एक गवेषणात्मक विवेचना
- डॉ. मोहन चंद तिवारी
न्याय देवता गोरिल से सम्बंधित चर्चा के संदर्भ में प्रायः यह जिज्ञासा प्रकट की जाती रही है कि गोरिल के पिता का नाम हालराई था अथवा झालराई? यह जिज्ञासा इसलिए भी स्वाभाविक है कि मैंने प्रो.हरि नारायण दीक्षित जी द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीग्वल्लदेवचरितम्’ के संदर्भ में जो समालोचनात्मक चर्चा चलाई है,उसके अनुसार ग्वेलदेवता के पिता
का नाम हालराय ही है. किन्तु सामान्य रूप से देखा जाए तो ग्वेलदेवता के पिता के सम्बंध में दोनों प्रकार की मान्यताएं लोक प्रचलन में हैं. कहीं जागर कथाओं में ग्वेल देवता के पिता का नाम झालराई तो कहीं हालराई गाया जाता है. ग्वेलदेवता विषयक लिखित साहित्य में भी दो तरह के संस्करण प्रचलित हैं.कहीं झालराई को तो कहीं हालराई को गवेल्ज्यू का पिता कहा गया है.नेता जी
इतिहासकार ई टी एटकिंसन, तारादत्त गैरोला, डा. देवसिंह पोखरिया, डा.लक्ष्मण सिंह मनराल आदि विद्वानों ने ग्वेलदेवता के पिता का नाम हालराई बताया है और झालराई उनके दादा थे.
कुमाऊंनी इतिहास और साहित्यकार विद्वानों की इसी मान्यता के आधार पर शायद प्रो. हरिनारायण दीक्षित जी ने भी अपने ग्रंथ ‘श्रीग्वल्लदेवचरितम्’ महाकाव्य में ग्वेलदेवता के पिता का नाम हालराय बताया है. प्रो. दीक्षित ने ग्वेलदेवता के चार पीढ़ियों के वंशक्रम को तलराय > झालराय >हालराय> इस क्रम में प्रस्तुत किया है. यानी तलराय के पुत्र हुए झालराय और झालराय के पुत्र हुए हालराय और हालराय ने ही सात रानियों से संतान न होने के कारण आठवीं रानी कालिंका से विवाह किया जिससे बाला गोरिया की उत्पत्ति हुई-नेता जी
“पुरा कुर्मांचले पुण्ये धूमाकोटाभिधे पुरे.
हालरायाभिधो भूपो बभूव बहुविश्रुतः..
तलरायस्य पौत्रोsसौ झालरायस्य चात्मजः.
क्रमप्राप्तं निजं राज्यं पालयामास धर्म्मवित्..”
–श्रीग्वल्लदेवचरितम्,3.2-3
नेता जी
वर्त्तमान में मेरे पास कुमाऊँ विश्वविद्यालय,के प्रो.देव सिंह पोखरिया की पुस्तक ‘कुमाऊँनी संस्कृति’, अल्मोड़ा बुक डिपो, (पृष्ठ 23) और जगदीश्वरी प्रसाद की पुस्तक ‘कुमाऊँ के देवालय’,
उत्तराखंड सेवा निधि, (पृ.70) के प्रामाणिक सन्दर्भ हैं, जिन्होंने ग्वेलदेवता के पिता का नाम हालराई (हालराय) और दादा का नाम झालराई बताया है. इस संदर्भ में, मैं डा. लक्ष्मण सिंह मनराल की पुस्तक ‘लखन पुर के कत्यूर’ का भी यहां उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं जिन्होंने गोरिल के पिता का नाम राजा हालराय बताया और उनकी ऐतिहासिक दृष्टि से पहचान धूमाकोट के गढ़पति कालूनाथ से की है. डा. मनराल ने एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी दी है कि हालराय को कत्यूरी वंश की जिया रानी की बहन ब्याही गई थी.नेता जी
यहां में यह भी स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैंने ग्वेलदेवता से सम्बंधित अपने लेखों में संशयात्मक स्थिति कहीं नहीं रखी है,जहां जिस लेखक ने जो कहा वही बताया है. ब्रजेन्द्र लाल शाह की ‘श्रीगोलूत्रिचालिसा’ और अन्य विद्वानों द्वारा चर्चित कथा में मैंने ग्वेलदेवता के पिता का नाम झालराई ही लिखा है. इस बीच कुछ और रचनाओं का भी अध्ययन किया है.
कीर्त्ति वल्लभ शक्टा के ‘न्यायमूर्त्ति गोरल’ महाकाव्य में गोरिल के पिता का नाम हालराय कहा गया है.शक्टा जी न्यायदेवता गोरिल के वंशवृक्ष का परिचय देते हुए कहते हैं कि समूचे कुमाऊं में धूमाकोट की राजधानी प्रसिद्ध थी और उसके राजा हालराय हुए. उनके पिता का नाम झालराय तथा बूबू (दादा) का नाम तल्लराय था-
नेता जी
“पैले धूमाकोट नामै कि प्यारी,
राजा की यो राजधानी विशेष.
जै की श्री हो हालराये क् नाम,
फैली वी की कीर्ति सार् रै कुमूँ मैं...”
“बाबा जैका झालरायै छि नाम,
बूबू छया हो धर्मकारी प्रवीण.
संज्ञा जै की तल्लरायै कि भै हो,
नाती वी को वंशधारी प्रसिद्ध...”
–न्यायमूर्ति गोरल, 3.1-2
नेता जी
कौस्तुभानंद चन्दोला द्वारा न्यायदेवता ग्वेल पर
रचित ‘संन्यासी योद्धा’ शीर्षक से लिखे गए उपन्यास के अनुसार भी गोरिल के पिता हालुराई ही कहे गए हैं.इस उपन्यास का एक प्रसंग उद्धृत है-नेता जी
‘देवहरू ने एक दृष्टि सब पर डाली
और प्रसन्न मुद्रा में कहा. ‘राजन् हालुराई, रानी कलिंगा! तुमने विगत वर्षों में कई कष्ट उठाये हैं; अब तुम दोनों की तपस्या पूर्ण हो गयी है.जिसका प्रतिफल तुम्हें व तुम्हारे राज्य को-प्रतापी पुत्र राजकुमार वीरगोरिया के रूप में प्राप्त हो चुका है.’ (संन्यासी योद्धा,प्रकरण,60)नेता जी
दरअसल, जनश्रुतियों पर आधारित लोकगाथाओं के बारे में इस प्रकार की स्थानीय भिन्नताएं प्रायः देखने में आती ही है. इस सम्बंध में कुमाऊं प्रदेश में प्रचलित लोकमान्यताओं का गवेषणात्मक
और तुलनात्मक सर्वेक्षण किया जाए तो विभिन्न प्रकार की विविधताएं सामने आती हैं. उदाहरण के लिए गोरिल का जन्मस्थान सोर पिथौरागढ़ की गाथाओं में हलराइकोट (बांसुलीसेरा) बताया गया है. पूर्वी अल्मोड़ा की गोरिल गाथाओं में ग्वालूरीकोट और पाली पछाऊं की गाथाओं में गढ़ चम्पावत या धूमाकोट कहा जाता है.नेता जी
गोरिल के पिता को कहीं हलराई, हालराई, हालुराई तो पाली पछाऊं और पूर्वी अल्मोड़ा की गाथाओं में झालराई कहा गया है.रंगोड़, लखनपुर की गाथाओं में झालाराई के पिता का नाम हालाराई
गाया जाता है. गोरिल की माता का नाम यद्यपि सभी गाथाओं में कालिका अथवा कालिंका रानी बताया गया है तथापि ‘सोर’ की गाथाओं में कालिका रानी को काला पहाड़ के गरुवा राजा की पुत्री बताया गया है. सालम, रंगोड़ की गाथाओं में कालिंका रानी को पंचनाम देवताओं की ‘फूलकन्या’ बताया गया है.’फूलकन्या’ उस कन्या को कहते हैं जो कुंवारी कन्या रजस्वला न हुई हो. सभी गाथाओं में कालिंका की सात सौतें बताई जाती हैं. कालिंका आठवीं रानी के रूप में आती है.नेता जी
इस प्रकार न्यायदेवता ग्वेलज्यू की उत्पत्ति, उनका जन्मस्थान, उनका अस्तित्वकाल और उनके पूर्वजों का इतिहास आज भी शोध के विषय बने हुए हैं. इस सम्बंध में ग्वेल देवता से
सम्बंधित सभी प्रकार की स्थानीय लोक गाथाओं के संग्रहण, संवर्धन और शोधपूर्ण अध्ययन की बहुत आवश्यकता है ताकि जन-जन को न्याय प्रदान करने वाले न्याय देवता के इस रहस्यमय देवचरित्र का वास्तविक स्वरूप और तथ्य सामने आ सकें.नेता जी
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के
रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)