कहानी
- फकीरा सिंह चौहान ‘स्नेही’
एक बार एक बालक ने अपनी मां से पूछा “मां” तुम क्यों रो रही हो? मां ने बड़े करूण भाव से कहा, “बेटा तू अभी नादान है. तू मेरे हृदय की पीड़ा को अभी महसूस नहीं कर सकता है. “बालक ने अनायास ही पूछा, “आखिर क्यों मां?” मां ने स्नेह पूर्वक कहा, ‘बेटा तूझे अभी अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं है, क्योंकि तेरे अंदर अभी अक्ल पैदा नहीं हुई है.” जिज्ञासावंश बालक ने पूछा, “अक्ल कहां से पैदा होती है मां?” माता निरुत्तर हो गई.
बालक की जिज्ञासा इस प्रश्न के प्रति बढ़ती गई कि आखिर अक्ल कहां से पैदा होती है? एक दिन बालक अचानक राजा के बगीचे में चला गया. जहां राजा सुबह के समय भ्रमण हेतु आया करता था. बालक ने नम्रता पूर्वक राजा से पूछा, “महाराज! आप हमारे राजा है. आपके पास हर समस्या का समाधान है तथा हर प्रश्न का उत्तर है. यदि आज्ञा हो तो मैं एक प्रश्न पूछूं? राजा ने कहा , अवश्य बालक कहो, “तुम्हारा क्या प्रश्न है?” आदर पूर्वक बालक ने कहा, “अक्ल कहां से पैदा होती है? “अक्ल!” “जी महाराज!” राजा अपनी मनमति को टटोलता है, परंतु तत्काल कोई उत्तर नहीं सूझता है. राजा ने गंभीर होकर कहा, “बालक मैं कल इसी बाग में आकर तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा.” राजा ने राजभवन की ओर प्रस्थान किया तथा तत्काल वजीर को राजभवन में बुलाकर यह हुक्म दिया कि यथाशीघ्र इस प्रश्न का हल निकालो कि “अक्ल कहां से पैदा होती है.” राजा के हुक्म की तामील करने हेतु वजीर प्रश्न की खोज में अपनी बुद्धिमता का कौशल दिखाने मे जुट गया. वजीर को हर हाल में प्रातः काल से पूर्व राजा के समक्ष उत्तर देना था. रात के वीराने में वजीर की बेचैनी बढ़ती गई, विचारों के जंगल में भटकते हुए वह उस दिशा की ओर बढ़ने लगा जहां उस बालक का निवास स्थान था. वजीर को निवास के पास देखकर बालक ने विनम्रता से आने का कारण पूछा. पसीने की उमस पौछते हुए वजीर ने कहा, “मेरी परेशानी तथा इधर-उधर भटकने का कारण मेरा एक प्रश्न है जिसकी उम्मीद लेकर मैं यहां पहुंचा हूं.”बालक ने आदर भाव से पूछा, “कहिए वजीर जी, क्या मैं आपकी सहायता कर सकता हूं? वजीर ने अपना प्रश्न दुहराया, “मेरा प्रश्न है कि अक्ल कहां से पैदा होती है?” कुछ क्षण सोचकर बालक ने कहा, “वजीर जी, मेरी आपसे एक शर्त है, यदि स्वीकार हो तो मैं प्रश्न का हल बताने को तैयार हूं. “कहो, तुम्हारी क्या शर्त है. वजीर ने पूछा, बालक ने कहा, “मेरी यह शर्त है, कि आज के बाद तुम कभी किसी भी प्रश्न का हल पूछने इधर नहीं आओगे. “बोलो स्वीकार है? “स्वीकार है. “वजीर ने सिर हिला कर स्वीकृति दी! बालक ने कहा, “तुम्हारे प्रश्न का उत्तर यह है कि “सौ ठोकर खाकर एक अक्ल पैदा होती है.” यही अक्ल की पैदाइश है.” उत्तर सुनकर वजीर खुशी से ऐसे खिल उठा जैसे सूरजमुखी का फूल सूर्य की रोशनी से खिल उठता है. बालक को धन्यवाद कर वजीर तुरंत राजभवन की ओर चल पड़ा. अर्धरात्रि में राज दरबार में प्रवेश किया. जहां राजा विचार मुद्रा में थे. वजीर की उत्सुकता भांप कर राजा ने पूछा, “कहिए वजीर जी, प्रश्न का कोई हल निकाला?” खुश होकर वजीर ने कहा, “महाराज! मेरे दिमाग ने इसका हल ढूंढ लिया है. आदेश हो तो बताऊं?” “अवश्य” राजा ने कहा.” “महाराज! “सौ ठोकर खाकर एक अक्ल पैदा होती है. यही अक्ल की पैदाइश है.” राजा वजीर के उत्तर से संतुष्ट हुआ तथा प्रात काल भ्रमण हेतु बाग की ओर निकल पड़ा. बाग में बालक से भेंट हुई. वादे के अनुसार बालक ने अपने प्रश्न का उत्तर राजा से पूछा. राजा स्नेहभाव से कहता है. बालक “तुम्हारे प्रश्न का उत्तर यह है कि सौ ठोकर खाकर एक अकल पैदा होती है.” उत्तर सुनकर बालक ने कहा, महाराज! मेरा एक प्रश्न और है कि अक्ल की खुराक होती क्या है? “अक्ल की खुराक” जी हां, “महाराज अक्ल की खुराक.” राजा ने कहा, “मैं कल फिर इसी बाग में आकर तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य दूंगा. “राजा प्रश्न को सुनकर असमजस्य में पड़ गया.
राजा तत्काल राजभवन की ओर अग्रसर हुआ तथा राज दरबार में वजीर को बुलाकर हुक्म दिया कि यथाशीघ्र सभी मंत्रियों से विचार-विमर्श करके बताओ कि अक्ल की खुराक होती क्या है? वजीर के चेहरे पर परेशानी की लकीरे उभरने लगी, क्योंकि राजा के हुक्म को पूरा ना करना खुद को अंधे कुएं की ओर धकेलना था, और पुन: उस बालक के पास जाना भी अपमान की आग में झुलसने जैसा था. कोई भी उपाय ना समझने पर अंत में वजीर उसी बालक के पास जाता है, ओर ग्लानि भाव से कहता है. “क्षमा करो बालक, मैं बहुत शर्मिंदा तथा विवश हूं . “मैं तुम्हारी शर्त का पालन न कर सका.” तेवर दिखाकर बालक ने कहा, “शर्मिंदगी नहीं वजीर जी, यह आपकी कृतज्ञ्नता है.” हाथ जोड़कर वजीर ने क्षमा की याचना करते हुए कहा, “बालक मेरे केवल एक और प्रश्न का उत्तर बता दीजिए, मैं जीवन भर आपकी शरण में नहीं आऊंगा. मैं प्रतिज्ञा करता हूं. कठोर स्वर में बालक बोला “मुझे विश्वास तो नहीं है परंतु यदि तुम्हारा यह अंतिम निर्णय है तो मैं बताने को तैयार हूं. बताओ क्या प्रश्न है?” वजीर बोला, प्रश्न है कि अक्ल की खुराक होती क्या है? तनिक क्षण विचार करके बालक ने कहा, “अक्ल की खुराक है, कम खाना,ओर गम सहना.” अनभिज्ञता वंश बजीर ने कहा,” इसे स्पष्ट करके बताओ.” बालक ने कहा, ” कम खाने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को यदि चार रोटी की भूख है तो उसे तीन रोटी खानी चाहिए. इससे स्वास्थ्य तंदुरुस्त रहेगा, रोग से मुक्ति मिलेगी, अक्ल में वृद्धि होगी. गम सहने का अभिप्राय है कि इंसान के अंदर यदि सहनशीलता और आत्म संयम है, तो वह नियत समय पर उचित निर्णय ले सकता है तथा सफलता को प्राप्त कर सकता है. यही अक्ल को क्रियान्वित करने की खुराक है.”
वजीर उत्तर सुनकर अभिलंब राजदरबार पहुंचा तथा राजा को प्रश्न का उत्तर बताया. राजा वजीर का उत्तर सुनकर उसकी प्रशंसा करने लगा तथा प्रात:काल होने पर फूलो के बाग में भ्रमण के लिए पहुंचा. बालक के पूछने पर राजा ने पूर्ण विवरण सहित प्रश्न का उत्तर दिया. बालक ने विनय पूर्वक राजा से कहा, ” महाराज! आप एक बुद्धिमान ओर न्याय प्रिय राजा है.” मेरा आपसे एक अंतिम प्रश्न है कि “अक्ल करती क्या है?” अचंभित होकर राजा बालक के चेहरे को गौर से निहारता है. फिर कहता है, ” इस प्रश्न का उत्तर में तुम्हें अपने राज दरबार में दूंगा. तुम कल दरबार में उपस्थित हो जाना.” “जो आज्ञा महाराज” नतमस्तक होकर का बालक ने कहा. राजा की बेचैनी बढ़ती गई, आशा की किरण केवल एक ही वजीर था. राजा ने वजीर को दरबार में बुलाकर उसके विवेक की तारीफ करते हुए कहा, “वजीर जी, यह बताओ कि अक्ल करती क्या है?” वजीर के मुख पर परेशानी के बादल उमड़ पड़े . परंतु राजा के हुक्म का पालन न करना खुद को फांसी पर चढ़ाना था, तथा बालक को मनाना भी बिगड़े हाथी को वश में करने के समान था. आखिरकार वजीर पुन: बालक की शरण में जाता है . आत्मग्लानि से सराबोर होकर बालक से कहता है, “बालक, मैं तुम्हारी सजा भुगतने को तैयार हूं. तुम जो चाहो मुझे सजा दे सकते हो, परंतु मेरे इस अंतिम प्रश्न का जवाब बता दीजिए. “बालक ने कहा, “बेशक तुम सजा के काबिल हो, क्योंकि तुम मेरी नजरों से गिर चुके हो, तुम्हारी सजा यह है कि तुम मुझे अपने कंधों पर उठाकर राजा के पास ले चलो जब तक मैं प्रश्न का उत्तर न दूं, तुम मुझे अपने कंधों से नीचे नहीं उतारोगे, बोलो मंजूर है?” परिस्थिति का दास वजीर सब कुछ स्वीकार करता है. बालक को कंधे पर उठाकर वजीर पसीने से लतपथ राज दरबार में प्रवेश करता है. वजीर के कंधों पर बालक को देखकर राजा चौंक जाता है. बालक नम्रता पूर्वक राजा से कहता है. “महाराज! क्या आप मेरे प्रश्न का उत्तर मुझे देंगे? “राजा ने कहा, ” बालक, तुम बुद्धिमान पिता के बेटे प्रतीत होते हो, तुम ही इस प्रश्न का हल बता दो. बालक ने कहा, “महाराज, “अक्ल अच्छे -बुरे की पहचान कराती है. खून पसीना एक करती है, मुझमे यदि अक्ल न होती तो आज मैं इस स्वार्थी वजीर के कंधे पर बैठ कर इसका खून पसीना एक नहीं कर सकता था. अक्ल इसी तरह अच्छे बुरे की पहचान करती है.”
राजा उत्तर सुनकर बहुत खुश हुआ. बालक को वजीर के कंधे से उतार कर अपने पास बैठाया तथा भरी सभा में यह घोषणा कर दी कि आज से हमारा वजीर यह बुद्धिमान बालक होगा. राजा ने बालक को एक सुसज्जित हाथी पर बैठा कर उसके घर तक विदा किया. माता अपने लड़के को हाथी पर सवार होते देखकर भावविभोर हो उठी, तथा बालक को गले से लगाया. बालक ने पुनः माता से रोने के कारण को पूछा तो माता ने कहा, “बेटा, तेरे पिता इसी राजा के वजीर थे. मृत्यु उपरांत जब भी मैं इस हाथी पर किसी और वजीर को देखती थी, तो मेरा हृदय रो पड़ता था. मैं सोचती थी कि कभी वो दिन भी होगा जब मेरा लड़का राजा का वजीर बनकर इस हाथी पर बैठकर घर आएगा. आज मेरा सपना तूने साकार कर दिया है.
(लेखक जौनसार-बावर के मशहूर गायक कलाकार एवं रचनाकार हैं. इनके गीत आकाशबाणी लखनऊ, नजीबावाद एवं देहरादून दूरदर्शन पर प्रसारित होते रहते हैं. कई लेख, कविताएं व कहानियां देश कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. वर्तमान में भारत सरकार के ऱक्षा मत्रांलय लखनऊ में उच्च पद पर कार्यरत हैं)