ कवि और कवयित्रियों ने गीत चतुर्वेदी की कविता की इन पंक्तियों पर ख़ुद की कविता बना डाली और मज़े लेने लगे.

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पंक्तिया जिन पर गीत ट्रोल हो रहे हैं-

उसने पूछा,

‘तुम्हें प्यार करना आता है?

मैंने कहा,

‘नहीं, मैं एक पुरुष हूं’

 

कविता की इन पंक्तियों पर because कई लोगों ने ऐतराज जताया और इनको बेमतल बताया है. सोशल मीडिया पर संदीप नाईक ने तो इसे लेकर एक लंबी टीप ही लिख डाली, जो आपको नीचे पढ़ने को मिलेगी. पत्रकार ललित फुलारा ने फेसबुक पर गीत चतुर्वेदी के पोस्टर और उनकी कविता को शेयर करते हुए लिखा-

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एक पुरुष को प्यार करना नहीं आता,

पर कविता लिखना आता है,

वो भी प्यार वाली, प्रेमिकाओं के लिए…

इस पर टिप्पणी कई सोशल because मीडिया यूजर्स की टिप्पणी आई. दीपिका ध्यानी ने गीत चतुर्वेदी की इन लाइनों को बेतुकी बताया, तो वहीं ‘हिमांतर’ के संपादक डॉक्टर प्रकाश उप्रेती ने अपनी राय रखते हुए कहा- ‘ये गन्ने की जूस की दुकान पर लगी हीरो- हीरोइनों के फोटो जैसा है, जो एक बार ध्यान तो खींचता है, लेकिन उसका कोई मतलब नहीं होता है.’

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प्रिया गौतम ने लिखा- because ‘मुझे भी इनकी कविताएं कभी समझ नहीं आईं, फिर मैंने बहुत ज्ञानी ध्यानियों, बड़े कवियों कवयित्रियों को इनकी कविता शेयर करते, साथ खड़े होकर फ़ोटो डालते देखा, तो सोचा कि मेरी बुद्धि की ही कमी हो सकती है, या कविता को लेकर नासमझी…. ये तो बड़े कवि जान पड़ते हैं…’

वरिष्ठ पत्रकार संजय because श्रीवास्तव ने लिखा- ‘मुझको भी लगता है कि ये ओवररेटेड है. कुछ ज्यादा ही लोगों ने इन्हें चढ़ाया हुआ है.

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अरविंद अरोड़ा ने लिखा-

उसने पूछा,

“क्या तुम्हारे सर में भेजा है?”

मैंने कहा,

“नहीं, मैं हिन्दी का कवि हूँ.”

कमलेश जोशी ने लिखा-

उसने पूछा

“तुम अच्छे दिन ला सकते हो?

मैंने कहा

“नहीं, मैं मोदी हूँ”

उसने पूछा

“तुम विश्वेशरैया बोल सकते हो?”

मैंने कहा

“नहीं, मैं राहुल हूँ”

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इसी टाइप की because कुछ कविता लग रही ये तो

पत्रकार because और लेखिका प्रतिमा ने जायसवाल ने तो कई पंक्तियां लिखीं-

उसने पूछा ‘क्या आज खाना आप बना दोगे?’

मैंने कहा स्विगी से ऑर्डर कर दो, मैं नौकर नहीं.

उन्होंने फिर लिखा-

उसने पूछा

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‘आज हम बाहर डिनर पर चल रहे हैं न?’

मैंने पलटकरbecause एक थप्पड़ लगाते हुए कहा

‘अप्रेजल में 1 रेटिंग मिली है.’

उसने सुनते ही रात की बची because दाल मेरे मुंह पर कटोरा समेत दे मारी.

मैं जवाब मैं मुस्कुरा दिया, because क्योंकि मुझे अचानक याद आया, दूसरे कमरे में सासू मां सो रही है और एक और एक ग्यारह होते हैं.

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मैंने खुद को मन ही मन समझाया.

प्रेम की चरम सीमा यही होती है.

संजीदा कवयित्री मंजूषा नेगी because पांडे ने लिखा- जब अनुवाद बहुतायत में होता है, तो आप धीरे-धीरे इस बात पर दृढ़ विश्वास करने लगते हैं कि जो कुछ भी लिखेंगे कोई भी लाइन उठाकर लिख देंगे वह काम कर जाएगी.

अब पढ़िये कवि और लेख संदीप नाईक की टीप-

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गीत एक अच्छे व्यक्ति हो सकते है कवि है या नही – मालूम नही , पर ओव्हर रेटेड जरूर है और कविता लिखते है या कुछ और नही पता, मुझे कभी समझ नहीं आया कि स्लोगन because कब से कविता हो गये और अनुवाद की बात सही कही किसी ने, जब आप बहुतायत में अनुवाद करते हो तो आप भी धीरे से वही से बहुत कुछ लेकर मेड इन इंडिया बना देते हो मतलब अपना माल …….और खपत शुरू…

दो चार स्लोगन नुमा पंक्तियाँ कविता नही होती कम से कम, और मै तो कवि हूँ ही नही इसलिए कह सकता हूँ , हाँ कविता साधने और लिखने की कोशिश की, अपने ही मित्रों ने because दुत्कार दिया जो खुद दो कौड़ी के भी नही है, इन संगठित कवियों के कुनबे में जगह ना मिली और शायद गीत को भी कभी ना मिलें –  इसलिए वो उजबक किस्म के लौंडो – लपेड़ो के बीच लोकप्रिय है – प्रेम और अतिभावुक स्लोगन लिखकर, बाकी तो खुदा जानता है सब कुछ, दो बार पुस्तकें भी शर्मा शर्मी में मंगवाई, गिफ्ट भी मित्रों को पर अब तौबा, अब हिम्मत नही करूंगा कभी भी…

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पटना और बिहार में गीत के आयोजनों की खबर पु्ष्य मित्र  ने अभी लिखी है पर उस दिन जब भास्कर में साक्षात्कार एक करीबी मित्र लेने वाला था, बाद में पूछा तो उस मित्र ने बताया कि “बड़े लटके झटके है गीत के, बातचीत करते हुए जब आधा घँटा हो गया तो गीत की कोई खूबसूरत सी मैनेजर आई और बोली कि समय ज्यादा हो because गया है, आपको आधा घँटा ही दिया था, दूसरे लोग है पंक्ति में, पर जब बाहर गया तो कोई नही था”-  पता नही, ये कवि लोग कौन सी दुनिया मे रहते है, भारत अभी इतना महान नही बना कि लेखक कवियों के इवेंट मनाए जाए और आयोजन हो, हां आप किसी केंद्रीय विवि में प्रोफेसर हो और शोध करवाने या नौकरी दिलवाने की औकात रखते हो- तो जहाँ जायेंगे वहाँ छर्रे जरूर इकठ्ठे हो जाएंगे या पुराने छात्र पर कवियों की राज्य यात्रा हो और पूरे राज्य के लोग इसमें शरीक हो- असम्भव है अभी, दुनिया हमने भी देखी है गुरु, झाँसे बाजी से बाज आ जाओ सब लोग…

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कोई मर जाये तो फेसबुक जरूर रंगीन हो उठता है यह हाल ही के वर्षों में देखा है, क्योकि पहले तो खबर भी नही मिलती थी, और अब तो सर्दी, खांसी, टट्टी, पेशाब, जुलाब से लेकर क्या निगला और क्या उगला की खबर बापड़े छर्रे दे ही देते है फेसबुक पर, बाकी कुछ और बोलना तो सब पाप ही है – शोध की डिग्री लेनी है मास्टरी करनी है, फेलोशिप जुगाड़नी है, शोध पत्र छपवाना है और फिर गाइड से बड़ा तो भगवान भी नही ससुरा… यह बात सच है कि अनुवाद करते – because करते आप भी किसी की नही, बल्कि सबकी शैली अपना लेते है और मिक्स वेज बनाकर अपनी दुकान चमका लेते है और यह सबके साथ है ; 1987 – 89 में अंग्रेजी में एमए करने के बाद खूब अनुवाद किये कविताओं के, नईदुनिया से लेकर दीगर पत्रिकाओं में छपे भी – पर फिर लगा कि महाराज आप तो नकलची हो गए, खुद का मौलिक लिखा भी ससुरा अनुवाद लगने लगा, सम्पादक लिखते जवाब में कि “आपने अनुवाद में मूल कवि का नाम लिखा नही, कृपया भेजें ” – धत साला, अनुवाद का काम ही छोड़ दिया.

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बहरहाल, यह पोस्ट किसी को आहत करने के लिए नही आत्मालोचन के लिए है – लेखक, कवियों के लिए, छर्रों के लिए जो तथाकथित  पिरेम, मुहब्बत, जुल्फों, घटाओं, मस्सों, बवासीर, भगन्दर और फेफड़ों, लिवर और दिल – दिमाग और उनके  बिस्तर से लेकर अंडरवियर के चित्रों पर जान लूटा देते हो और गम्भीर रोगों पर स्लोगन लिखने वाले कवियों कहानीकारों पर समय और रुपया लुटाते है और उनके घटिया प्रेम कविताओं के संग्रह खरीद कर अपनी मूल भाषा, वर्तनी, because समझ, संस्कार और विचारधारा खत्म करते है – इससे बेहतर है ₹ 150-200 के बादाम खा लो – इम्युनिटी बढ़ेगी – जिंदा रहें तो “इत गीत कविता कहानी सोरठा छंद मुक्तक ग़ज़ल” भी लिख लोगे, और हां अपने शील, अश्लील चित्र और गूगल से कॉपी की हुई पेंटिंग चैंपना मत भूलना हर पोस्ट के साथ – याद रहें हर पोस्ट में थोबड़ा दिखना जरूरी है, हर पोस्ट में स्कैंडल नही तो कुछ नही रे बाबा, इसलिए विवाद में रहो और इवेंट में रहो,  दुआ यह है कि आपका जीवन खूबसूरत पीआर मैनेजरों से भरा रहें.

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