भैया! क्या कोई नरक आश्रम भी है…

पसंद आ गया न, कुछ पैसे दे तो बाकी जब शिफ्ट करोगे तब दे देना, स्वर्ग आश्रम से अच्छा तुमको कहीं मिलेगा भी नहीं…

  • प्रकाश उप्रेती  

अतीत में…

बात 2012 की है. कॉलेज की जिंदगी निपटने में बस एक बसंत ही बाकी था. उसी बसंत में उत्तरप्रदेश पीसीएस का फॉर्म भर दिया था क्योंकि तब अपने इर्दगिर्द यूपीएससी वालों का जमावड़ा था. because कोई तैयारी कर रहा था, किसी के भैया कर चुके थे, किसी का दोस्त इलाहाबाद से दिल्ली तैयारी के लिए आ रहा था, किसी के सीनियर का हो गया था, कोई बाबा बन चुका था और कोचिंग सेंटर चलाने लग गया था. because इस माहौल में भला हम कैसे किनारे पर खड़े रहते. हमने भी उस ‘कोसी’ में डुबकी लगा ही ली.अब मसला तैरने का था तो उसके लिए सबसे पहले कोसी के तट यानि मुखर्जीनगर के आसपास कमरे की तलाश शुरू कर दी थी.

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नॉर्थ कैंपस में रहते हुए because दाढ़ी निकल आई थी लेकिन इस कॉलोनी के बारे में कभी सुना ही नहीं था. जब उस प्राणी ने यह बोला कि “भैया आपके बजट में तो स्वर्ग आश्रम में ही मिलेगा” तो मुझे लगा यह प्राणी मजे ले रहा है. because मैंने भी जोश में कह दिया स्वर्ग या नरक कहीं भी दिला दो.

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यह तलाशी अभियान कई दिनों तक मुखर्जीनगर, इंद्रा विहार, परमानन्द कॉलनी में चला लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली. because कहीं किराया इतना था कि लगा किडनी न बैचनी पड़े और कहीं लोग सीधे देने को तैयार नहीं और कहीं ‘हम लड़कों को नहीं देते हैं’ जैसे शब्दों का आघात सहन कर हम आखिर उस प्राणी की तरफ लौट आए जिसे सम्मान के because साथ “ब्रोकर” कहा जाता है. मतलब वह जिसके लिए ही ये कहा गया है- “हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय”. ब्रोकर एक अद्भुत प्रजाति है. यह आपको नरक और स्वर्ग दोनों में कमरा दिला सकता है.

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इस प्राणी ने पहली बार उस जगह का नाम लिया जिसे “स्वर्ग आश्रम कॉलोनी” कहते हैं. नॉर्थ कैंपस में रहते हुए दाढ़ी निकल आई थी लेकिन इस कॉलोनी के बारे में कभी सुना ही नहीं था. because जब उस प्राणी ने यह बोला कि “भैया so आपके बजट में तो स्वर्ग आश्रम में ही मिलेगा” तो मुझे लगा यह प्राणी मजे ले रहा है. मैंने भी जोश में कह दिया स्वर्ग या नरक कहीं भी दिला दो. फिर क्या, उसके ‘चेतक’ में बैठकर हम स्वर्ग आश्रम की तरफ निकल पड़े. चेतक से 10 मिनट लगे हम स्वर्ग आश्रम पहुँच गए थे. पुराने किले की अस्थिनुमा गेट पर लिखा था- स्वर्ग because आश्रम कॉलोनी. हम उस गेट के अंदर एक पतली गली में घुसे जहाँ दिन में ही रात हो रही थी. वह प्राणी चेतक को एक दुकान के आगे खड़ा करके वहीं कहीं से चाबी लेकर आया.

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बोला भैया चलो थोड़ा आगे ही है. because शानदार कमरा है, अटैच बाथरूम है, मकान मालिक यहाँ रहता नहीं है, किराया भी दुकान वाले को देना है, कभी आओ, कभी जाओ, कोई आए ,कोई रोकटोक नहीं है. एक बैचलर को कमरे के नियमों में इससे ज्यादा और चाहिए but भी क्या था ! अभी कमरे तक हम पहुँचे नहीं थे. उसका थोड़ा खत्म ही नहीं हो रहा था. अंदर-अंदर चलते हुए लग रहा था कि बस स्वर्ग की सीढ़ियों से कुछ ही दूर हैं.

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खैर, देखकर नीचे उतरे तो श्री ब्रोकर जी बोले “पसंद आ गया न, कुछ पैसे दे तो बाकी जब शिफ्ट करोगे तब दे देना, स्वर्ग आश्रम से अच्छा तुमको कहीं मिलेगा भी नहीं”. because मैंने तुरंत कहा भैया ‘क्या कोई नरक आश्रम भी है, वहाँ एक बार और देख लेते हैं. तब स्वर्ग आश्रम के बारे में सोचूँगा”.

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करीब 10-12 मिनट चलने के because बाद हम एक बिल्डिंग के अंदर दाखिल हुए तो उस बिल्डिंग की जर्जर अवस्था को देखकर लगा कि यही स्वर्ग ले जाएगी. अंदर दूसरे फ्लोर पर इधर -उधर कई कमरे बने हुए थे. वह मुझे एकदम अंतिम वाले कमरे में ले गया so और कमरा खोलकर दिखाया. कमरा चारपाई भर का था. नया-नया पोत रखा था तो कमरा ठीक ही लगा. अब मैंने अटैच बाथरूम के बारे में पूछा तो उसने बाहर की तरफ इशारा कर दिया. कमरे के बगल में ही बाथरूम था लेकिन वह मेरा नहीं बल्कि सबका कॉमन था. कमरा लास्ट में था तो वह उससे अटैच भी था. इसी को ब्रोकर जी ने कमरे के साथ अटैच बाथरूम बना दिया.

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खैर, देखकर नीचे उतरे because तो श्री ब्रोकर जी बोले “पसंद आ गया न, कुछ पैसे दे तो बाकी जब शिफ्ट करोगे तब दे देना, स्वर्ग आश्रम से अच्छा तुमको कहीं मिलेगा भी नहीं”. मैंने तुरंत कहा भैया ‘क्या कोई नरक आश्रम भी है, वहाँ एक बार और देख लेते हैं. because तब स्वर्ग आश्रम के बारे में सोचूँगा”. इस बात से उसको संकेत मिल गया था कि लेने वाला नहीं है. हम दोनों फिर स्वर्ग से नरक की तरफ साथ लौटे और आधे रास्ते में से बिछड़ कर मायावी संसार में खो गए.

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आज इतने सालों बाद because एक मित्र ने कहा स्वर्ग आश्रम के गेट पर मिलूँगा तो वह सब याद आ गया जो रीत चुका था. दिल्ली का स्वर्ग आश्रम….

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं.)

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