वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

  • ललित फुलारा

टोकरी और भकार- दोनों ही छूट गया. बुरांश और फ्योली भी आंखों से ओझल हो गई. बस स्मृतियां हैं जिन्हें ईजा, आंखों के आगे उकेर देती है. देहरी पर सुबह ही फूल रख दिए गए हैं. ईजा के साथ-साथ हम because भी बचपन में लौट चले हैं. तीनों भाई-बहन के हाथों में टोकरी है.

टोकरी में बुरांश, फ्योली, आड़ू so और सरसों के फूल.

गुड़ की ढेली और मुट्ठी भर चावल. गोद में परिवार में जन्मा नया बच्चा जिसकी पहली फूलदेई है. तलबाखई से लेकर मलबाखई तक हर घर में हम बच्चों की कितनी आवोभगत हो रही है. तन-मन में स्फूर्ती but भरती वसंत की ठंडी हवा में उल्लासित हमारा मन, अठन्नी और चवन्नी की गिनती के साथ ही गुड़ के ढेले में रमा हुआ है. पैसों की खनखनाहट के साथ ही हमारे सपने भी खनक रहे हैं. बहन के बालों में फ्योली का फूल लहलहा रहा है. भाई का मन गुड़ और मिठाई में रमा हुआ है.

हर धैली पर फ्योली का फूल चढ़ाकर त्योहार की शुभकामना देता हमारा so उल्लासित मन अपनी टोकरी आगे कर गुनगुना रहा है- फूलदेई छम्मादेई

जतुक द्येला उतुक सई
तुम्हर भकार भरी जओ
हमर टोकरी

फूलदई ही है जिसने बचपन से ही हमें रचनात्मकता because और संतुष्टि का पाठ पढ़ाया. अपने साथ ही दूसरों की सुख-समृद्धि की कामना की भावना जगाई. प्रकृति के साथ इंसानी रिश्ते का पाठ पढ़ाया. हाथ जोड़ फूल चुनने की अनुमति मांगने की शिक्षा सिखाई.

हमारे बचपन में फूलदेई पुराने because वक्त से थोड़ा बदल गई थी

पहले जब चावलों का अभाव होता था तो डलिया में झुंगर रखा जाता था. because जो बेहद गरीब होते थे- अगर उनके घर में झुंगर और गुड़ का भी अभाव है तो वह टोकरी में प्रतिकात्मक तौर पर कुछ न कुछ जरूर रखते थे.

हमारे बचपन में फूलदेई में खाजे मिलने लगे थे. गुड़ के साथ ही टोकरी में because मिठाई और बढ़िया पकवान भी रखे जाने लगे थे. खीर मिलने लगी थी.

दौर बदला फूलदेई भी because बदल गई.

टोकरी तो नहीं है लेकिन घर की because धैली पर फूल जरूर रखे हुए हैं.

ईजा छोटे भाई के साथ मिलकर पकवान बना रही है- और साथ ही मैं because अपने उन दिनों को याद कर रही है जब नानी हर फूलदेई पर पुवे बनाकर बेटे को भेटने आ जाती थी. साथ ही में जंगल से लड़की बिनकर भी ले आती थी. हमारा आज भी प्रकृति से ही संघर्ष है. व्यक्ति से संघर्ष की शिक्षा तो हमें मिली ही नहीं.. आवो वसंत सुकुमार स्वागत करें अपार.

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