समूचे विश्व को सम्मोहित किया है गीता के मानवतावादी चिंतन ने

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गीता जयंती पर विशेष

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी    

भारतीय कालगणना के because अनुसार मार्गशीष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को प्रतिवर्ष गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गीता जयंती की 5157वीं वर्षगांठ 25 दिसंबर 2020 को मनाई जा रही है. ब्रह्मपुराण के अनुसार, द्वापर युग में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी दिन गीता का उपदेश दिया था. गीता का उपदेश मोह का क्षय करने के लिए है, इसीलिए because गीता जयंती के दिन पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा गया है. यह भी दुर्लभ संयोग ही है कि आज ईसा मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस पर्व का बड़ा दिन भी है. आज के दिन ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ की सुगन्धित पुष्पों द्वारा पूजा अर्चना कर गीता का पाठ करना चाहिए.गीता का पाठ आरंभ करने से पूर्व निम्न श्लोक को भावार्थ सहित पढ़कर श्रीहरिविष्णु का ध्यान करना चाहिए-

एकादशी

“शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्.
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्..”

भावार्थ : जिनकी आकृति because अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, because अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं,जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं,जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं,जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ.

एकादशी

इस प्रकार विधिपूर्वक गीता व भगवान विष्णु की पूजा करने से  मनुष्य की पाप कर्मो से निवृत्ति, मुक्ति की ओर प्रवृत्ति तथा शुभ कर्मफलों की प्राप्ति होती है. गीता जयंती के दिन because श्री विष्णु जी का पूजन करने से उपवासक को आत्मिक शांति व ज्ञान की प्राप्ति होती है. महाभारत के समय श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए गीता का प्रादुर्भाव होता है.इस ग्रंथ में अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य है.

एकादशी

गीता जयंती हमें उस इतिहास प्रसिद्ध because घटना की याद दिलाती है जब कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन अपने सगे-संबंध‍ियों को युद्ध के मैदान में देखकर बुरी तरह मोहग्रस्त और भयभीत हो कर युद्ध से पलायन करता हुआ रथ पर बैठ जाता है. अर्जुन कृष्ण से कहता है,”मैं युद्ध नहीं करूंगा. मैं पूज्य गुरुजनों तथा संबंध‍ियों को मार कर राज्य का सुख भोगने के बजाय भिक्षान्न खाकर जीवन धारण करना श्रेयस्कर मानता हूं.”

एकादशी

अर्जुन का युद्धक्षेत्र में ऐसा गैर जिम्मेदाराना कर्त्तव्यविमुख व्यवहार देखकर सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके कर्तव्य, कर्म और सामाजिक दायित्वों के बारे में बताया. because उन्‍होंने आत्मा-परमात्मा से लेकर धर्म-कर्म से जुड़ी अर्जुन की हर शंका का निदान किया.भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ यह शंका समाधान सम्बंधी संवाद ही श्रीमद्भगवद्गीता है.गीता के उपदेश सिर्फ धार्मिक उपदेश नहीं बल्‍कि यह हमें जीवन जीने का व्यवहारिक तरीका भी सिखाते हैं. अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर भगवान कृष्ण ने कर्म का महत्त्व स्थापित किया जो प्रत्येक युग में because और प्रत्येक धर्मावलम्बी के लिए उपयोगी है. यही कारण है कि गीता ने विश्व के प्रत्येक धर्मावलम्बी को अपनी ओर आकर्षित किया है.

एकादशी

भारत एक ऐसा सौभाग्यशाली राष्ट्र है because जिसके पास महाभारत और गीता जैसा अभेद्य रक्षाकवच ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ ने न केवल हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रमणों से देश की रक्षा की है बल्कि इसकी प्रेरणा से भारतीय सेना हर युग में शौर्य तथा पराक्रम की नवीन ऊर्जा प्राप्त करती रही है

एकादशी

कर्म की अवधारणा को अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही थी. विचारों को तर्क के धरातल पर बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है. because संसार के गूढ़ ज्ञान तथा आत्मा परमात्मा जैसे गहन विषयों को भी सरल और सहज रूप से समझाया गया है. गीता में अर्जुन के मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने गीता में एक सद्गुरु की भूमिका का निर्वाह किया है.

एकादशी

भारत एक ऐसा सौभाग्यशाली राष्ट्र है जिसके पास महाभारत और गीता जैसा अभेद्य रक्षाकवच ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ ने न केवल हजारों वर्षों तक विदेशी आक्रमणों से देश की रक्षा की है because बल्कि इसकी प्रेरणा से भारतीय सेना हर युग में शौर्य तथा पराक्रम की नवीन ऊर्जा प्राप्त करती रही है. भारत के प्रधानमन्त्री चाहे लालबहादुर शास्त्री रहे हों, इन्दिरा गांधी हों अथवा अटल बिहारी वाजपेयी सभी ने महाभारत के “अर्जुनस्य प्रतिज्ञे द्वे न दैन्यं न पलायनम्” इस प्रतिज्ञा वाक्य से प्रेरणा लेकर चीन हो या पाकिस्तान यहां तक कि अमेरिका को भी कूटनीतिक जवाब देने की नीति अपनाई है.

एकादशी

कारगिल की रणभूमि में मेजर पद्यपाणि ने because महाभारत तथा गीता से ही प्रेरणा लेकर वीरता से लड़ते हुए मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था. भारतीय सेना में आज भी अनेक जवान हैं जो महाभारत से प्रेरणा लेकर रणभूमि में वीरतापूर्ण युद्ध कौशल because का प्रदर्शन करते हैं तथा गीता के द्वारा दिए गए सन्देश “हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्” (गीता, 2-37) की भावना से देश और राष्ट्र की रक्षा के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति भी दे देते हैं.

एकादशी

विश्व के सब धर्मों को प्रेरित because करने वाला गीता का  मानवतावादी कालजयी चिन्तन हर युग में धार्मिक सद्भाव और सामाजिक समरसता की भावना को प्रोत्साहित करता आया है. यही कारण है कि विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है. because हर भाषा के विद्वानों और चिन्तकों ने गीता के तत्त्वचिन्तन की गहराई से मीमांसा की है और प्रत्येक देश,जाति और पंथ के अनुरूप इसमें मानव कल्याण से जुड़ी अलौकिक सामग्री भरी हुई है.

एकादशी

भारत में ही नहीं बल्‍कि because व‍िदेशों में भी गीता जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है. विश्व के सब धर्मों को प्रेरित करने वाला गीता का  मानवतावादी कालजयी चिन्तन हर युग में धार्मिक सद्भाव और सामाजिक समरसता की भावना को प्रोत्साहित करता आया है. यही कारण है कि विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है. हर भाषा के विद्वानों और चिन्तकों ने गीता के तत्त्वचिन्तन की गहराई से मीमांसा की है because और प्रत्येक देश,जाति और पंथ के अनुरूप इसमें मानव कल्याण से जुड़ी अलौकिक सामग्री भरी हुई है. थॉरो के शिष्य और अमेरिका के प्रसिद्ध साहित्यकार एमर्सन भी गीता का बहुत आदर करते थे “सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि” (गीता, 6-29) के श्लोक में विश्व मानवता के दर्शन पाकर वे नाच उठते थे.

एकादशी

पश्चिमी विद्वान एफ.एच. मोलेन ईसाई because धर्मानुयायी होने के बाद भी गीता को इसलिए आदर देते हैं क्योंकि इसमें पश्चिमी मानव की जटिल समस्याओं का समाधान अत्यन्त सरल रीति में किया गया है.

एकादशी

भारत के सन्दर्भ में गीता महज एक because धार्मिक ग्रन्थ ही नहीं बल्कि साम्प्रदायिक तनाव सामाजिक विप्लव और राजनैतिक भ्रष्टाचार को दूर करने का माध्यम भी बनती आई है. गीता के निष्काम कर्मयोग और अनासक्ति भाव से प्रेरित होकर ही महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के शस्त्र से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का युद्ध लड़ा. गांधी जी के अनुसार धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में मनुष्य के भीतर सैकड़ों की संख्या में व्याप्त because कौरव रूपी आसुरी वृत्तियों और सत्य, अंहिसा, अस्तेय, अपरिग्रह तथा ब्रह्मचर्य रूपी पांच पाण्डवों के मध्य लड़ा जाने वाला द्वन्द्व युद्ध है जो हर युग में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन लड़ता है. गांधी जी गीता को मां के समान आदर देते थे. जो कोई भी इस माता की शरण में जाता है, उसे गीता अपने ज्ञानामृत से तृप्त कर देती है.

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लेबेदेव भगवान कृष्ण को प्रभु because क्राइस्ट का ही भारतीय रूप मानते हैं. उन्होंने हिन्दू धर्म तथा ईसाई धर्म की मान्यताओं का गहन अघ्ययन करके हिन्दुओं के धार्मिक उपदेशों को प्रभु ईसा मसीह के उपदेशों जैसा बताया, ईसाइयों के पांच अभिषेकों को हिन्दू संस्कारों के साथ जोड़ा, because ब्राह्मण पुरोहितों की साम्यता ऑर्थोडॉक्स चर्च के धर्माधिकारियों के साथ स्थापित की और हिन्दुओं के मन्दिरों की तुलना गिरजाघरों से की.

एकादशी

18वीं शताब्दी में पीटर्सबर्ग में रहे पादरी के because पुत्र गेरासिम लेबेदेव नामक भारत प्रेमी रूसी प्राच्यविद् ने गीता के रूसी अनुवाद से प्रेरित होकर हिन्दू धर्म तथा ईसाई धर्म की जिन समान अवधारणाओं को विश्व सभ्यता के प्रांगण में रखा उसी का ही परिणाम है कि आज यूरोपियन तथा ईसाई धर्म के अनुयायी भी गीता को वैसा ही पवित्र ग्रन्थ मानते हैं जैसे कि बाईबिल. लेबेदेव भगवान कृष्ण को प्रभु क्राइस्ट का ही भारतीय रूप मानते हैं. because उन्होंने हिन्दू धर्म तथा ईसाई धर्म की मान्यताओं का गहन अघ्ययन करके हिन्दुओं के धार्मिक उपदेशों को प्रभु ईसा मसीह के उपदेशों जैसा बताया, ईसाइयों के पांच अभिषेकों को हिन्दू संस्कारों के साथ जोड़ा, ब्राह्मण पुरोहितों की साम्यता ऑर्थोडॉक्स चर्च के धर्माधिकारियों के साथ स्थापित की और हिन्दुओं के मन्दिरों की तुलना गिरजाघरों से की.

एकादशी

लेबदेव का दृढ़ विश्वास था कि सृष्टिकर्ता because ईश्वर ने मानव जाति को सर्वप्रथम भारत में ही उत्पन्न किया इसलिए वे मानते थे कि ईश्वर ने ईसाइयों से पहले भारतवासियों के लिए दिव्य ज्ञान को प्रकट किया था. पीटर्सबर्ग के रूसी प्राच्यविद इवान मिनायेव भी कृष्ण के विश्वमोही चरित्र से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मथुरा आकर क्राइस्ट पूजा के परिप्रेक्ष्य में कृष्णपूजा के इतिहास पर विशेष अनुसन्धान कार्य किया और इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि दोनों परम्पराओं का अपने अपने देशों में स्वतन्त्र रूप से विकास हुआ. गीता की 5157वीं जयंती पर समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं.

एकादशी

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के but रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल because शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित।)

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